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World Heritage Day 2021 : विश्व धरोहर हैं भीमबेटका की गुफाएं, तस्वीरों में देखें 30 हजार साल पुरानी चित्रकारी

18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर हम आपको मध्य प्रदेश के भीमबेटका से जुड़ी कुछ रोचक बातें बता रहे हैं। इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल भी चुना है।

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World Heritage Day 2021

World Heritage Day 2021 : विश्व धरोहर हैं भीमबेटका की गुफाएं, तस्वीरों में देखें 30 हजार साल पुरानी चित्रकारी

भोपाल/ मध्य प्रदेश अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक सौंदर्य का धनी राज्य है। यहां ऐसे कई सुंदर, मनमोहक और अविश्वस्नीय स्थान हैं, जिन्हें देश ही नहीं दुनियाभर में प्रसिद्धी प्राप्त है। यहां चार ऐसे स्थल हैं, जिन्हें विश्व धरोहर स्थल कहा जाता है। विश्व की धरोहर का स्थान इन्हें UNESCO द्वारा दिया गया है, जो विश्व की 982 धरोहरो में से एक है। इन्हीं में से एक है मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित भीमवेटका की गुफाएं, जिन्हें मानव चित्रकारी और पाषाण आश्रयों के लिए विश्वभर में प्रसिद्धि मिली हुई है।

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इस आधार पर UNESCO देता है विश्व धरोहर का दर्जा

भीमवेटका की गुफाओं के बारे में जानने से पहले ये बात समझ लें कि, यूनेस्को किस आधार पर किसी स्थल को विश्व धरोहर का स्थान देता है। बता दें कि, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में उन स्थलों को शामिल करता है, जिनका कोई खास भौतिक या सांस्कृतिक महत्व हो। इनमें इस तरह का संदेश प्रदर्शित करने वाले जंगल, झील, भवन, द्वीप, पहाड़, स्मारक, रेगिस्तान, परिसर या शहर शामिल हो सकते हैं। हालांकि, अब तक यूनेस्कों की जारी सूची में पूरे विश्व की 982 धरोहरों को स्थान दिया गया है। यानी ये वो धरोहरें हैं, जिन्हें विश्व धरोहर कहा जाता है। इनमें से 33 विश्व की विरासती संपत्तियां भारत में भी मौजूद हैं। इन 33 संपत्तियों में से 26 सांस्कृतिक संपत्तियां और 7 प्राकृतिक स्थल हैं। इन्ही में से 4 विश्व धरोहरों का गौरव मध्य प्रदेश को भी प्राप्त है, जिसमें से एक है भीमवेटका की विश्व प्रसिद्ध गुफाएं। आइए जानते हैं इस विश्व धरोहर के बारे में खास बातें।

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भीमबेटका पाषाण आश्रय है विश्व धरोहर

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से महज 45 किलोमीटर दूर भीमबेटका में स्थित इन पांच पाषाण आश्रयों के समूह को साल 2003 में विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ था। भीमबेटका पाषाण आश्रय विंध्य पर्वतमाला की तलहटी में मध्य भारत की पठार के दक्षिणी छोर पर बनी हुई गुफाओं का समूह है। यहां भारी मात्रा में बालू पत्थर और अपेक्षाकृत घने जंगल हैं। इनमें मध्य पाषाण काल से ऐतिहासिक काल के बीच की चित्रकला भी देखने को मिलती है। इस स्थान के आस-पास के इक्कीस गांवों के निवासियों की सांस्कृतिक परंपरा में पाषाणीं चित्रकारी की छाप भी दिखती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, यहां पाई गई चित्रकारी में से कुछ तो करीब 30 हजार साल पुरानी तक हैं। गुफाओं में बनी चित्रकारी में नृत्य का प्रारंभिक रूप भी देखने को मिलता है। ये पाषाण स्थल इसी के चलते देश ही नहीं बल्कि विश्वभर में अपनी एक अलग पहचान रखता है।

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महाभारत काल से जुड़ी मान्यताएं

भीमबेटका को लेकर मान्यता ये भी है कि, यहां भीम का निवास हुआ करता था। हिन्दू धर्म ग्रंथ श्रीमदभगवत गीता के अनुसार, द्वापर युग में हस्तिनापुर के पांच पाण्डव थे, जो सभी राजकुमार भी थे। इनमें से भीम दूसरे नंबर के राजकुमार थे। माना जाता है कि, महाभारत काल के राजकुमार भीम अज्ञातवास के दौरान भीमबेटका गुफ़ाओं में भी रहे थे। इसी के चलते ये स्थान भीम से संबंधित है। यही कारण है कि, इस स्थान का नाम एक दौर में 'भीमबैठका' भी रह चुका है। सबसे पहले इन गुफाओं को साल 1957-1958 में 'डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर' ने खोजा था। इसके बाद इस क्षेत्र को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। जिसे जुलाई 2003 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। ये गुफ़ा भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं।

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चित्रकारी का उद्दैश्य पाषाणकालीन जीवन दर्शन

जानकारों का मानना है कि, भीमबेटका की गुफ़ाओं में बनी चित्रकारियों का मूल उद्देश्य उस जमाने में यहां रहने वाले पाषाणकालीन लोगों का जीवन दर्शन कराना होगा। विश्वभर में इनकी लोकप्रीयता का कारण इन गुफाओं में बनी प्रागैतिहासिक काल के जीवन को चित्रकारी के आधार पर बताना है। इसके साथ ही, ये गुफ़ाएं मानव द्वारा बनाये गए शैल चित्रों के ऐतिहासिक चित्रण के लिए भी प्रसिद्ध है। गुफ़ाओं के अंदर मिली सबसे प्राचीन चित्रकारी 12 हजार साल पुरानी मानी गई है, जो इतने वर्षों बाद आज भी लगभग उसी तरह मौजूद है। आपको जानकर हैरानी होगी कि, भीमबेटका में स्थित इन पांच पाषाण आश्रयों के समूह में क़रीब 500 गुफ़ाएं हैं। यहां चित्रित ज्यादातर तस्‍वीरें लाल और सफ़ेद रंग बनाई गई हैं, कुछ तस्वीरों को बनाने में पीले और हरे रंग का भी इस्तेमाल किया गया है।

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चित्रों में दर्शाई गई है ये आकृतियां

मुख्य रूप से इन चित्रकारियों में उस दौर के दैनिक जीवन की घटनाओं को दर्शाया गया है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है। अन्य चित्रकारियों में प्राचीन क़िले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष दर्शाए गए हैं। इसके अलावा गुफाओं में प्राकृतिक लाल और सफ़ेद रंग से जंगली जानवरों के शिकार का तरीका और घोड़े, हाथी, बाघ आदि के चित्र भी उकेरे गए हैं। वहीं, दर्शाए गए चित्रों में उस दौर के नृत्‍य, संगीत बजाने का उपकरण और तरीका, शिकार करने का तरीका, घोड़ों और हाथियों का सवारी के रूप में इस्तेमाल, शरीर पर आभूषणों को सजाने और शहद जमा करने के तरीके को भी चित्रित किया गया है।

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इस तरह आसानी से पहुंच सकेंगे भीमबेटका

वैसे तो ये विश्व प्रसिद्ध स्थल रायसेन जिले में है, लेकिन राजधानी भोपाल से इसकी दूरी कम है, राजधानी से भीमबेटका महज 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। साथ ही, यहां प्रदेश या देश के बाहर से आने वाले सेलानियों को हवाई और रेल यात्रा का लाभ मिल सकता है। भोपाल आने के बाद आप यहां से किसी ट्रेवल की गाड़ी के माध्यम से भीमबेटका पहुंच सकते हैं। भोपाल से भीमबेटका के रोड के सफर में लगभग एक घंटे का समय लगेगा।

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