
जैन भागवती दीक्षा ग्रहण करने जा रही मुमुक्षु प्रियंका ने कंप्यूटर साइंस में भीलवाड़ा से बीसीए किया। जयपुर से एमसीए तथा पूणे से एलएलबी करने के बाद व्यावहारिक शिक्षा की शिक्षा प्राप्त की।
भीलवाड़ा।
जैन भागवती दीक्षा ग्रहण करने जा रही मुमुक्षु प्रियंका ने कंप्यूटर साइंस में भीलवाड़ा से बीसीए किया। जयपुर से एमसीए तथा पूणे से एलएलबी करने के बाद व्यावहारिक शिक्षा की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात मलेशिया से करीब 37 लाख रूपए पैकेज का भी ऑफर आया, लेकिन प्रियंका ने इस ऑफर को ठुकराकर संयम पथ को स्वीकार किया।
बिजय नगर में जन्मी प्रियंका ने भीलवाड़ा में वैराग्य अपनाने का संकल्प लिया। मुमुक्षु प्रियंका ने शनिवार को राजस्थान पत्रिका से खास बातचीत में अपनी अब तक की सांसारिक जीवन यात्रा और संयम पथ को चुनने के कारणों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि शादी दो कुलों को तो भागवती दीक्षा सात कुलों का नाम रोशन करती है।
पत्रिका - साधु जीवन जीने और संयम का मार्ग चुनने की प्रेरणा कैसे मिली?
मुमुक्षु - साध्वी प्रेमवती के 2005 में चातुर्मास के दौरान प्रवचन सुने थे। उसके बाद जीवन में सैंकड़ों साधु-संत आए जिनके प्रवचन श्रवण किए। भीलवाड़ा के महावीर भवन में गुरूचर्या का 2017 में चतुर्मास के दौरान प्रतिदिन प्रवचन श्रवण करने और उनके द्वारा बताई गई प्रत्येक प्रतियोगिता में हिस्सा लेती थी। दीपावली के समय पंद्रह दिन चलने वाले उतराध्ययन सूत्र का मनन किया तो एेसा लगा कि अब तक मैं संसार मात्र में भटक रही थी। वास्तव में वैरागन का अर्थ क्या है, वह मैं इन पंद्रह दिनों में ही जान पाई।
पत्रिका - आप युवा और उच्च शिक्षा प्राप्त है, संयम पथ पर क्या नया करना चाहेंगी?
मुमुक्षु - जब तक हम खुद को ही नहीं बदलेंगे, तो संसार में क्या बदलाव ला पाएंगे। मेरा प्रयास रहेगा कि पहले मैं स्वयं को बदलूं फिर दूसरों को। मेरे मन में कई एेसी विचार है, जिससे संसार में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। लेकिन मैं पहले इस सोच को अपने भगवंतों के सानिध्य रखूंगी। उनकी कृपा रही तो आगे मैं इसी सोच पर कार्य करूंगी। जैन समाज की युवा पीढ़ी को संगठित करने का प्रयास करेंगे।
पत्रिका - सुना है आपने 37 लाख के पैकेज को ठुकरा कर वैराग्य जीवन अपनाया?
मुमुक्षु - हां, मलेशिया से करीब 37 लाख रूपए तक का ऑफर आया था। परंतु पैकेज भौतिकता का सुख है, वह मुझे आंतरिक सुख नहीं दे सकता। उन पैसों से मैं गाड़ी, बंगला और दुनिया की सारी चीजें खरीद सकती थी, पर आत्मा का सुख मैं कहां से खरीद पाती। पैसा होते हुए भी अगर मैं सुखी नहीं रहूं तो एेसे पैसे का मैं क्या करती।
पत्रिका - क्या आपके इस फैसले से माता-पिता और परिवाजन खुश है?
मुमुक्षु - मेरे माता-पिता का स्वर्गवास हो चुका है। भाई गौरवकुमार खाब्या की मेरे जीवन और दीक्षा में अहम भूमिका रही। मैं अपने भाई की शुक्रगुजार हूं। आज अंतिम दिन भी वह मुझसे यही कर रहा था कि आप जहां भी रहो, हमेशा खुश रहो। अपने संयम जीवन साथ अपने चरित्र को इस तरह पालना कि तुम पर कोई दाग न लगे।
पत्रिका - बालिकाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?
मुमुक्षु - मैं युवतियों को निजी तौर पर कहना चाहूंगी कि अपने जीवन को लेकर जो भी निर्णय लें सोच समझकर लें। आप जो भी गतिविधियां करें वह अपने माता पिता को अपना दोस्त समझकर शेयर करें, ताकि भविष्य में आपको कोई तकलीफ ना हो।
पत्रिका - आप साधु जीवन की ओर अग्रसर हो रही है, लेकिन कई साधु एेसे भी है जो सांसारिक जीवन में लौट रहे हैं?
मुमुक्षु - पांचों अंगुलियां एक समान नहीं होती। कोई भी साधु किसी साधु, श्रावक या श्राविका की वजह से गृहस्थी में जाता है, वह पाप का भागी बनता है। साधु दीक्षा ग्रहण की है तो संयम जीवन जीना चाहिए।
Published on:
18 Feb 2018 12:41 pm
बड़ी खबरें
View Allभीलवाड़ा
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
