
होम्योपैथी चिकित्सा के प्रति लोगों का रुझान लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले 10सालों में इस पद्धति से इलाज लेने वालों की संख्या दुगुनी हो गई है
भीलवाड़ा।
होम्योपैथी चिकित्सा के प्रति लोगों का रुझान लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले 10सालों में इस पद्धति से इलाज लेने वालों की संख्या दुगुनी हो गई है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण एेलोपैथिक दवाओं का ज्यादा साइड इफेक्ट होना है। होम्योपैथी दवा की खासियत यह है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। हालांकि यह दवा एेलोपैथिक जितना तेज असर नहीं करती है, लेकिन कुछ ही समय में रोग को जड़ से खत्म कर देती है।
यह कहना है राजकीय होम्यापैथिक चिकित्सालय के डॉ. घनश्याम सिंह चुण्डावत का। उन्होंने बताया कि यह पद्धति १० वर्ष तक के बच्चों में ज्यादा कारगर है। इस उम्र के बच्चों को एेलोपैथिक दवा देने से जहां तक हो सके बचना चाहिए। छोटे बच्चों के सर्दी-जुखाम, बुखार में इस दवा का प्रयोग करना ही बेहतर होता है। शिक्षित लोग तो अब एलोपैथ को छोड़कर होम्योपैथ की ओर अग्रसर होने लगे है। गांवों से भी बड़ी संख्या में रोगी आने लगे है। इस दवा से पुरानी बीमारी से ग्रसित रोगी को सही होने में समय लगता है। बाकि कई रोगी तो एेसे हैं जो दो घंटे में भी इस बीमारी से ठीक हुए हैं।
चिकित्सालय में वर्तमान में 100 से 150 रोगी रोज इलाज के लिए पहुंचते है। इसी अस्पताल से सेवानिवृत हुए चिकित्सक डॉ. गिरीराज सिंह नरूका ने बताया कि चर्म रोग, पथरी व अस्थमा के रोगियों के लिए तो यह पद्धति वरदान है।
चर्म रोग में जहां एलोपैथिक दवा साइड इफेक्ट करती है, वही इसका साइड इफेक्ट बिल्कुल न के बराबर है। इस पद्धति से गंभीर रोगों के इलाज में समय जरूर लगता है लेकिन रोग के वापस होने की संभावना खत्म हो जाती है। राजकीय होम्योपैथ चिकित्सालय महात्मा गांधी की डॉ. मनीला श्रीवास्तव व सर्किट हाउस के समीप चिकित्सालय के डॉ. अखिलेश धानका ने भी इसे कारगर बताया। इन चिकित्सालयों में ५० रोगी रोज इलाज के लिए पहुंचते हैं।
विश्व की दूसरी सबसे लोकप्रिय चिकित्सा पद्धति है होम्योपैथी
होम्योपैथी चिकित्सक डॉ. लव व्यास ने बताया कि प्रतिवर्ष 10 अप्रेल को विश्व होम्योपैथी दिवस दुनिया भर में मनाया जाता है। इसी दिन 263 वर्ष पूर्व होम्योपैथी के जनक डॉ क्रिश्चियन फ्रेडरिक सेमुअल हैनीमैन का जन्म जर्मनी में हुआ था। होम्योपैथी विश्व में दूसरी सबसे लोकप्रिय चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथी का आविष्कार 1796 में डॉ हैनीमैन द्वारा कलैन्स मटीरिया मेडिका के अनुवाद के दौरान हुआ था।
समरूपता के सिद्धांत पर आधारित यह चिकित्सा पद्धति बिना किसी साइड इफेक्ट के बीमारियों का इलाज कर सकती है। एक होम्योपैथिक चिकित्सक का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए रोग लक्षणों के अनुसार वैसे ही लक्षण उत्पन्न करने वाली औषधि का चुनाव करना होता है। रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी अधिक समानता होगी, रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी अधिक रहेगी।
एक मिथक प्राय:
यह देखा गया है कि होम्योपैथिक दवाइयां बहुत धीरे असर करती है, परन्तु यदि पूर्ण लक्षणों की समानता के अनुसार औषधि दी जाए तो यह जल्दी असर करती है। विभिन्न रोगों के लिए होम्योपैथी में 4000 दवाइयां उपलब्ध है। इस चिकित्सा पद्धति के अनुसार रोग का आरंभ स्थूल शरीर में नहीं बल्कि सूक्ष्म शरीर में होता है। होम्योपैथी दवा द्वारा सूक्ष्म शरीर को स्वस्थ किया जाता है और स्थूल शरीर स्वत: ही रोगमुक्त हो जाता है। होम्योपैथी एक सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति है और वर्तमान समय में कई जटिल बीमारियों जैसे पथरी, अस्थमा, एलर्जी, त्वचा व बालों संबन्धित रोग आदि का उपचार बड़ी सरलता से इस पद्धति से किया जा सकता है ।
Published on:
10 Apr 2018 01:03 pm
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