देश के नौ राज्यों के लोग बड़ी संख्या में अपने गांव-शहरों के नदी-तालाबों, बावडिय़ों, कुण्डों पर श्रमदान कर उन्हें आगामी मानसून के लिए तैयार करेंगे, ताकि बारिश के दिनों में ये जलस्रोत पानी से भरकर आमजन और पशुओं के काम आ सकें।
साफ-सफाई से जीर्णोद्धार के कार्य
इस रविवार अल सुबह पत्रिका के बैनर तले राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु राज्यों में गांव-शहरों में हजारों लोग श्रमदान कर अभियान शुरू करेंगे।
अभियान में तालाबों, बावडिय़ों, नदियों के घाटों आदि की सफाई, पॉलीथिन, जलकुम्भी हटाने के अलावा जल स्रोतों की खुदाई व चारों ओर फेंसिंग लगाने का काम होगा। अभियान में प्रशासन, जनप्रतिनिधि, सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं के सदस्य, कर्मचारी, व्यापारी और युवा संगठन भी सहयोग करेंगे।
अब तक का सफर
बीते वर्षों के मुख्य काम
मध्यप्रदेश : इमरती तालाब (जबलपुर) बड़ा तालाब (भोपाल), जलमहल बावड़ी (ग्वालियर), पातालेश्वर मंदिर कुंंड (छिंदवाड़ा), कान्ह नदी (इंदौर), नर्मदा नदी आदि
छत्तीसगढ़: डंगनिया तालाब (रायपुर), टडुंला नदी (बालोद)
राजस्थान: रामगढ़, जलमहल, तालकटोरा (जयपुर) रानीसर तालाब (फलौदी), मदार नहर (उदयपुर), रंगबाड़ी कुण्ड (कोटा) आदि
गुजरात: दूधिया तालाब (नवसारी, सूरत) आदि
कोलकाता: रिसडा तालाब (हुगली) आदि
बड़ा बाग बावड़ी का लौटाएंगे पुराना वैभव
भोपाल की ऐतिहासिक बड़ा बाग बावड़ी वजूद के लिए जद्दोजहद कर रही है। कभी हजारों लोगों की प्यास बुझाने वाली बावड़ी का पुराना वैभव लौटाने का बीड़ा पत्रिका ने उठाया है। अमृतं जलम् के तहत 19 मई से अभियान शुरू होगा। बावड़ी संवारने के इस अभियान में सहयोग दें…
भोपाल की 8वीं नवाब गौहर बेगम कुदसिया (1819-1937) ने करीब 30 एकड़ में फैले बड़ा बाग में ये बावड़ी बनवाई थी। लाल पत्थरों से बनी तीन मंजिला बावड़ी देखरेख के अभाव में अपना सौंदर्य खो रही है। भोपाल टॉकीज चौराहे के पास बड़ा बाग में स्थित ऐतिहासिक महत्व की यह बावड़ी नवाबी दौर की स्थापत्य कला का नायाब नमूना है।
पास में कई मकबरे हैं। कभी इस बावड़ी का पानी इतना साफ था कि हजारों लोग पीने के लिए इस्तेमाल करते थे। देखरेख के अभाव में ये बर्बाद हो रही है। पानी दूषित होने के साथ ही इसके अस्तित्व को भी खतरा पैदा हो गया है। इसे बचाने के लिए सभी के सहयोग से पत्रिका की ओर से प्रयास किए जाएंगे।