
भोपाल। प्रदेश में बांस Bamboo की उत्पादकता साल दर साल घटती जा रही है। पिछले दस सालों के अंदर इसके उत्पादन क्षेत्रों में भी भारी कमी आई है। बांस Bamboo mission मिशन बांसों के उत्पादन बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपए फूंक रहा है, इसके बाद भी प्रदेश को जरूरत के लिए बांस की खेती नहीं करवा पा रहा है। हालत यह है कि प्रदेश की जरूरत का सत्तर फीसदी बांस दूसरे राज्यों से खरीदना पड़ रहा है।
30 वन मंडलों में बांस के वन बचे हैं
प्रदेश में 63 वन मंडलों में से अब केवल 30 वन मंडलों में बांस के वन बचे हैं। पिछले 15 वर्षों में दक्षिण पन्ना, दक्षिण सागर, डिंडोरी, गुना, अशोक नगर, खरगौन सहित 8 वन मंडलों में पूरी तरह से बांस समाप्त हो गए हैं।
बांस समाप्त होते जा रहे
धीरे-धीरे जंगलों से बांस समाप्त होते जा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि सरकार ने बांस को लघु वनोपज की श्रेणी में डाल दिया है। इससे जंगल के आस-पास के लोगों को उनके उपयोग के लिए बांस काटने पर प्रतिबंधित नहीं किया जाता है। इस फैसले से लोग जंगलों से बांस काटना तेजी से शुरू कर दिया है। प्रदेश में 25 हजार टन बांस वनों में है और 30 हजार टन बांस निजी खेतों पैदा होता है।
मिशन बनाया, लेकिन नहीं दिया बजट
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2013 में बंसोड़ पचायत बुलाई थी। इसमें बंसोड़ों ने यह मांग रखी कि उन्हें बांस नहीं मिलता है, उन्हें सब्सिडी दरों पर बांस उपलब्ध कराया जाए। बांस की पैदावार बढ़ाने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने बांस मिशन का गठन कर दिया। मिशन बनने के बाद 6 साल तक इसके स्थापना व्यय और वेतन के अलावा कोई बजट नहीं दिया।
28 करोड़ का बजट आवंटित किया
इससे मिशन बांस की खेती को प्रात्याहन और उद्योग स्थापित करने के के लिए कोई काम ही नहीं कर पाया। वर्ष 2018-19 में मोदी सरकार ने मिशन के लिए 28 करोड़ का बजट आवंटित किया, जिसके लिए कार्य योजना बनाई है। इस राशि से दो हजार किसानों से 4 हजार एकड़ में बांस की खेती कराई गई है। मिशन ने केन्द सरकार से वर्ष 2019-20 के लिए 35 करोड़ रूपए की मांग की है।
टिशू कल्चर से तैयार हो रही हैं बांस की नई प्रजातियां
प्रदेश में टिशू कल्चर के माध्यम से बांस की नई-नई प्रजातियां तैयार की जा रही हैं। इन प्रजातियों का उपयोग पूरी तरह से व्यावसायिक है। वर्तमान में 20 तरह के प्रजातियों को तैयार करने का काम चल रहा है। बांस की पांच तरह की प्रजातियां पहले से ही प्रदेश में मौजूद हैं। जबकि बांस की 35 तरह की प्रजातियां पूरे देश में पाई जाती हैं।
क्यों नष्ट हो रहे हैं बांस के वन
गर्मी के मौसम में बांस के जंगलों में सबसे ज्यादा आग लगती है। आग लगने के बाद पूरा बांस का जंगल नष्ट हो जाता है। हाथी सहित अन्य शाकाहारी वन्य जीव सबसे ज्यादा बांस के पत्ते और डाली खाते हैं, क्योंकि ये हमेशा हरा-भरा रहता है। लोग बांस की कटाई बीच से करने के बजाय किराने से करते हैं। बारिश में इनके नए कोपलों को जंगली वन्य जीव नष्ट कर देते हैं।
ऐसे कम हो रही है बांस की खेती
प्रदेश में बांस उद्योग नहीं हैं। लोग यहां बांस का उपयोग घर, जलाऊ लकड़ी सहित परंपरागत उपयोग के लिए करते हैं। अब इसकी भी जरूरते धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इसके चलते लोगों ने बांस को लगाना कम कर दिया और जहां बांस के भिर्रे थे उसे खत्म करना शुरू कर दिया।
बांस इंडस्ट्री लगाने का प्रयास नहीं किया
व्यावसायिक उपयोग के लिए सरकार ने किसी तरह से न तो प्रचार प्रसार किया और न ही बांस इंडस्ट्री लगाने का प्रयास किया। इसके अलावा सरकार ने बांस रखने के लिए गोदाम नहीं बनाया।सडऩे, कीड़े लगने से बचाने के लिए उपचारित करने की सिस्टम तैयार नहीं किया। इसके प्रसंस्करण केन्द्र नहीं खोले गए। इससे लोगों की नजरों में बांस की उपयोगिता धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
कहां है बांस का व्यावासायिक उपयोग
बांस का व्यावसायिक उपयोग इस सयम पर सबसे ज्यादा खेती में किया जा रहा है। इसके अलावा रेलवे, हवाई जहाज, मकान, चटाई, पर्दे, कपड़े बनाने, फर्नीचर, टाइल्स सहित एक हजार तरह के कार्यों में इसका उपयोग किया जाता है।
यह बांस की उत्पादकाता
वर्ष ----उत्पादकता (नोसनल टन में )
2013----79168
2014----41858
2015----36186
2016----33885
2017----28626
2018----28168
-2400 मीटर लंबा बांस को मिलाने पर एक नोसनल टन होता है।
- डेढ़ टन का बांस बराबर एक नोसनल टन होता है।
प्रदेश में बांस उत्पादन घट रहा है और जबकि इसकी मांग बढ़ती जा रही है। बांस का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, उन्हें अनुदान भी जाएगा। इसके अलावा बांस को मनरेगा में भी शामिल किया गया है।
जेके माहंती, पीसीसीएफ (वन बल प्रमुख )
Published on:
21 Aug 2019 09:53 am
बड़ी खबरें
View Allभोपाल
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
