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भगत सिंह खुद नहीं चाहते थे फांसी से बचना, कहते थे कि मैं अपने उसूलों और सिद्धांतों को नहीं छोडूंगा

शहीद भगत सिंह के भतीजे किरण जीत सिंह ने सांझा की कुछ बातें... हौंसले से रहना, ताकि माताएं और भगत सिंह पैदा कर सकें.. भगत सिंह ने अपनी बेबी से कहा फांसी के बाद मेरी लाश को लेने नहीं आना और ना ही रोना भगत सिंह की सोच थी कि अगर एक भगत सिंह जाएगा तो लाखों भगत सिंह आएंगे

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भोपाल

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Anjali Tomar

Mar 24, 2023

भोपाल. हिंसा और अहिंसा दो धाराएं हैं। लेकिन मतलब दोनों का एक ही है। भगत सिंह और उसके साथी आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ ही थे। जब गांधी ने चोरा चोरी के बाद आंदोलन वापस लिया तब भगत सिंह ने विद्रोह किया क्योंकि वे अपनी पढ़ाई और सारी चीजें छोड़कर आए थे। तब उनके अंदर विद्रोह की भावना जागृति हुई क्योंकि उस समय सभी के अंदर आंदोलन का जोश भरा हुआ था पर गांधी जी के एक गलत कदम से देश आजाद होते होते रह गया। यहां से भगत सिंह का विचार लोगों तक पहुंचा। यह बात शहीद भगत सिंह के भतीजे किरण जीत सिंह ने पत्रिका से सांझा की साथ ही भगत सिंह के आखिरी क्षणों को बया किया।

भगत सिंह खुद नहीं चाहते थे फांसी से बचना

जबसे भगत सिंह को फांसी हुई है तभी से लोगों में मिथक बना हुआ है कि अगर महात्मा गांधी चाहते थे तो भगत सिंह को फांसी से बचाया जा सकता था पर सच तो यह था कि भगत सिंह खुद फांसी से बचना नहीं चाहते थे। उनका कहना था कि मैं अपने उसूलों और सिद्धांत को छोड़कर अपनी देह की प्रार्थना नहीं करूंगा।

पंजाब को खालिस्तान बनाने की मांग पाकिस्तानी करते हैं

इस वक्त पंजाब पर खालिस्तान बनाने का खतरा मंडरा रहा है, इस वक्त अगर भगत सिंह होते तो वे इसका जमकर मुकाबला करते। पंजाब या किसी भी राष्ट्र को खालिस्तान बनाने की मांग वहीं लोग करते हैं जो या तो पाकिस्तान से हैं या कनाडा और अमेरिका में रह रहे हैं। इस तरह की मांग वहीं लोग करते हैं। हिंदू और सिख तो आज एक हैं।

फांसी के वक्त नहीं था चेहरे पर डर

जब लोगों को पता चलता है कि 10 दिन बाद हमें फांसी होने वाली है तो लोग खाना-पीना छोड़ देते हैं, लेकिन भगत सिंह के अंदर वो डर एक परसेंट भी देखने को नहीं मिला। वे काफी खुश थे कि परीक्षा की घड़ी नजदीक आ रही है। साथ ही उनका वजन बढ़ रहा था इसलिए वे कसरत करके अपना वजन कम कर रहे थे। आखिरी मुलाकात में भगत ने मां से कहा कि फांसी के बाद मेरी लाश को लेने मत आना और फक्र से रहना ताकि माताएं और भगत सिंह पैदा कर सकें।

3 मार्च को भगत सिंह से हुई थी परिवार की आखिरी मुलाकात

परिवार की आखिरी मुलाकात भगत सिंह से 3 मार्च को हुई थी। जिसमें परिवार के सभी शामिल थे। फांसी से एक दिन पहले 23 मार्च को परिवार की भगत सिंह से आखिरी मुलाकात होनी थी, जिसमें भाई-बहन और मां-बाप ही मिल सकते थे जिस वजह से परिवार का अंग्रेजों से झगड़ा भी हुआ तब राजगुरु की मां पुणे से उनसे मिलने आई थी, लेकिन जब शहीद भगत सिंह का परिवार अपने बेटे से नहीं मिला को वो भी अपने बेटे नहीं मिली थी।

भगत सिंह ने अपने चाचा को लिखा आखिरी पत्र

भगत सिंह ने आखिरी पत्र अपने चाचा कुलतार सिंह को लिखा था… प्रिय कुलतार तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर बहुत दुख हुआ। तुम्हारे आंसू मुझसे बर्दाश्त नहीं होते, हौंसले से रहना, शिक्षा ग्रहण करना और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना.. और क्या कहूं अंग्रेजों को फ्रिक है कि वे तुम्हे किस ढंग से तंग कर सकते हैं और हमें शौक है कि वे किस हद तक यातनाएं दे सकते हैं।