
Independence Day 2021 or 75th independence day 2021
Independence Day 2021
भोपाल। हिन्दुस्तान 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था, फिर भी भोपाल रियासत को आजादी नहीं मिल पाई थी। यहां तिरंगा झंडा लहराने पर बैन था। देश की आजादी के बाद भोपाल रियासत की आजादी का आंदोलन चला, कई लोगों ने अपनी जान तक देती। अंतत दो साल बाद 1 जून 1949 को भोपाल आजाद हुआ और इसका हिन्दुस्तान में विलय हो गया।
a independence day story.
भारत देश 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था, लेकिन भोपाल देश की आजादी के दो साल बाद भारत का हिस्सा बना था। सालाना 11 लाख रुपए नवाब परिवार को देने समेत कई बिदुओं पर भारत सरकार और नवाब के बीच एग्रीमेंट हुआ। जिसे मर्जर एग्रीमेंट के नाम से जाना जाता है। लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल (sardar vallabh bhai patel) ने देसी रियासतों को मिलाने मे अहम भूमिका निभाई थी। भोपाल को 1 जून 1949 आजाद भारत का हिस्सा बनाया गया। इसी दिन से औपचारिक रूप से भोपाल में तिरंगा लहराया गया। जानकारों की मानें तो भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां विलय नहीं चाहते थे। इस वजह से आजादी के बाद भी भारत का हिस्सा बनने से वे बार-बार बचते रहे। बताया जाता है कि नवाब के जवाहर लालनेहरू, वल्लभ भाई पटेल, मोहम्मद अली जिन्न समेत उस दौर के सभी राजनेताओं से अच्छे संबंध थे, लेकिन स्वतंत्र भारत में शामिल होने को लेकर राय अलग थी। देश की आजादी के दो साल बाद सेक्रेटरी भारत संघ वीपी मेनन और नवाब भोपाल ने एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए। इसी के साथ भोपाल रियासत का भारत में विलय हो गया।
पोस्ट आफिस पर लहराया था पहला तिरंगा
आजाद भारत के भोपाल का पहला तिरंगा पोस्ट आफिस पर लहराया गया। हालांकि इससे पहले विलीनीकरण आंदोलन के दौरान भी तिरंगा लहराया गया था।
निजी संपत्ति की बनाई गई सूची
एग्रीमेंट 11 बिंदुओं पर था। इनमें से एक नवाब परिवार को 11 लाख रुपए सालाना देने का अनुबध था। यहां उनके निजी संपत्ति की सूची बनाई गई। बाकी हिस्से को सरकारी घोषित किया गया। जहां भारतीय शासन लागू हुआ।
इतिहासकारों की राय में मतभेद
देश में विलय को लेकर इतिहासकारों की राय में थोड़ा-सा अंतर नजर आया। पुरातत्वविद और इतिहासकार डॉ. नारायण व्यास के मुताबिक भोपाल नवाब रियासत को भारत का हिस्सा बनने देना नही चाहते थे। इस कारण मशक्कत हुई। तो वहीं दूसरी ओर इतिहासकार खालिद गनी ने बताया कि भोपाल नवाब हमीदुल्ला खां के रिश्ते उस दौर में सभी नेताओं से अच्छे थे। सिंध प्रांत से आए कई लोगों को यहां शरण दी गई। जो वर्तमान में बैरागढ़ है। रंजिश की जो स्थिति थी उस समय उसे देखते हुए विलय को लेकर निर्णय नहीं हुआ।
Updated on:
15 Aug 2021 08:12 am
Published on:
10 Aug 2021 06:23 pm
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