यहीं वजह है कि कभी समतल दिखने वाला तालाब में जगह-जगह गड्ढे हो गए। तालाब से सिंचाई के लिए निकल रही नहरों की हालत और दयनीय है। क्षतिग्रस्त नहरों की मरम्मत को अरसा बीत गया। नहरों के ऊपर मकान बनाकर अतिक्रमण कर लिया गया। इन सब हालातों को लेकर ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा।
ईंट-भटटों पर बेचा जा रहा
तालाब के पेटे में होते बड़े-बड़े गडढ़ों को देखते हुए 4 अप्रेल 2011 को उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी। इसके बाद भी अदालत के आदेश की पालना नहीं हो रही। ट्रैक्टर चालक दिन-रात मिटटी दोहन कर सरपट दौड़ते रहते हैं। इनको दो गुना दामों में ईट-भट्टों पर बेचा जा रहा है। मिटटी दोहन को लेकर बीते माह थाना परिसर में हुई बैठक में जिला कलक्टर आशीष मोदी और पुलिस अधीक्षक आदर्श सिधू को भी ग्रामीणों ने हालात से अवगत कराया था।
सोलह साल पूर्व छलका था
तालाब बीते वर्षो में सिर्फ दो बार छलका है। 16 साल पूर्व 2006 में मांडल तालाब छलका था। इससे पूर्व सन-1973 में लबालब हुआ। चौदह फीट भराव क्षमता वाले तालाब पर डेढ़ किमी लंबी और पचास मीटर चौड़ी पाल है। पाल चौड़ी होने से अब तक यह सुरक्षित है। पाल पर सैकड़ों पेड़ लगे हैं। इससे तालाब की खूबसूरती बढ़ गई है। करीब छह किमी क्षेत्र में फैले तालाब से हर साल आधा दर्जन गांवों की लगभग छह हजार बीघा में सिंचाई होती है। तेरह सौ साल पहले मांडू राव ने तालाब का निर्माण करवाया था।
बजट का इंतजार
तालाब के जीर्णोद्धार के लिए वितीय वर्ष बजट घोषणा में शामिल करने के लिए प्रस्ताव बना कर भेजा है। बजट मिलते ही मरम्मत का काम शुरू किया जाएगा।
- गोपाल लाल जाट, कनिष्ठ अभियंता, जल संसाधन विभाग
तालाब के जीर्णोद्धार के लिए वितीय वर्ष बजट घोषणा में शामिल करने के लिए प्रस्ताव बना कर भेजा है। बजट मिलते ही मरम्मत का काम शुरू किया जाएगा।
- गोपाल लाल जाट, कनिष्ठ अभियंता, जल संसाधन विभाग