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सुरास का बद्री ३8 साल से बिन सरकारी मदद लगा रहा पौधे, कई रास्ते किए हरे-भरे

पर्यावरण के नाम पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर पौधरोपण करती है लेकिन इनमें से अधिकतर पौधे पेड़ नहीं बन पाते

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पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर पौधरोपण करती है लेकिन इनमें से अधिकतर पौधे पेड़ नहीं बन पाते

माण्डल।
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर पौधरोपण करती है लेकिन इनमें से अधिकतर पौधे पेड़ नहीं बन पाते। वहीं सुरास गांव के 50 वर्षीय शख्स ने पौधरोपण को अपना मिशन बनाया और इलाके में उनके लगाए सैकड़ों पौधे आज पेड़ बन क्षेत्र को हरा-भरा किए हुए है। इस शख्सियत का नाम है-बद्री गुर्जर, जो मात्र 12 साल की उम्र से पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निस्वार्थ भाव से निभा रहे हैं। वह भी बिना किसी सरकारी मदद के।

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बद्री गुर्जर न केवल पौधे लगाते हैं बल्कि उनके पेड़ बनने तक सार संभाल भी करते हैं। वे यह काम करीब 38 साल से कर रहे हैं। उनके लगाए कई पौधे आज विशाल वृक्ष बन चुके हैं। बद्री की पत्नी मोहनी भी इस काम में अपने पति का साथ देती है। बकौल मोहनी, मेरे पति यह काम समय से कर रहे हैं, जब वे मात्र 12 साल के थे और हमारी शादी नहीं हुई थी।

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डेडवास मार्ग-भीलवाड़ा रोड पर छाई हरियाली
बद्री की मेहनत का नतीजा यह है कि गांव के आसपास डेडवास मार्ग, नारायणपुरा व भीलवाड़ा मार्ग पर सड़क के दोनों ओर उनके लगाए पेड़ नजर आते हैं। बंजर सरकारी भूमि को भी बद्री ने पौधे लगा हरियाली से आच्छादित कर दिया।

मंदिर के चढ़ावे व चारा काटने से मिले पैसों से बना रहे चारदीवारी
बद्री पौधे लगाकर उनकी सुरक्षा व देखभाल अपने बच्चों की तरह करता है। बद्री का कहना है कि बीते वर्षों में पानी की कमी के बावजूद हमने बच्चों की तरह पौधों की देखभाल की है। पौधों के लिएआधा किलोमीटर दूर हैण्डपम्प से पानी लाता हूं। कभी पीपा सिर पर उठाकर तो कभी साइकिल से पानी लाकर पौधों को सींचा।

ऐसे में गांव वाले लगन देखकर दुआएं देते हैं। गांव के विश्वनाथ प्रताप सिंह , भैरू गाडरी आदि ने बताया कि बद्री का बचपन से पेड़ों के प्रति अपनत्व देख रहे हैं। मंदिर व रास्तों की खाली जमीन पर कई पौधे लगाए। बद्री अभी गांव के हनुमान मन्दिर की देखभाल करते हैं। मन्दिर में चढ़ावे तथा चारा काटकर उनसे मिलने वाले पैसों से हनुमान बाग की चारदीवारी का काम चल रहा है ताकि वह बाग में लगे पौधों की सारसंभाल हो सके।