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खेल मैदान पर गुरुओं ने द​क्षिणा में यह मांगा, ​शिष्यों ने भी पदक देकर बढ़ा दिया उनका मान

ये कहानियां है उन गुरुओं की, जिन्होंने खेल के मैदान में अपने शिष्यों (खिलाडि़यों) को इस काबिल बनाया कि वे पदक जीतकर देश का नाम रोशन कर सकें। इन गुरुओं ने महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य की तरह अपने अर्जुन को लक्ष्य पर ध्यान केन्दि्त करना सिखाया और शिष्यों ने भी अपने गुरुओं का मान रखा...प्रदेश के कई नामी खिलाड़ी अपने गुरु के दिए ज्ञान के दम पर दुनिया में धाक जमाने में कामयाब रहे।

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खेल मैदान पर गुरुओं ने द​क्षिणा में यह मांगा, ​शिष्यों ने भी पदक देकर बढ़ा दिया उनका मान

खेल मैदान पर गुरुओं ने द​क्षिणा में यह मांगा, ​शिष्यों ने भी पदक देकर बढ़ा दिया उनका मान

ये कहानियां है उन गुरुओं की, जिन्होंने खेल के मैदान में अपने शिष्यों (खिलाडि़यों) को इस काबिल बनाया कि वे पदक जीतकर देश का नाम रोशन कर सकें। इन गुरुओं ने महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य की तरह अपने अर्जुन को लक्ष्य पर ध्यान केन्दि्त करना सिखाया और शिष्यों ने भी अपने गुरुओं का मान रखा...प्रदेश के कई नामी खिलाड़ी अपने गुरु के दिए ज्ञान के दम पर दुनिया में धाक जमाने में कामयाब रहे। ये गुरु अपने शिष्यों से दक्षिणा में पदक मांगते है और शिष्य भी अपने गुरु को दक्षिणा में पदक देने के लिए अपना सबकुछ दांव देते है।

पति की कोचिंग ने दिलाया सोना

जयपुर. काॅमनवेल्थ गेम्स 2010 में डिस्कस थ्रो में स्वर्ण जीतने वाली कृष्णा पूनिया को पति वीरेंद्र पूनिया ने कोचिंग दी। कृष्णा शुरू में खो-खो और हैंडबॉल खेलती थी लेकिन फिर एथलेटिक्स में रूझान बढ़ा। कोच करणसिंह की देखरेख इंटर कॉलेज में 37 साल पुराना रेकॉर्ड तोड़ा। कृष्णा का विवाह अंतरराष्ट्रीय हैमर थ्रोअर वीरेंद्र से हुआ। द्रोणाचार्य अवार्डी वीरेन्द्र ही कृष्णा के कोच बने। बेटे के जन्म के छह माह बाद कृष्णा मैदान पर लौटी व कॉमनवेल्थ में सोना जीता। ऐसा करने वाली देश की पहली महिला एथलीट बनीं। 2012 लंदन ओलंपिक में फाइनल राउंड में पहुंची।


सबने कहा: कोच साब यह कैसे जीतेगा...

जयपुर. अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक एथलीट, पद्मश्री, खेल रत्न अवार्डी चूरू के राजगढ़ के देवेंद्र झाझडिय़ा ने द्विव्यांगता को कभी सफलता के आड़े नहीं आने दिया। भाला फेंक खिलाड़ी देवेन्द्र के कोच गुरु द्रोणाचार्य अवार्डी रिपुदमन सिंह उर्फ आरडी सिंह बताते हैं कि देवेन्द्र की फिटनेस देख हनुमानगढ़ बुलाया। देवेंद्र तब सामान्य खिलाडिय़ों के साथ अभ्यास करते और कॉलेज टूर्नामेंट्स में अव्वल रहते। देवेन्द्र को इंटर यूनिवर्सिटी ले जाने लगे तो लोगों ने हंसी उड़ाई कि कोच साब जानबूझकर हारना चाहते हो क्या? सिंह ने अनसुना कर देवेंद्र की ट्रेनिंग जारी रखी। देवेंद्र ने गोल्ड जीता। फिर एथेंस पैरालंपिक (2004) में गोल्ड जीता।


अपने खर्चे पर तैयार किए खिलाड़ी

बीकानेर. अनिल जोशी वर्ष-2010 से तीरंदाजी के प्रशिक्षक हैं। 14 साल पहले तीरंदाजी एकेडमी खोली, जो प्रदेश की पहली निजी अकादमी है। तब जिले में 50 तीरंदाज थे। धीरे-धीरे संख्या बढ़ी। ऐसे बच्चे भी आए, जो न फीस दे सकते तथा न उपकरण खरीद सकते। अनिल ने इन्हें अपने खर्च पर निखारा। अनिल की मेहनत के बूते श्यामसुंदर स्वामी ने टोक्यो पैरा ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। स्वामी वर्ल्ड व एशियन चैंपियनशिप में पदक जीते। बीकानेर को 40 वर्ष बाद श्याम सुंदर के रूप में ओलंपियन मिला तो अनिल की तपस्या का नतीजा था।

पिता के हादसाग्रस्त होने से टूटी, कोच ने संभाला

जोधपुर. अंतरराष्ट्रीय वुशु खि़लाड़ी मंजू चौधरी सात साल पहले वजन घटाने मैदान पर उतरी लेकिन परिवार खेलों से जुड़ा था। कोच विनोद आचार्य इससे वाकिफ थे। आचार्य ने मंजू को पिता के खेल के रोचक किस्से बता प्रोत्साहित किया। इस बीच पिता हादसे में गंभीर घायल हो गए तो मप्र में खेल मंजू ने टूर्नामेंट छोड़ने का निर्णय लिया लेकिन कोच ने हौसला बढ़ाया। समझाया कि पिता का सपना था कि देश के लिए खेले। मंजू ने मई- 2023 में मास्को में स्वर्ण पदक जीता। कोच आचार्य किसी खिलाड़ी से फीस नहीं लेते।

निशुल्क दे रहे प्रशिक्षण

भीलवाड़ा. बॉॅस्केटबॉल कोच विजय बाबेल बीस साल से कांवाखेड़ा मैदान पर पसीना बहा शहर के बच्चों को निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। रोज सुबह-शाम नौ से दस घंटे खिलाडि़यों के साथ पसीना बहाते हैं। इनके कई शिष्य देश-विदेश में खेल चुके हैं। वंशिका ने सीरिया में धाक जमाई। मनप्रीत कौर दो बार राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी है। बाबेल एक हजार बच्चों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। विजय खिलाडि़यों से गुरु दक्षिणा में पदक मांगते हैं।

कंटेंट- आकाश माथुर, ललित पी. शर्मा, अतुल आचार्य, अमित दवे