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एक-एक लाख रुपए की फाइलों से करोड़ों के काम की जांच को पहुंचा दल

एक-एक लाख रुपए की फाइलें बनाकर 35 करोड़ रुपए से ज्यादा के कार्य कागजों में कराने के मामले की जांच के लिए भोपाल से संयुक्त दल शुक्रवार को भिण्ड पहुंचा। दल ने नगरपालिका के उपयंत्री व अन्य अमले के साथ वार्ड क्रमांक सात एवं 11 में कुछ सडक़ों का मौका मुआयना किया है। फाइलों की स्वीकृति तो नियमों से ज्यादा हुई हैं, लेकिन मौके पर काम की जांच अभिलेख से की जाएगी। जरूरत पडऩे पर चलित लैब भी बुलवाई जाएगी।

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एक-एक लाख रुपए की फाइलों से करोड़ों के काम की जांच

गौरी किनारे सावित्रीनगर के पास जांच करती टीम।

भिण्ड. जांच दल ने नगरपालिका से एक लाख रुपए से कम के स्वीकृत और कराए गए समस्त निर्माण कार्यों की फाइलें मांगी हैं, लेकिन अभिलेख उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। सीएमओ कई दिनों से अवकाश पर हैं, ऐसे में प्रभारी सीएमओ अमित शर्मा, निर्माण उपयंत्री विकास महतो सहित अन्य अधिकारी जांच के दौरान मौके पर पहुंचे और दल के साथ रहे। दल अधीक्षण यंत्री जगदीश प्रसाद पारा के नेतृत्व में पहुंचा है। दल के मुखिया अधीक्षण यंत्री जेपी पारा ने बताया कि विधानसभा में ध्यानाकर्षण सूचना के माध्यम से यह मामला उठाया गया था, जिस पर जांच दल गठित किया गया है। इन कार्यों में डब्ल्यूबीएम, सीसी, बाउंड्रीवाल, स्लैब आदि के कार्य शामिल हैं। यह फाइलें एक लाख रुपए से नीचे की हैं। कार्यों का भौतिक सत्यापन किया जाएगा, अभी तो अभिलेख मांगा है, अभिलेख मिलने के बाद मिलान किया जाएगा। एमबी से भी जाचेंगे, जरूरी होगी तो लैब भी बुलाई जाएगी। पारा ने माना कि एक माह में नगरपालिका स्तर पर तीन-चार फाइल ही एक लाख रुपए तक की स्वीकृत की जा सकती हैं, यहां ज्यादा हुईं हैं, यही जांच का विषय है। इन कार्यों में भ्रष्टाचार के सवाल पर पारा ने कहा कि अभी यह नहीं कर सकते कि भ्रष्टाचार हुआ है, लेकिन फाइलें नियम विरुद्ध बनी हैं, इसकी जांच होनी है। पत्रिका ने 15 फरवरी को ही ‘गड़बड़ी: एक-एक लाख रुपए की फाइलों से कागजोंं में हुए 35 करोड़ रुपए से ज्यादा के काम’ शीर्षक से प्रमुखता से खबर प्रकाशित की थी। बता दें कि विधानसभा में विधायक कुशवाह के प्रश्न पर नगरीय प्रशासन मंत्री ने जो जवाब दिया था उस पर आपत्ति करते हुए विधायक ने कहा था कि अधिकारियों ने मंत्री को गलत जानकारी दी है। हकीकत यह है कि निर्माण कार्यों के नाम पर सडक़ों को खोदकर डाल दिया गया है, नालियां भी टूटी व उखड़ी हैं, जिससे पेयजल की पाइप लाइनें लीकेज हो गई हैं और दूषित पेयजल आपूर्ति से बीमारियां फैल रही हैं। विधायक ने कहा कि हमारे पास 35 करोड़ रुपए से अधिक के कार्य स्वीकृत करने दस्तावेज हैं। इन कार्यों के दौरान नगर पालिका में बतौर सीएमओ जयरानारायण पारा, सुरेंद्र शर्मा, ज्योति सिंह, ओमनारायण सिंह और एसडीएम इस अवधि में पदस्थ रहे। वर्तमान में वीरेंद्र तिवारी बतौर सीएमओ पदस्थ हैं।
विधायक ने विधानसभा में उठाया था मामला
भिण्ड विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह ने एक लाख रुपए से कम की चार हजार से अधिक फाइलें बनाकर बिना काम किए भुगतान लेने का आरोप लगाते हुए विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रश्न लगाया था। प्रश्न पहुंचते ही आयुक्त नगरीय प्रशासन भरत यादव ने जांच दल गठित कर दिया। जांच दल संयुक्त संचालक नगरीय प्रशासप एवं विकास ग्वालियर सविता प्रधान, अधीक्षण् यंत्री जगदीश प्रसाद पारा, कार्यपालन यंत्री पीके द्विवेदी एवं राजीव पांडे को शामिल कर बनाया गया है। जांच दल को 15 दिन में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है, लेकिन फाइलों की संख्या अधिक देखते हुए जांच पूरी होने में एक माह से अधिक का समय भी लग सकता है। जांच की स्थिति नगरपालिका से अभिलेख उपलब्ध कराने पर निर्भर रहेगी। नगरपालिका के अधिकारी अभिलेख उपलब्ध कराने मेंं टालमटोल कर रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि अभिलेख नगरपालिका में पूरा उपलब्ध भी नहीं है। जिन ठेकेदारों ने कार्य कराए वे अपनी फाइलें साथ में ही ले गए।
ढाई सौ से ज्यादा फाइलें नहीं बन सकतीं
विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह ने विधानसभा में प्रश्न के दौरान कहा कि लेखा नियम 2018 के अनुसार सीएमओ को एक माह में एक लाख रुपए तक की एक ही फाइल करने का अधिकार है। हालांकि अधीक्षण यंत्री पारा के अनुसार तीन से चार फाइलें बनाई जा सकती हैं। चार फाइल भी एक माह में मान ली जाएं तो एक साल में 48 फाइलें ही बन सकती हैं। पांच साल में 240 फाइलें ही इस प्रकार बन सकती हैं। लेकिन विधानसभा में नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री कैलाश विजय वर्गीय स्वयं स्वीकार कर चुके हैं कि एक लाख रुपए से कम की तीन हजार 510 फाइलें स्वीकृत की गई हैं। इनमें से दो जार 881 कार्य पूर्ण कराने का दावा भी किया गया है। जो कार्य कराए गए हैं, उसके अनुसार भी 28 करोड़ रुपए से ज्यादा के कार्य होते हैं। निर्माण शाखाओं के उपयंत्री आंख बंद करके सभी कार्यों का एस्टीमेट बनाते रहे और सीएमओ मंजूर करते चले गए। नियमों को ताक पर रखकर लेखा शाखा भुगतान भी करती गई। ऑडिट भी फर्जी होते गए।
कार्य स्वीकृति और भुगतानों पर रोक
जांच शुरू होने को देखते हुए आयुक्त नगरीय प्रशासन एवं विकास भरत यादव ने नगरपालिका को आदेश दिए हैं कि एक लाख से नीचे के निर्माण कार्यों का न तो नवीन एस्टीमेट बनाया जाए और न ही कोई बिल तैयार किया जाएगा। एक लाख रुपए से नीचे के कार्यों की ऑडिट भी नहीं होगी और जिनकी ऑडिट हो चुकी हैउनके भी ऑनलाइन भुगतान जांच पूरी होने तक नहीं किए जाएंगे।

कथन-
विधानसभा प्रश्न के तारतम्य में चार सदस्यीय जांच दल गठित किया गया है। जांच के लिए यह पहला निरीक्षण है, मौके पर कुछ कार्य देखे हैं। संबंधित अभिलेख मांगा है, उससे मिलान किया जाएगा। आवश्यक होने पर चलित लैब भी लाएंगे, फिर मौके पर एमबी से जांच करेंगे। कार्यों में भ्रष्टाचार हुआ है या नहीं यह तो पूरी जांच के बाद ही सामने आएगा। फाइलें तो नियम विरुद्ध स्वीकृत हुई हैं।
जगदीश पारा, एसई, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग, ग्वालियर।