
देश का दिल मप्र टाइगर, चीता, लेपर्ड के साथ ही न जाने जीत के कितने ताज अपने नाम कर चुका है। वहीं अब जंगल बचाने के मामले में भी देशभर में अव्वल यानी पहले स्थान पर आया है। आपको बता दें कि कभी देश में आगजनी के मामले में मप्र पहले पायदान पर रह चुका है। लेकिन इस बार AI तकनीक ने मप्र में जंगलों को जलने से बचाया है। जबकि अब तक हर साल डेढ़ से दो लाख हेक्टेयर जंगल स्वाहा हो जाता था। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2023 की रिपोर्ट आने के बाद मप्र की खुशियां दो गुनी हो चली हैं। आप भी जानें दोगुनी खुशियों का राज और एआइ टेक्नीक से कैसे किया जा रहा है जंगलों को आग से बचाने का काम...?
यहां जानें फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2023 की रिपोर्ट
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा आगजनी की घटनाओं वाले 5 राज्यों में मप्र ने सबसे अच्छा काम किया है। यहां प्रति एक हजार हेक्टेयर में महज 1.9 प्वाइंट ही सामने आए। इस साल 16647 स्थानों पर आग लगने की घटनाएं हुई हैं, जो 2022 में 34559 तो 2021 में 54734 थीं। वन अधिकारियों का कहना है कि अब तक जंगल में स्थानीय अधिकारी सुविधा अनुसार वॉच टॉवर बना लेते थे। इस बार मुख्यालय से चिह्नित रेड जोन में इसे लगाया गया। स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, पंचायत जैसे विभागों को भी अभियान से जोड़ा गया। जंगलों में आगजनी की 95 फीसदी घटनाएं मानव जनित होती हैं।
पीसीसीएफ (संरक्षण) अजीत श्रीवास्तव ने बताया कि जनजातीय इलाकों में आस्था के नाम पर मन्नत पूरी होने पर जंगलों में आग लगा दी जाती थी। विदिशा, दमोह, डिंडौरी, बालाघाट और देवास में सबसे ज्यादा ऐसी घटनाएं होती थीं। हमने प्रथाओं को सांकेतिक बनाया। समुदाय के बच्चों को अनुभूति कार्यक्रम से जोड़ा। उन्हें जंगल से आमदनी और आग से नुकसान के बारे में बताया। धीरे-धीरे बात बुजुर्गों तक पहुंची, तो बिना विरोध इन प्रथाओं को रोकना आसान हो गया। पहली बार कंपार्टमेंट से लेकर बीट तक एआइ श्रीवास्तव के अनुसार, अब कंपार्टमेंट से लेकर बीट तक का डाटा जमा किया जा रहा है। एआइ तकनीक का उपयोग कर पता लगाया गया कि किस जंगल में किस माह में आगजनी की घटनाएं होती हैं। किन विशेष इलाकों में आग लगती है। इसमें पता चला कि जंगलों में आगजनी की सबसे ज्यादा घटनाएं नरवाई जलाने के बाद होती है।
कुछ इलाकों में गर्मी के मौसम में महुआ के फल और तेंदुपत्ता के लिए भी पत्तों में आग लगा दी जाती है। इसके बाद इन्हें नेट तकनीक का उपयोग करना सिखाया गया तो लीफ ब्लोर मशीन से चिह्नित इलाकों की पत्तियों की सफाई कर आग को जंगल तक पहुंचने से रोका गया। एआइ से ग्रीन और रेड जोन चिह्नित हुए। पूरे फोर्स को उन्हीं क्षेत्र में तैनात किया गया। इससे आग को समय रहते रोकना आसान हुआ।
दो साल में ऐसे बदली तस्वीर
मप्र में 94689 वर्ग किमी वन क्षेत्र है। इनमें 61886 वर्ग किमी आरक्षित वन, 31098 वर्ग किमी संरक्षित और 1705 वर्ग किमी अन्य वन क्षेत्र है। फॉरेस्ट सर्वे की 2022 की रिपोर्ट में ओडिशा के बाद मप्र दूसरे नंबर था, तो 2021 में पहले नंबर पर। आगजनी से जंगल में चारे का संकट खड़ा हो जाता है। वन्य प्राणी भोजन तलााने दूर जाते हैं तो शिकारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। सबसे अधिक 51.8 फीसदी का अंतर आया मध्यप्रदेश में
Updated on:
22 Aug 2023 02:17 pm
Published on:
22 Aug 2023 12:59 pm
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