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गोबर की बना रहे लकडि़यां, जो होलिका दहन में होगी इस्तेमाल

होलिका दहन के लिए नौगांवा की माधव गोशाला लकडि़यां व कंडे तैयार कर रही है। ये गोबर की लकड़ी अन्य लकड़ी की तरह ही हैं। इनकी बिक्री से आय गोशाला में गायों के संवर्द्धन व संरक्षण पर खर्च होगी। गोशाला से जुड़े गोविंदप्रसाद सोडाणी बताते हैं कि इससे सालाना लाखों पेड़ बच जाते हैं। शहर में कई जगह होली में कंडे का उपयोग होता है। दाह संस्कार में भी गोबर की लकडि़यों का प्रयोग हो, इसका प्रयास कर रहे हैं।  

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गोबर की बना रहे लकडि़यां, जो होलिका दहन में होगी इस्तेमाल

गोबर की बना रहे लकडि़यां, जो होलिका दहन में होगी इस्तेमाल

होलिका दहन के लिए नौगांवा की माधव गोशाला लकडि़यां व कंडे तैयार कर रही है। ये गोबर की लकड़ी अन्य लकड़ी की तरह ही हैं। इनकी बिक्री से आय गोशाला में गायों के संवर्द्धन व संरक्षण पर खर्च होगी। गोशाला से जुड़े गोविंदप्रसाद सोडाणी बताते हैं कि इससे सालाना लाखों पेड़ बच जाते हैं। शहर में कई जगह होली में कंडे का उपयोग होता है। दाह संस्कार में भी गोबर की लकडि़यों का प्रयोग हो, इसका प्रयास कर रहे हैं।

जरूरी होने पर अन्य गोशालाओं से गोबर खरीदने की योजना है। गोशाला इस होली के लिए आयोजन समितियों से गोबर की लकडि़यां काम में लेने की अपील कर रही है। गोशाला में लगाई आटा चक्कीनुमा मशीन में लगे माचों से दो, ढाई व साढ़े तीन फीट की लकडि़यां बनाई जा रही है। इन्हें 8-10 दिन सूखने में लगते हैं। यदि अंतिम संस्कार में काम में लिया जाए तो इससे एक अंतिम संस्कार में करीब चार से पांच हजार रुपए खर्च आएगा तथा पेड़ भी बचेंगे।

लकड़ी से प्रति अंतिम संस्कार में करीब 6 से 7 हजार रुपए खर्च होते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से गायों को सेवा भी होगी। गोशाला में गो काष्ठ मशीन को लगातार चलाने के लिए दूसरी गोशाला के साथ ही निजी डेयरियों में पल रही गायों का गोबर भी खरीदेंगे। लोग भी अपनी गायों को लावारिस नहीं छोड़ेंगे। शहर में लावारिस पशु कम नजर आएंगे।