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जैन धर्म को खोजने व समझने की आवश्यकता

आचार्य विद्यासागर के दर्शन के बाद जैन दर्शन पर पाठक ने किया अध्ययन आदित्य सागर के सानिध्य में संगोष्ठी

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जैन धर्म को खोजने व समझने की आवश्यकता

जैन धर्म को खोजने व समझने की आवश्यकता

भीलवाड़ा. दिगंबर जैन समाज के आचार्य व मुनियों की त्याग व तपस्या को देखकर मेरा मन में भी जैन धर्म को जानने की जिज्ञासा जागृत हुई। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी आज जैन धर्म की पालना करने के साथ अब तक 600 से अधिक जैन धर्म पर लेख लिख चुके हैं। अन्य धर्म पर भी लेख लिखे हैं। जैन धर्म के लोगों ने लेख को स्वीकार किया। जैन धर्म सबसे अलग है। इसकी पालना कठिन है, लेकिन असंभव नहीं। अब तक 22 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। इनमें 6 जैन धर्म पर है।

यह बात मध्यप्रदेश के ग्वालियर निवासी नरेश कुमार पाठक ने शनिवार को पत्रिका से विशेष बातचीत में कहीं।पाठक आरके कॉलोनी के आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में मुनि आदित्य सागर के सानिध्य में तीन दिवसीय विद्वत गोष्ठी में हिस्सा लेने आए। पाठक ने बताया कि वे पहली बार आचार्य विद्यासागर के दर्शन इंदौर में किए थे। पाठक ने बताया कि भारतीय इतिहास में चित्तौड़गढ़ दुर्ग का नाम अमर है। स्वाधीनता की रक्षा के लिए आत्मबलिदान का प्रतीक है। ये सब भारत के ऐतिहासिक तीर्थ है। दुर्ग पर कीर्तिस्तम्भ और मंदिर, श्रृंगार चौरी जैन मंदिर एवं सत-वीस ड्योढी मंदिर आदि तीन उल्लेखनीय जैन मंदिर हैं।
कीर्तिस्तम्भ और मंदिर

पाठक ने बताया कि चित्तौड़ में जैन कीर्ति स्तम्भ है। सात मंजिले व 75 फीट ऊंचे स्मारक का निर्माण दिगम्बर सम्प्रदाय के बघेरवाल महाजन सानाय के पुत्र जीजा ने करवाया। कीर्तिस्तम्भ आदिनाथ का स्मारक है। इसके चारों पार्श्व पर पांच-पांच फीट ऊंची आदिनाथ की दिगम्बर मूर्तियां खुदी है और बारी के भागों पर अनेक छोटी-छोटी जैन मूर्तियां अंकित है। जैन कीर्ति स्तम्भ के पास महावीर स्वामी का जैन मंदिर है, जिसका जीर्णोद्वार महाराणा कुम्भा के समय सन् 1438 ई. में ओसवाल महाजन गुणराज ने करवाया था। यह जैन स्मारकों में सर्वाधिक उल्लेखनीय कीर्ति स्तम्भ है, जो गगनचुंबी स्तम्भ है। यह सन् 1200 से पूर्व कालीन है। अन्य स्थानों पर भी जैन मंदिर व पार्श्वनाथ भगवान की मूर्तिया स्थापित है। पाठक ने बताया कि आज जैन धर्म को समझने की जरूरत है। इसमें कई ऐसे तथ्य है जिन्हें खोजने व समझने की आवश्यकता है।