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दुर्लभ रोग: तीन पीढ़ी से चली आ रही बीमारी, आधी उम्र में हो जाती है मौत

- मध्यप्रदेश में 43 लाख दुर्लभ रोगी, आनुवांशिक कारणों से 85% बीमार

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फूल बरसाकर लगाई गुलाल, होली के गीतों पर झूमी महिलाएं,

भोपाल। मध्य प्रदेश में करीब 43 लाख लोग दुर्लभ बीमारी से ग्रसित हैं। इनमें से 85 फीसदी आनुवांशिक कारणों से बीमार हैं। इन्हीं में से एक है राजगढ़ के खिचलीपुर का परिवार, जिनकी तीसरी पीढ़ी भी बीमारी का दंश झेल रही है। युवा अवस्था तक परिवार के सदस्यों को बीमारी जकड़ लेती है और आधी उम्र में मौत हो जाती है। इसमें धीरे-धीरे शरीर जकडऩे लगता है और शरीर सूखने लगता है। परिवार के सदस्यों का कहना है कि देशभर में इलाज करवाने के बाद भी किसी को राहत नहीं मिली। परिवार के कई सदस्यों की मौत हो चुकी है। अभी भी तीन-चार लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं।

उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मरीज
देशभर में 7.26 करोड़ लोग 7 हजार दुर्लभ बीमारियों से ग्रसित हैं। भारत दुर्लभ रोगियों की संख्या में दुनिया में चौथे नंबर पर है। विश्व में सबसे ज्यादा ऐसी बीमारी के मरीज अफगानिस्तान में हैं। भारत में 1.19 मरीज उत्तरप्रदेश में हैं। मध्यप्रदेश छठवां राज्य है, जहां 43.53 लाख मरीज हैं।

30 फीसदी मरीजों की मौत
चिंता की बात यह है कि इन बीमारियों का कोई इलाज नहीं है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और बंगलूरु के डॉक्टरों का कहना है कि 85 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियां आनुवांशिक कारणों से होती है। 50 फीसदी मामलों में बच्चे प्रभावित होते हैं। 30 फीसदी मरीजों की 5 वर्ष की उम्र से पहले मौत हो जाती है।

इन राज्यों में सबसे ज्यादा मरीज
राज्य : दुर्लभ रोगी
उत्तरप्रदेश : 11944891
महाराष्ट्र : 6742378
प. बंगाल : 5480864
तमिलनाडु : 4328337
आंध्र प्रदेश : 5079932
मध्यप्रदेश : 4353854
राजस्थान : 4117261
छत्तीसगढ़ : 1532412
(स्रोत:विकसित देशों में दुर्लभ रोगियों की पहचान के बाद भारत में 2011 की जनगणना पर आधारित डेटा)

ऐसे समझिए मरीजों की पीड़ा
रतलाम: चेहरे पर बाल
रतलाम के नंदलेटा गांव के ललित पाटीदार (17) को वेयरवूल्फ सिंड्रोम नाम की बीमारी है। इससे ललित के चेहरे और पूरे शरीर पर बड़े-बड़े बाल हैं। छह-सात साल की उम्र में उन्हें इसका पता चला था। ललित ने बताया लाखों रुपए करने के बाद भी राहत नहीं है। डॉक्टरों का कहना है कि 21 साल की उम्र पूरी होने के बाद प्लास्टिक सर्जरी होगी, तब शायद कुछ फायदा हो।

उज्जैन: अथर्व को नहीं लग पाया 16 करोड़ का इंजेक्शन
उज्जैन निवासी पवन पवार का दो साल का बेटा अथर्व स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी नामक दुर्लभ बीमारी से जूझ रहा है। बच्चे को डॉक्टर ने 16 करोड़ का इंजेक्शन लगवाने की सलाह दी थी, लेकिन पैसों की कमी के कारण इंजेक्शन नहीं लग पाया। बच्चे के पिता पवन ने बताया कि अथर्व की हालत ठीक नहीं है।

रतलाम: दिन में अंधेरा रात में आंखों में रोशनी
रतलाम के मझोडिया गांव की आदिवासी बेटी अंतिमबाला दुर्लभ बीमारी हेमेरालोपिया से पीडि़त है। सूर्योदय के साथ उसे दिखना बंद हो जाता है। जैसे ही अंधेरा होता है, उसे सब कुछ दिखाई देने लगता है। कक्षा 6 में पढऩेे वाली अंतिमबाला रात 10 बजे से बाद से तड़के 3 बजे तक पढ़ाई करती है।

बिलासपुर: सृष्टि का चल रहा इलाज
मांसपेंशियों की दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 से पीडि़त मासूम सृष्टि का बिलासपुर अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा है। डॉक्टरों ने बच्ची की जान बचाने 16 करोड़ का इंजेक्शन लगाना बताया था। एसईसीएल में कार्यरत सृष्टि के पिता सतीश कुमार इलाज का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है, इसलिए उसे इंजेक्शन नहीं लग पाया।

रोकथाम के लिए जागरुकता जरूरी
बीमारी से बचाव के लिए जागरुकता बहुत जरूरी है, इसलिए अब बच्चे के पैदा होते ही न्यूबोर्न स्क्रीनिंग करके पता लगाते हैं कि कहीं उसे कोई जानलेवा बीमारी तो नहीं है।
- डॉ.भावना ढींगरा भान, शिशु रोग विशेषज्ञ एम्स भोपाल

बिना पहचान के अधिकांश की हो रही मौत
इस बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं है। जो जांचें और दवाइयां हैं, वो बहुत महंगी हैं, इसलिए अधिकांश मरीजों में बीमारी की पहचान ही नहीं हो पाती है।
- डॉ. सुशील कुमार, शिशु रोग विशेषज्ञ, एक्यूटिव बोर्ड मेंबर भारतीय शिशु रोग अकादमी