अशोक मनवानी उनके साथ बिताए पलों को याद करते हुए कहते हैं कि सागर शहर की अपनी पहचान है। यहीं मेरा जन्म हुआ। पापाजी इतिहास के प्रोफेसर थे, वे चाहते थे मैं भी यह विषय पढूं, लेकिन पत्रकारिता जगत की हस्ती भुवन भूषण देवलिया के योगदान को देखते हुए मैंने उनको आदर्श बनाया।
वकालत और अध्यापन उनकी जीविका के साधन बने, लेकिन पत्रकारिता को उन्होंने पैशन माना। मुझे याद है वर्ष 1983-84 के दौरान जब छोटे-छोटे अखबारों के लिए मैं पत्रकारिता करता था। रेडियो से धीमी गति के समाचार सुन राष्ट्रीय स्तर के समाचार भीतरी पृष्ठ तैयार किया जाता था। फिर शहर प्रतिनिधि बना। सायकिल पर काम निपटाते थे। इत्तफाक से उस समय देवलिया जी के संपर्क में आ गया। वे विषय सुझाते मैं लिखता जाता। पहले शहर के अखबारों में, फिर प्रांतीय अखबारों में एक-दो साल में ही दिल्ली, मुम्बई के अखबारों में जगह मिलने लगी। मार्गदर्शन मिलता रहा, बीजे भी कर लिया। देवलियाजी को अन्य पत्रकारों से जो बात अलग करती थी, वो थी उनका विद्यार्थियों के प्रति पितृ भाव।
नवोदित पत्रकारों के लिए वे एक प्लेसमैंट ऑफीसर की भूमिका में होते थे। मुझे भी भास्कर, जागरण नई दुनिया देशबंधु के अलावा देश के प्रमुख अखबारों नभाटा, जनसत्ता आदि से जुड़ कर उनके लिए लिखने का उनका परामर्श बहुत काम आया।
बाद में नई दुनिया, इंदौर में बरसों लिखते हुए और 1987 से जनसम्पर्क अधिकारी बन जाने के बाद भी उनसे निरन्तर संवाद और संपर्क बना रहा। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि सागर जाने पर मैं उनसे नहीं मिला। जब भी भेंट हुई उनसे कुछ नया जानने और सीखने को मिलता रहा। मुझे नई दिल्ली में भी तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री वीएन गाडगिल, प्रख्यात कलाविद चिंतामणि व्यास, इंदिरा स्वरूप, सांसद डालचंद जैन, संचार विशेषज्ञ रामजीलाल जांगिड आदि से देवलिया जी के माध्यम से मुलाकात का अवसर मिला।
सागर में आयोजित एक कार्यक्रम में उनके मुख्य आतिथ्य में सम्मान भी मिला। उस मौके की दुर्लभ तस्वीर आज भी संजो कर रखी है। देवलिया जी के मार्गदर्शन देते और आत्मीय समाचार लेते-देते पत्र भी मेरे लिए धरोहर की तरह हैं। मैंने उन्हें सहेज कर रखा है आज तक, एक संपत्ति की तरह। शिक्षक दिवस के मौके पर मैं उनको हृदय से आदरांजलि देता हूं। मेरे साथ ही अनेक मित्रों का जीवन सँवारने वाले देवता तुल्य पुरुष थे भुवन भूषण देवलिया जी।