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अब बजरी की जगह लोग निकाल रहे यह विकल्प

बजरी से भी ज्यादा मजबूत है यह सामग्री, मकान नहीं होंगे कमजोर

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भीलवाड़ा. प्रदेश में बजरी खनन पर रोक से आए संकट के बाद कई लोग कृत्रिम बजरी पर विकल्प तलाश रहे हैं। इसके लिए उदयपुर में माइनिंग इंजीनियर्स एसोसिएशन व खान एवं भू-विज्ञान विभाग की ओर से मैन्युफेक्चरिंग सैंड पर चर्चा भी रखी थी। इसमें बताया कि नदियों से प्रतिवर्ष 50 से 70 मिलियन टन बजरी उत्पादन होता है जबकि जरूरतें ज्यादा हैं। अब सरकार यह देख रही है कि जो मलबा, डस्ट व ओवरबर्डन है उससे कैसे बजरी बनाई जाए इस पर काम करना होगा। कारण है कि अभी बजरी पर रोक होने से कई काम अटके हुए हैं। साथ ही बजरी नहीं मिलने से इसके दाम भी बढ़ गए है। अब आम आदमी को भी बजरी नहीं मिलने से समस्या हो रही है। एेसे में बजरी कैसे बनाई जा सकती है, इस काम काम करना है।
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नदियों में पानी नहीं तो कैसे बनेगी बजरी
विशेषज्ञों ने बताया कि प्राकृतिक रूप में नदियां पानी के बहाव के साथ बजरी, कंकड़, पत्थर एवं मिट्टी अपने साथ बहा कर लाती है और इसी से बजरी का जमाव नदियों में सदियों से अनवरत रूप से होता रहा है। जो पत्थर है वे टूटते हैं और बजरी बन रही है। अब नदियों में पानी नहीं आने से बजरी का संकट आने लगा है।
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यही हालात रहे तो खत्म हो जाएगी नदियां
जहां एक तरफ नदियों से बजरी निकालना, प्राकृतिक आपदाओं से बचने, पर्यावरण एवं नदियों के मूल रूप को बनाये रखने के लिए आवश्यक है। वहीं स्थान विशेष से अत्यधिक बजरी दोहन पारिस्थितिकी संतुलन को गंभीर नुकसान हो रहा है। यही हालात रहे तो नदियों का मूल स्वरुप बिगड़ जाएगा।
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जिंक व जिंदल का ओवरबर्डन हो सकता है विकल्प
खान विभाग के अधिकारियों का मानना है कि जिले में हिंदुस्तान जिंक आगूंचा व जिंदल समूह का ओवरबर्डन भी कृत्रिम बजरी बनाने के लिए एक विकल्प हो सकता है। पूर्व में भी जिंक का प्रस्ताव था लेकिन बजरी पर रोक नहीं होने से चर्चा नहीं हुई। अब करीब छह माह से बजरी पर रोक होने से वापस चर्चा शुरू हो गई है।
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ
जो भी सरकारी कार्य जो हो रहे हैं इनमें क्रेशर डस्ट काम काम लिया जा सकता है। अभी जागरुकता की कमी है बल्कि ये पांच गुना ज्यादा मजबूत है। सरकार बजरी नहीं रोक सकती है तो इस पर काम करना चाहिए। साथ ही यह प्लांट लगाने के लिए सब्सिडी दे तो बजरी का उपयोग कम हो सकता है।
अनिल सोनी, अध्यक्ष, कारोई लघु खनन संघ
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बहुत जगह क्रेशर डस्ट काम में ले रहे हैं। इसकी भी मजबूती है। इसके लिए गत दिनों चर्चा भी हुई थी। जिले में और क्या विकल्प हो सकते हैं इस पर भी काम कर रहे हैं।
गोरधनराम, खनि अभियंता