जेल-जुर्माने का प्रावधान, फिर भी नहीं होती सख्त कार्रवाई
मिलावटखोरों के हौसले बुलंदशुद्ध के लिए युद्ध अभियान 2.0
Provision for jail penalty, yet not strict action in bhilwara
सुरेश जैन
भीलवाड़ा।
राज्य सरकार, चिकित्सा व प्रशासन मिलावटखोरों पर लगाम नहीं कस पा रहा है। खाद्य विभाग की कार्रवाई महज छापेमारी तक सिमट गई। विभाग छापेमारी के दौरान सैम्पल लेकर मिलावटखोरों को चेतावनी देकर छोड़ देता है। सैम्पल लैब में भेजने पर रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई महज जुर्माने तक सिमट जाती है। इसका मिलावटखोरों पर असर नहीं पड़ता है।
खाद्य सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि मिलावट पर अंकुश लगना मुश्किल है। सुप्रीम कोर्ट ने खाद्य पदार्थों में मिलावटियों पर लगाम के लिए सख्ती कर दी लेकिन कानून में खामियां हैं। इसका फायदा मिलावटखोर उठाते हैं और खमियाजा आमजन भुगतता है। अधिकांश जिलों में जांच लैब नहीं है। जांच प्रक्रिया लंबी है।
यह है सजा
-खाद्य वस्तुओं में मिलावट कानूनी अपराध है।
-मिलावट पर ६ माह से १० वर्ष तक की सजा।
-नकली दवा बनाने पर मृत्युदंड का प्रावधान।
-सब स्टेण्डर्ड पाए जाने पर ५ लाख व मिस ब्रांड पर ३ लाख जुर्माना।
-अनसेफ पर ६ माह से ७ साल व जुर्माना।
-मिलावटी वस्तु खाने व किसी की मृत्यु पर उम्रकैद।
इनको मिली थी सजा
१. शक्ति बारदाना भंडार पर २४ अक्टूबर २०११ को अलसी ऑयल व मूंगफली तेल का सैम्पल लिया। जांच में सब सब स्टेण्डर्ड पाया। तत्कालीन एडीएम कोर्ट के टीसी बोहरा ने फैसला ३१ अगस्त २०१२ को सुनाते ५०-५० हजार का जुर्माना तथा ‘मेरी दुकान पर यह माल मिलावट पाया गयाÓ का बोर्ड लगाने का अनोखा फैसला सुनाया था।
२- रामा स्वीट्स पर खोया मावा का सैम्पल ३ जून २०१२ को पकड़ा। जांच में सब स्टेण्डर्ड पाया गया। तत्कालीन एडीएम टीसी बोहरा ने अपना फैसला ३१ अगस्त २०१३ को सुनाते हुए ५-५ हजार का जुर्माना तथा मेरी दुकान पर यह माल मिलावट पाया गया का बोर्ड लगाने का अनोखा फैसला सुनाया था।
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