22 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

मन को वश में करने पर शरीर सहज ही वश में हो जाता है : विराग सागर

चैत्यालय आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में गणाचार्य विराग सागर ने कहा

less than 1 minute read
Google source verification
मन को वश में करने पर शरीर सहज ही वश में हो जाता है : विराग सागर

श्रद्धालुओं को संबोधित करते गणाचार्य।

भिण्ड. चैत्यालय आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान गणाचार्य विराग सागर ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि मोक्ष साधना के साधक आत्म ध्यान की लीन अवस्था में अपने पद का भी विकल्प नहीं करते, क्योंकि पद का संबंध केवल देह के रहने तक ही है। देह की समाप्ति होने पर पद भी समाप्त हो जाते हैं। इसलिए दिगंबर आचार्य अपनी समाधि के पूर्व ही अपने पद को सुयोग्य शिष्यों को दे देते हैं। अथवा सुयोग्य शिष्यों के ना होने पर भगवान की साक्षी में अपने आचार्य पद का त्याग कर देते हैं। फिर वे किसी प्रकार का कोई विकल्प नहीं रखते, क्योंकि विकल्प ही मुक्ति साधना में बाधक होते हैं।


गुरुवर ने बताया सच्चे साधक साधना के लिए वचन को वश में करने के लिए अधिक से अधिक मौन रहने का प्रयास करते हैं अथवा जब भी बोलते हैं तो हित प्रिय वचनों का प्रयोग करते हैं। मन को वश में करने के लिए मन में हिंसा आदि रूप भावों को भी उत्पन्न नहीं होने देते और जिन्होंने मन वचन को वश में कर लिया उनकी काया यानी शरीर सहज ही वश में हो जाता है। अहिंसा व्रत के पालन के लिए वे बिना प्रयोजन के एक कदम भी नहीं रखना चाहते, जिससे किसी जीव की हिंसा ना हो साथ ही वे कभी भी लाइट आदि के प्रकाश में नहीं अपितू सूर्य के प्रकाश में आहार करते हैं। इतनी कठिन साधना के साधक ही सच्ची मात्रा निर्विकल्प साधना कर मुक्ति को प्राप्त कर पाते हैं। गणाचार्य ने कहा जिनवाणी को सुनने का सौभाग्य महान पुन्योदय से प्राप्त होता है और सुनी हुई जिन देशना सातवें नरक में भी सम्यक दर्शन का कारण बनती है। निरंतर हम अपने जीवन में जिन देशना का श्रवण कर उस पर श्रद्धा न करें। जो हमारे लिए उपलब्धि का साधन बन सके।