सुरेश जैन
भीलवाड़ा. जैन संत आदित्य सागर ने कहा कि विदेशी विद्वान वाराणसी व पुड्डुचेरी में प्राचीन भारतीय लिपियों का ज्ञान ले रहे हैं। वे भारतीय सभ्यता का अध्ययन कर रहे हैं लेकिन हमारे युवा विदेशी संस्कृति के पीछे पागल हैं।
पुरातन काल में भारतीय मुनि व ऋषियों ने अपने ज्ञान को पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने को चट्टानों पर शिलालेख, ताड़पत्र, ताम्रपत्र पर ब्राह्मी लिपि में लिखा लेकिन लिपि के ज्ञान के अभाव में हम सांस्कृतिक विरासत समझ नहीं पा रहे है। आरके कॉलोनी आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में विराजे मुनि ने राजस्थान पत्रिका से बातचीत की।
उन्होंने बताया कि ओडिशा के उदयगिरी में सम्राट खारवेल तथा सारनाथ में अशोक से लेकर चन्द्रगिरी तक 650 से अधिक शिलालेख हैं। कर्नाटक, तमिलनाडू में 70 हजार से अधिक शिलालेख हैं। अधिकांश ब्राह्मी लिपि में लिखे हैं, जिनका अनुवाद नहीं हो पाया है। यह शिलालेख ब्राह्मी लिपि में प्राकृत भाषा में लिखे हैं। उन्होंने सलाह दी कि भारतीय विरासत को संरक्षित करने के लिए केन्द्र पाठ्यक्रम में भी ब्राह्मी लिपि शामिल करे।
लिपि के लिए क्या कर रहे-
मुनि शिलालेखों को संरक्षित रखने के लिए युवाओं को ब्राह्मी लिपि सिखा रहे हैं। अप्रमित सागर की ब्राह्मी लिपि कक्षा में 7 साल के रागांश से लेकर 65 वर्ष के ब्रह्मचारी जिनेश भैया लिपि सीख रहे हैं। कक्षा में अलका कोठारी, संजय कासलीवाल, कविता सेठी, मैना जैन, मृदुला सेठी, स्नेह सेठिया, अंजु पाटौदी, चित्रा सोनी, पिंकी रारा, नेहा कोठारी विद्यार्थी हैं। उन्होंने बताया कि ब्राह्मी प्रथम लिपि थी, जिसे राज्य अवस्था में आदिनाथ भगवान ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को अक्षर ज्ञान देते सिखाई। पुत्री के नाम पर ही ब्राह्मी लिपि प्रचलित हुई। दूसरी पुत्री सुन्दरी को अंक लिपि सिखाई। प्राचीन काल से ईसा तक कई ग्रंथ व शिलालेख ब्राह्मी लिपी में लिखे गए। समय के साथ विभिन्न प्रान्तों में अन्य लिपियों व भाषाओं का विकास हुआ।
लिपियों की जननी कौन है
मुनि के अनुसार द्रविड लिपियां, कन्नड, हाडे कन्नड, तमिल या देवनागरी की बात करे तो सारी लिपियों की जननी ब्राह्मी लिपि है। विदेशों में यूनानी, फोनेशियायी, अर्मानी लिपियां विकसित हुई। ब्राह्मी लिपि में भी 36 अक्षर एवं मात्राएं प्रयोग में आती है।
भाषा व लिपि क्या है
भावों की अभिव्यक्ति जिस रूप में की जाती है, वह भाषा है। भाषा को जिस तरह लिखा जाता है, वह लिपि है। जिसने ब्राह्मी लिपि सीख ली, उसे अन्य लिपियों का ज्ञान आसानी से हो जाता है। किसी प्राचीन लिपि के अनुवाद में उलझ जाते हैं तो उस शब्द को ब्राह्मी लिपि से तुलना कर समझा जाता है।
आपने कहां से सिखी
ब्राह्मी लिपि के ज्ञान से अच्छा रोजगार मिल सकता है। दुर्भाग्य है कि प्राचीन लिपियों के विद्धान कम बचे हैं। हाडे कन्नड के देश में मात्र 20 जानकार बचे हैं। इनमें 10 स्वयं महाराज के शिष्य हैं। महाराज ने डॉ. टी. कृष्णमूर्ति जो कई लिपियों के विद्धान हैं से ब्राह्मी, हाडे कन्नड़ व कन्नड़ सीखी है।मैंने डॉ. टी. कृष्णमूर्ति जो कई लिपियों के विद्धान हैं से ब्राह्मी, हाडे कन्नड़ व कन्नड़ सीखी है।