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नेशनल लोक अदालत बनी खुशियों की अदालत, 16 दंपती फिर साथ आए

साल की आखिरी नेशनल लोक अदालत भिण्ड में केवल न्यायिक प्रक्रिया का मंच नहीं रही, बल्कि यह कई बिखरते परिवारों के लिए खुशियों और नई शुरुआत का साक्षी बनी।

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साल की आखिरी नेशनल लोक अदालत भिण्ड में केवल न्यायिक प्रक्रिया का मंच नहीं रही, बल्कि यह कई बिखरते परिवारों के लिए खुशियों और नई शुरुआत का साक्षी बनी।

साल की आखिरी नेशनल लोक अदालत भिण्ड में केवल न्यायिक प्रक्रिया का मंच नहीं रही, बल्कि यह कई बिखरते परिवारों के लिए खुशियों और नई शुरुआत का साक्षी बनी। कुटुंब न्यायालय में लंबित दांपत्य विवादों के 16 प्रकरणों में आपसी सुलह कराते हुए पति-पत्नी को फिर से साथ रहने के लिए राजी किया गया। एक साथ इतने दंपतियों के बीच सुलह का यह मामला प्रदेश में संभवतः पहला माना जा रहा है, जिसने नेशनल लोक अदालत को यादगार बना दिया।

कुटुंब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दिलीप कुमार गुप्ता के सतत प्रयास, धैर्यपूर्ण काउंसिलिंग और मानवीय दृष्टिकोण का ही परिणाम रहा कि लंबे समय से अलग रह रहे पति-पत्नी अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर फिर एक-दूसरे का हाथ थामने को तैयार हुए। इन दंपतियों ने न केवल आपसी विवाद समाप्त किए, बल्कि आजीवन साथ निभाने का संकल्प भी लिया। इस खुशी के अवसर पर पक्षकारों ने मिठाइयां बांटीं और न्यायालय परिसर में एक उत्सव जैसा माहौल नजर आया।

बच्चों के भविष्य पर पड़ता है असर

प्रधान न्यायाधीश गुप्ता ने दोनों पक्षों को उनके व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ बच्चों और परिवार के भविष्य पर पड़ने वाले प्रभावों को व्यावहारिक और कानूनी दोनों दृष्टि से समझाया। उन्होंने बताया कि निरंतर विवाद का सबसे अधिक दुष्प्रभाव बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास पर पड़ता है। यह बात पति-पत्नी के साथ उनके परिजनों को भी समझ में आई, जिसके बाद सभी ने सहमति से सुलह का रास्ता चुना।

नेशनल लोक अदालत के दौरान कुटुंब न्यायालय में दांपत्य विवाद सहित कुल 60 प्रकरणों का आपसी सहमति के आधार पर निराकरण किया गया। न्यायालय में प्रचलित प्रकरणों को आपसी रजामंदी से वापस लेकर दंपतियों ने नए सिरे से जीवन शुरू करने का निर्णय लिया। सुलह के बाद पति-पत्नी ने एक-दूसरे को माला पहनाकर बेहतर भविष्य के लिए मिलकर प्रयास करने का संकल्प लिया। कुटुंब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दिलीप कुमार गुप्ता की निरंतर काउंसिलिंग के बाद विवाद करके अलग रह रहे पति-पत्नी ने केवल आपस में सुलह की बल्कि आजन्म साथ रहने की कसमें भी खाईं। पक्षकारों ने इस खुशी के मौके पर मिठाइयां बांटीं। न् यायालय परिसर में दंपतीयों को माला पहनाकर सुखी गृहस्थ जीवन की शुभकनाएं दी गईं। कुटुंब न्यायालय में दांपत्य विवाद सहित कुल 60 प्रकरणों का आपसी सुलह के आधार पर निराकरण कराया गया। कुटुंब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश गुप्ता ने परिवारों के बीच सुलह की पहल स्वयं की। दोनों पक्षों को उनके और बच्चों के भविष्य के भले-बुरे पर व्यावहारिक और कानूनी दोनों पहलुओं से समझाया। समझाया कि विवाद करने में कोई लाभ नहीं है और इसका असर पूरे परिवार के साथ बच्चों के भविष्य पर भी पड़ता है।

सामूहिक विवाह सम्मेलन जैसा दृश्य

कुटुंब न्यायालय की खंडपीठ में जब 16 जोड़े एक साथ सुलह के बाद माला पहनकर एकत्र हुए, तो पूरा दृश्य किसी सामूहिक विवाह सम्मेलन जैसा प्रतीत हुआ। वर्षों से न्यायालयी प्रक्रिया में उलझे परिवारों के बीच सुलह होते देख वहां मौजूद लोग भावुक हो गए। यह पहल न केवल परिवारों को जोड़ने वाली रही, बल्कि इससे न्यायालय के लंबित मामलों के बोझ को कम करने में भी मदद मिली।

न्याय के साथ सामाजिक समरसता का संदेश

कुटुंब न्यायालय ने कहा कि सुलह के माध्यम से मामलों का निपटारा होने से समाज में सकारात्मक वातावरण बनता है। नेशनल लोक अदालत त्वरित न्याय के साथ सामाजिक समरसता स्थापित करने का सशक्त माध्यम है। पक्षकार यदि आपसी संवाद और समझदारी से आगे बढ़ें, तो विवादों का समाधान संभव है। भिण्ड की यह नेशनल लोक अदालत इसी संदेश के साथ साल की सबसे सुखद और प्रेरणादायी अदालत बनकर सामने आई।