एक छोटे से गांव सराधना से विवाह सूत्र में बंध कर जब उषा भीलवाड़ा आई तो पारिवारिक एवं आर्थिक स्थिति अनुकूल ना होने के कारण सिलाई करना एवं सिखाने का कार्य शुरू किया, उस वक्त सोचा भी ना था कि यह छोटा प्रयास उनकी जिन्दगी के मायने बदल देगा। वह बताती है कि प्रारंभ में सिलाई का काम 50 रुपए प्रति माह से शुरू किया।
वर्ष 2005 में ललितपुर सागर चंद्र सागर के प्रवचन से प्रेरणा लेकर निशुल्क सिलाई सिखाने लगी तो मन को एक सुखद अनुभूति हुई। इसके बाद तो निशुल्क सिलाई प्रशिक्षण देने व जरूरतमंद महिलाओं व युवतियों को सहारा देने के लिए विभिन्न संस्थाओं की मदद भी लेने लगी। इसके लिए जिला कारागार, हेलन केलर विकलांग सेवा संस्थान, संबोधी महिला मंडल, महावीर इंटरनेशनल, लायंस क्लब, भारत विकास परिषद आदि संस्थाओं से जुटी।
एक बालिका ने दिखाई मजबूत राह वह बताती है कि एक बार एक अनाथ निर्धन बालिका ने जब मुझ से सिलाई मशीन की मांग रखी तो मुझे लगा जैसे मैं शादी के बाद सिलाई मशीन बिना स्वयं को अपाहिज महसूस करती थी, उसी तरह उस बालिका को ऐसा महसूस ना होने देने के लिए स्वयं की रोजगार से कमाई में मशीन खरीद की उसे दी और उसे प्रशिक्षित भी किया। यह तो महज शुरूआत थी, ऐसी कई बालिकाएं व महिलाएं मदद मिलने के बाद स्वरोजगार की राह पर चढ़ी है।
दस हजार महिलाओं की मददगार उषा बताती है कि दस हजार से अधिक महिलाओं व छात्राओं को वह सिलाई का प्रशिक्षण दे चुकी है, इनमें अधिकांश अब अपना रोजगार है। उन्होंने कोरोना संकट काल में ऐसे परिवारों की मदद की, जिनका रोजगार छीन गया, या फिर कमाने वाला ही नहीं रहा। इन्हें आर्थिक मदद के साथ ही कपड़े भी दिलवाए। महिलाओं को मास्क बनाना सिखा कर कमाई का एक रास्ता दिखाया, वह आज एहसानमंद हैं। भीलवाड़ा में 10 बुटीक उनके द्वारा प्रशिक्षित महिलाएं संचालित कर रही है। जरूरतमंद बच्चों व निर्धन परिवारों की वह हर संभव मदद कर रही है। बच्चों को पाठ्य सामग्री, खाद्य सामग्री, गणवेश भी उपलब्ध कराए है। सामाजिक सरोकार के तहत पौधरोपण के दौरान भी कईयों को पौधे मुहैय्या कराए है।
यह मिले सम्मान पीडि़त मानव सेवा व जरूरतमंदों की मदद के लिए उषा अग्रवाल महिला सशक्तिकरण, मैं, नारी-तू नारायणी अवार्ड तथा मल्टीपल एक्सीलेंट अवार्ड समेत एक दर्जन अन्य अवार्ड के साथ ही जिला प्रशासन से सम्मानित हो चुकी है। One effort of Usha changed the lives of many