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जैन संतों को भोजन करवाना बड़ा पुण्य

श्रावकों के लिए कड़ी चुनौती भी

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जैन संतों को भोजन करवाना बड़ा पुण्य

जैन संतों को भोजन करवाना बड़ा पुण्य

भीलवाडा।
आरके कॉलोनी जैन मंदिर में मुनि विद्यासागर महाराज ससंघ चातुर्मास कर रहे है। दिगम्बर संत जहां रह रहे हैं वहां के श्रावकों के लिए संतों को भोजन करवाना बड़ा पुण्य तो है ही साथ ही चुनौती भरा भी है। संघ के साधु चातुर्मास के दौरान एक दिन उपवास या दो दिन उपवास के बाद आहार के लिए निकलते है। दिगम्बर साधु दिन में केवल एक बार आहार एवं जल ग्रहण करते है। दिगम्बर संतों व साध्वियों ने आहार नियम इतने कड़े होते है कि उन्हें आसानी से पूरे ही नहीं किए जा सकते। यानि संतों के लिए भोजन के लिए नहीं बल्कि सिर्फ जीवन जीने का माध्यम है। जैन साधुओं ने कंद मूल व फल का त्याग किया हुआ है। दही भी चांदी का सिक्का अथवा नारियल का टुकड़ा डालकर उसी दिन जमाया जाता है। कई साधुओं ने घी, तेल, नमक, मीठा व तीखा का त्याग किया हुआ है। खड़े होकर 24 घंटे में एक बार अंजली में आहार लेते हैं। तभी उबला हुआ पानी पीते हैं। उसके बाद कुछ भी सेवन नहीं करते। यही नहीं कुछ साधु व साध्वियां तो उन घरों पर आहार नहीं लेते जिनके घरों में रात्रि भोजन या कंद मूल का सेवन होता है।
विधि लेकर ही आहार के लिए निकले हैं संत, अन्यथा उपवास
आरके जैन मंदिर के वरिष्ठ सदस्य महेन्द्र सेठी ने बताया कि दिगंबर संत आहार के लिए पहले मंदिर जाते हैं। देव दर्शन के बाद विधि लेते हैं। इसमें अपने मन में एक छवि सोच लेते हैं, मंदिर में आहार करवाने वाले लोग उस तरह के मिलते हैं तभी संत आहार ग्रहण करेंगे अन्यथा उपवास करते है। जैसे जैन मुनि ने सोच लिया कि कोई व्यक्ति हाथ में कलश लेकर मिलेगा उसी के यहां आहार लेंगे। श्रावक गण अलग अलग सामग्री व विधि से पडग़ाहन (आमंत्रण) करते हैं। विधि मिलने पर आहार के लिए चौके में जाते हैं। हमारे लिए भोजन व व्यंजन स्वाद के लिए, जैन संतों के लिए सिर्फ जीवन जीने के लिए ही जरूरी, 24 घंटे में एक बार अल्प आहार ही लेते हैं दिगम्बर साधु।
ऐसे लिया जाता है आहार
जैन धर्म में दिगंबर मुनिराज प्रतिदिन एक बार निर्दोष चर्या से पाणि पात्र व करपात्र (दोनों हाथों की अंजली बनाकर) अर्थात हाथ में खड़े खड़े आहार और पानी ग्रहण करते हैं। इनका पडग़ाहन जैन श्रावकों द्वारा नवधा भक्ति पूर्वक किया जाता है। इसमें किसी प्रकार का अंतराय आने पर वह आहार और पानी का अगले दिन पर्यंत त्याग कर देते हैं और उसके बाद दूसरे दिन आहार और पानी इसी विधि से ग्रहण करते हैं।