
व्यंग्य राही की कलम से
ऐसा लगता है कि अपने देश के चतुर चालाक लोगों को इमोशनल अत्याचार करने की आदत पड़ चुकी है। प्रेमी-प्रेमिका तो एक दूजे पर इमोशनल अत्याचार करते ही हैं, अब तो इस श्रेणी में माता, पिता और नेता भी बड़ी तेजी से जगह बना रहे हैं।
माफ कीजिए। हम आपको इमोशनल अत्याचार के बारे में तो बताना ही भूल गए। इसे जरा समझने की जरूरत है। मान लीजिए एक बेटा अपने माता-पिता से कहता है कि वह बगैर दहेज के अपनी सहपाठिन से प्रेम विवाह करना चाहता है तो उसकी मां स्वयं की जान देने की और पिता उसे बदनसीब बाप होने की बात करता है। यह इमोशनल अत्याचार है।
आजकल हमारे नेता इस इमोशनल अत्याचार का बड़ा उपयोग कर रहे हैं। जैसे किसी नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो वह भावुक तरीके से भाषण देता है कि उस पर आरोप सिद्ध हो जाए तो वह राजनीति से संन्यास ले लेगा। अब साहब। कब मरेगी सासू और कब आएंगे आंसू। न तो कभी भ्रष्टाचार खुलेगा और न कभी इस्तीफा देना पड़ेगा कभी खुल भी गया तो किसे याद रहेगा और किसी ने पूछ भी लिया तो कह देंगे कि वह तो भावुकता में बोला जुमला था।
इसी क्रम में हमारे ऊपर अब एक ताजा-ताजा इमोशनल अत्याचार हमारे नरेन्द्र भाई ने किया है। हुजूरे आली ने बड़ी भावुकता से कहा कि देश के दलितों को मत मारो। मारना है तो मुझे गोली मारो। कसम से उनकी बात सुन कर एक बार हमारी आंखें छलछला आई लेकिन जैसे ही हमारे दिमाग ने समझ की खिड़की खोली तो हमें हंसी आ गई।
हमारा तो देश के सर्वशक्तिमान् नेता से निवेदन है कि भाई! यह इमोशनल बातें छोडि़ए। आपके हाथ में सत्ता है, ताकत है, कानून है आप तो दलितों पर होने वाले अत्याचार रोकिए। आपको कौन मारना चाहता है, आप तो खूब जियो लेकिन जो लोग दलितों पर प्रहार कर रहे हैं जो गौ भक्ति की आड़ में अपनी दुकान चला रहे हैं आप उनके लगाम लगाइए।
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