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दो साल में छह गुना बढ़े कैंसर के मरीज, प्रदेश भर से एक साल में एम्स पहुंचे 36 हजार कैंसर रोगी

एम्स भोपाल में प्रतिदिन पहुंच रहे सवा सौ मरीज, भोपाल के आसपास के जिलों से लेकर रीवा, सीधी तक के मरीज शामिल

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भोपाल

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Sunil Mishra

Mar 23, 2024

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एम्स भोपाल में बीते साल 36 हजार 643 कैंसर रोगी इलाज के लिए पहुंचे। यह आंकड़ा साल 2021 में आए 6 हजार 626 रोगियों के मुकाबले 6 गुना अधिक है। यानी बीते साल मोटे तौर पर 65 दिन छुट्टियों के हटा दिए जाएं तो हर दिन 120 से 125 कैंसर रोगी एम्स पहुंचे हैं। इसमें भोपाल समेत पास के जिलों रायसेन, होशंगाबाद व सीहोर के मरीजों की संख्या अधिक है।
यही नहीं भोपाल से दूर के जिले सीधी, पन्ना, रीवा, ललितपुर समेत अन्य से भी रोजाना मरीज एम्स पहुंच रहे हैं। यह आंकड़े प्रदेश के मरीजों को घर के पास इलाज मुहैया कराने के स्वास्थ्य विभाग के दावों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

फरवरी में आए सबसे ज्यादा कैंसर रोगी
अब तक एक माह में सबसे ज्यादा मरीज साल 2024 के फरवरी माह में आए। बीते माह करीब चार हजार मरीज पहुंचे। मरीजों की संख्या एम्स में लगातार बढ़ रही है। जिससे मरीजों को लंबी वेटिंग का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सौ से तीन सौ किमी दूर से आए मरीजों के पास रात बिताने के लिए छत तक नहीं होती है। वे कई दिनों तक रैनबसेरा से लेकर फुटपाथ तक पर सोते हुए नजर आते हैं।

एम्स में इलाज की यह सुविधाएं

एम्स के डायरेक्टर डॉ अजय सिंह ने कहा कि हम स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयासरत है। विभाग के पास एडवांस्ड लीनियर एक्सेलरेटर आईएमआरटी, वीएमएटी, आईजीआरटी,
एसआरएस, एसआरटी जैसी तकनीक उपलब्ध है। रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. मनीष गुप्ता ने कहा कि कैंसर के आखिरी स्टेज के मरीजों के लिए पैलिएटिव वार्ड है। इसके साथ

कीमोथेरपी के लिए आनेवाले मरीजों के लिए डे केयर वार्ड भी शुरू किया गया है।

एम्स में आए कैंसर रोगी
साल - ओपीडी के आंकड़े

2021 - 6,626
2022 - 18,470

2023 - 36,643

महिलाओं में कैंसर की स्थिति

कैंसर - मामले - कितना बढ़ा
ब्रेस्ट - 33.9 फीसदी - 2.3 फीसदी बढ़ा

सर्विक्स - 12.1 फीसदी - 2.1 फीसदी कम
ओवरी - 7.9 फीसदी - 1.8 फीसदी बढ़ा

पुरुषों में कैंसर की स्थिति

कैंसर - मामले - कितना बढ़ा
मुंह - 16.3 फीसदी - 3.8 फीसदी बढ़ा

जीभ - 8.8 फीसदी - 0.1 फीसदी बढ़ा
लंग्स - 12.1 फीसदी - 0.1 फीसदी बढ़ा

स्रोत - आंकड़े आईसीएमआर के कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के अनुसार दो साल के