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Janmashtmi 2022: 291 साल पहले लिखा-मंदिर का शिखर पानी में डूबेगा

locationभीलवाड़ाPublished: Aug 18, 2022 11:25:59 pm

Submitted by:

Suresh Jain

भीलवाड़ा शहर में सबसे बड़े मंदिर के नाम से ख्यात चारभुजानाथ का मंदिर करीब 291 साल पुराना है।

Janmashtmi 2022: 291 साल पहले लिखा-मंदिर का शिखर पानी में डूबेगा

Janmashtmi 2022: 291 साल पहले लिखा-मंदिर का शिखर पानी में डूबेगा

भीलवाड़ा शहर में सबसे बड़े मंदिर के नाम से ख्यात चारभुजानाथ का मंदिर करीब 291 साल पुराना है। इसमें भगवान चारभुजानाथ की प्राण प्रतिष्ठा 9 मई 1731 को हुई थी। मेवाड़ के मुख्य दीवान सदाराम देवपुरा ने मंदिर का निर्माण कराया। 26 वर्ष तक देखरेख भी की। सेवा पूजा व मन्दिर की व्यवस्था करने के बाद मन्दिर तथा उससे सम्बन्धित सम्पदाएं 2 अगस्त 1757 को माहेश्वरी समाज को सौंप दी। माहेश्वरी समाज ने मन्दिर की व्यवस्था व सम्पति की देखरेख के लिए 1964 में माहेश्वरी समाज चारभुजा मन्दिर ट्रस्ट बनाया। 1913-15 में केशवराम झंवर ने मन्दिर के सामने व 25 फीट ऊंचा नगार खाना बनवाया। मंदिर में एक साल में 23 त्योहार मनाए जाते हैं। कृष्ण जन्मोत्सव पर भी यहां हर साल की भांति शुक्रवार को खास आयोजन होंगे।


ताम्रपत्र में लिखा-एक दिन शिखर तक भरेगा पानी
चारभुजानाथ मंदिर की नींव भराई के समय ताम्रपत्र में लिखा था कि एक दिन मंदिर के शिखर तक पानी भरेगा। मंदिर में चारभुजानाथ 3 फीट की मूर्ति बड़ी आकर्षक है। मन्दिर निर्माण में वास्तुकला का पूरा ध्यान रखा गया है। मंदिर सड़क से लगभग 70 फीट ऊंचा है। खासियत यह है कि सड़क पर खड़े होकर भी भगवान के दर्शन किए जा सकते हैं। चारभुजानाथ के सोने व चांदी से बनी पोशाक भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है। 289 वर्ष बाद पहली बार वर्ष 2020 में दीपावली पर चारभुजानाथ ने स्वर्ण-चांदी की पोशाक धारण कर भक्तों को दर्शन दिए।
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वास्तुकला एवं मन्दिर
मन्दिर का निर्माण वास्तुकला को ध्यान में रख कर किया गया है। मन्दिर की सड़क से ऊँचाई लगभग 70 फीट है इससे सड़क पर खड़े होकर भी भगवान श्री के दर्शन किए जा सकते हैं तथा मन्दिर का समग्र रूप से निहारा जा सकता है। सड़क से मन्दिर पर जाने के लिए सुविधाजनक सीढ़ियों का निर्माण किया हुआ हैं। निज मन्दिर के बाहर दो विशाल हाथी, कंवरपदा का महल, परिक्रमाओं में बनी गणेश जी, हनुमान जी, भैरूजी की मूर्तियाँ- नन्दी पर सवार शिव परिवार मयूर पर सवार भगवान कार्तिकेय, सगस जी महाराज दुर्गामाता का विराट स्वरूप एवं नंगारखाना अनूठा भव्य एवं दर्शनीय है। कंवरपदा महल की दीवारों पर भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला बहुत ही भव्य कलात्मक एवं स्वर्ण नक्कासी से बनी हुई है। इस महल को माहेश्वरी समाज भीलवाड़ा ने बनवाया। इस मन्दिर के ऊपर आसमान को निहारता करता ध्वजादंड दया और श्रद्धा का प्रतीक है जिसे प्रणाम करके भक्तजन सुख शान्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते है।
सोने चांदी से बनी पौशाक आकर्षण का केन्द्र
चारभुजा नाथ के सोने व चांदी से बनी पौशाक भक्तों के लिये आकर्षण का केन्द्र है। चारभुजा नाथ के हर अमावस्या व विशेष त्यौहार पर यह बनाई गई पौशाक धारण कराई जाती है। 289 वर्ष बाद पहली बार दीपावली 2020 में चारभुजा नाथ स्वर्ण चांदी से बनी पौशाक धारण कर भक्तों को दर्शन दिये श्री चारभुजा नाथ स्वर्ण रजत की विशेष पौशाक ट्रस्ट द्वारा तैयार करवाई गई पौशाक में चारभुजा नाथ की प्रतिमा पर मुकुट का पान, मोर पंख, कानों के कुंडल, वक्ष श्रृंगार, बड़ी एवं छोटी भुजाऐं, शंख हाथ, चक्र पुष्प हाथ, गदा हाथ, पदम हाथ, धोती श्रृंगार खड़े व आडे सल व चरण श्रृंगार विशेष रूप से स्वर्ण रजत जड़ित कोटड़ी नाथद्वारा एवं बंगाल के कारीगरों के द्वारा तैयार करवाई गई। मन्दिर में चांदी का बेवाण, गर्भ गृह में रजत निर्मित बंगला एवं भव्य कारीगरी से बने किवाड़ दर्शनीय है।
मन्दिर गेट पर विशाल डोम लगाया गया
वर्षा के दिनों में चारभुजा नाथ के भक्तों के दर्शन के लिए खड़े रहने हेतु मन्दिर गेट पर ट्रस्ट द्वारा विशाल डोम लगाया गया। डोम लगाने के बाद भक्तों के मन्दिर में आने जाने में बारिश व धुप में ठहराव की सुविधा हुई है।

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