29 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

उज्जैन में रात नहीं गुजारता कोई सीएम, इन 5 मिथ से क्यों डरते हैं नेता!

हर जगह का अपना एक 'मिथ' होता है, जिसको लेकर कई पीढ़ियों तक में खौफ बना रहता है। ऐसे ही कई मिथ मध्यप्रदेश की अलग-अलग जगहों को लेकर सदियों से बने हुए हैं।

5 min read
Google source verification

image

gaurav nauriyal

Dec 23, 2016

myth about india

myth about india

भोपाल. हर जगह का अपना एक 'मिथ' होता है, जिसको लेकर कई पीढ़ियों तक में खौफ बना रहता है। ऐसे ही कई मिथ मध्यप्रदेश की अलग-अलग जगहों को लेकर सदियों से बने हुए हैं। हालांकि, इनमें लगभग सभी मिथ 'राजपाट' से ही जुड़े हुए हैं और आम लोगों का इनसे प्रत्यक्ष तौर पर कोई जुडाव नहीं है।

इस तरह के मिथ को हवा कब मिली इसकी कोई तिथि कहीं दर्ज नहीं है, लेकिन खौफ सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे सरक रहा है। उज्जैन, कामदगिरी पर्वत से लेकर ये 'मिथ' तानसेन समारोह जैसे कार्यक्रम तक से जुड़े हुए हैं। मसलन उज्जैन में सिंधिया परिवार के सदस्य या प्रदेश के मुख्यमंत्री कभी भी रात नहीं गुजारते हैं। ये सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है, लेकिन ये पिछली कई सदियों से एक 'अलिखित' सा नियम बना हुआ है। हालांकि, मजबूरी कहें या फिर संयोग किइन 5 पॉवरफुल मिथ में से एक इसी साल टूट गया है। इस रिपोर्ट में मध्य प्रदेश के ऐसे ही 5 'मिथ' के बारे में आपको बता रहे हैं...

1: राजा महाकाल की नगरी में नहीं रुकते सीएम
मिथ: उज्जैन को लेकर कई सदियों से ये मिथ है कि यहाँ राज परिवार के सदस्य रात नहीं गुजारते हैं। सिंधिया परिवार के सदस्य यहाँ इसी मिथ के चलते रात में नहीं रुकते हैं। इतना ही नहीं ये मिथ आज़ाद भारत के बाद अब तक बना हुआ है और अब इस 'मिथ' के चलते बड़े मंत्री और सीएम यहाँ रात नहीं गुजारते हैं। इसकी बानगी सिंहस्थ के दौरान भी देखने को मिली। सिंहस्थ में मुख्यमंत्री लगातार उज्जैन में रहे, लेकिन शाम ढलते ही वो हमेशा भोपाल वापस लौट आए।

कैसे बनी धारणा: ये धारणा मजबूत हुई एक राज्य में दो राजाओं के न रहने के कांसेप्ट के जरिए। दरअसल माना जाता है कि अवंतिका (उज्जैन) के राजा महाकाल हैं। धारणा है कि जो भी राजा या मुख्यमंत्री यहाँ रात में रुका उसे इसका खामियाजा सत्ता गंवाकर या फिर किसी नुकसान के जरिए उठाना पड़ा। इसी डर के चलते आज भी सत्ताधारी यहाँ रात नहीं गुजारते। हालांकि, इसका कोई आधार नहीं है।

ujjain

मिथ: तानसेन समारोह को लेकर भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों में खौफ नजर आता है। आम धारणा है कि जिस किसी मुख्यमंत्री ने इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया, उसे इसका फल 'कुर्सी' गंवाकर मिला! तानसेन सम्मान की स्थापना 1980 में तत्कालीन अर्जुन सिंह सरकार ने की थी, लेकिन कार्यक्रम का ग्राफ इतना गिरता चला गया कि एक दफा तो इस कार्यक्रम में केवल महापौर ही पुरुस्कार बांटने के लिए मौजूद थे ।

कैसे बनी धारणा: कहते हैं की इस समारोह में आकर पहले अर्जुन सिंह ने बाद में मोतीलाल बोरा ने और फिर सुंदरलाल पटवा ने अपनी कुर्सी खोई। संयोगवश गई इन तीनों दिग्गजों की कुर्सी के वाकये को आज भी लोग 'तानसेन समारोह' से जोड़कर देखते हैं। इसके बाद से कोई भी मुख्यमंत्री इस समारोह का उद्घाटन करने आज तक नहीं आया। पिछले दिनों ही इस कार्यक्रम का आयोजन ग्वालियर में किया गया था। इस 'मिथ' के पीछे भी कोई दमदार फैक्ट निकलकर नहीं आता, बावजूद इसके कि नेता जी बहुत घबराते हैं!

3: ओरछा: लालबत्ती उतरवाकर दाखिल होते हैं नेता
मिथ: ओरछा में श्रीराम की पूजा आज भी राजकीय परम्पराओं से होती है। माना जाता है कि यहाँ के राजा राम ही हैं। धारणा है कि जो कोई भी यहाँ लाल बत्ती लगी गाडी या हेलिकॉप्टर से आया उसका राजपाट चला गया। इसके अलावा सलामी भी यहाँ कोई मुख्यमंत्री या मंत्री नहीं लेता है। यहाँ भी ये मिथ एक राज्य में दो राजाओं के न रहने के कांसेप्ट के जरिए ही पॉवरफुल हुआ।

कैसे बनी धारणा: इस 'मिथ' को लेकर जब आप स्थानीय लोगों से बातचीत करते हैं तो दो कहानियां प्रमुखता से निकलकर सामने आती हैं। पहली कहानी तत्कालीन ओरछा विशेष प्राधिकरण के अध्यक्ष और कांग्रेस नेता राम रतन चतुर्वेदी की है जो लालबत्ती लगी गाडी में ओरछा पहुंचे और उसके बाद उनका करियर ग्राफ लगातार गिरता गया। दूसरी कहानी तत्कालीन राजस्व मंत्री कमल पटेल की है। कमल पटेल लाल बत्ती लगी गाड़ी में ओरछा आए और एक कार्यक्रम में उन्होंने सलामी ली। संयोग से लौटते हुए उनकी एक्सीडेंट में मौत हो गई और इस धारणा को ये बात मजबूती देती चली गई। हालांकि उमा भारती इसका अपवाद हैं, उन्हें दोबारा लालबती जो मिली।


4: कामदगिरी: चित्रकूट की महिमा
मिथ: मध्यप्रदेश के विन्ध्य क्षेत्र में कामदगिरी पर्वत के ऊपर से भी कभी नेताओं के हेलिकॉप्टर नहीं गुजरते हैं। इसके पीछे बनी धारणा के मूल में भी श्रीराम ही हैं। श्रीराम कामदगिरी की परिक्रमा करते थे, लिहाजा जिस किसी ने अपना रुतबा दिखाने की कोशिश की उसे कामदगिरी के गुस्से का शिकार होना पड़ा। अब तो मंत्री कामदगिरी में प्रवेश से पहले लाल बत्ती तक उतरवाने लगे हैं।

कैसे बनी धारणा: स्थानीय लोगों का मानना है कि वनवास के दौरान राम ने यहीं लम्बा वक़्त गुजारा, लिहाज़ा यहाँ के जंगलों के ऊपर से जो भी गुजरा उसका समूल नाश हो गया। इस धारणा को भी उमा भारती की सत्ता जाने से मजबूती मिली। उमा भारती भारी बहुमत से मध्य प्रदेश की सत्ता में आई थी लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उनकी गद्दी चली गयी। इसके अलावा मुलायम सिंह की स्थिति डगमगाने से भी ये धारणा मजबूत होती चली गई। हालांकि, दोनों ही नेता आज भी मजबूत स्थिति में हैं और इस मिथ को चुनौती देते नजर आते हैं।

orcha

5: सिंहस्थ: निपटते ही पलटी सरकार
मिथ: सिंहस्थ को लेकर भी ये मिथ पिछले कई सालों से बना हुआ था कि इसके निपटते ही शाशन में बड़े बदलाव होते हैं। कई दफा तो मुख्मंत्रियों का राजपाट जाने की घटनाओं को भी लोगों ने सिंहस्थ से जोड़कर देखा। 2016 में भी इस तरह की ख़बरों की बाढ़ सी आ गयी, जब ज्योतिषियों और लोगों ने इसे मौजूदा सीएम शिवराज सिंह के लिए सिंहस्थ को ख़राब बताया था।

और टूट गया ये मिथ: हालांकि अब ये मिथ न केवल टूट गया है, बल्कि सिंहस्थ के सफल आयोजन के बाद मुख्यमंत्री की छवि और ज्यादा मजबूत हुई है। ...लेकिन शायद भविष्य में इस घटना की भी कोई नई कहानी सुनाई दे तो अतिशयोक्ति नहीं।

ये भी पढ़ें

image