scriptWorld Heritage Day 2021: बादशाह बदलते रहे, आज भी सीना ताने खड़ा है ‘ग्वालियर का किला’ | world heritage 2021 18 april A Brief History of India's Gwalior Fort | Patrika News

World Heritage Day 2021: बादशाह बदलते रहे, आज भी सीना ताने खड़ा है ‘ग्वालियर का किला’

locationग्वालियरPublished: Apr 16, 2021 12:56:44 pm

Submitted by:

Manish Gite

world heritage 2021: वर्ल्ड हेरिटेज दिवस के मौके पर जानिए अपने प्रदेश की धरोहरों के बारे में…।

gwalior.png

A Brief History of India’s Gwalior Fort

 

ग्वालियर। मध्यप्रदेश का ग्वालियर शहर भी यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज सिटी की लिस्ट में शामिल हो गया है। पर्यटन की दृष्टि से और ऐतिहासिक धरोहर की दृष्टि से इसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में आने के बाद ग्वालियर की तस्वीर ही बदल जाएगी।

patrika.com जानते हैं हेरिटेज सिटी की ऐसी धरोहर के बारे में जिसे दुनियाभर में पसंद किया जाता है। world heritage day पर जानिए कैसा है ‘ग्वालियर का किला’

 

इसलिए खास है यह धरोहर

कोरोनाकाल में यदि आप विश्व प्रसिद्ध ऐसी धरोहरों को देखने नहीं जा पा रहे हैं, तो आप घर बैठे ही उसके बारे में जानकारी ले सकते हैं। यह किला (Gwalior Fort) जमीन से तीन सौ फीट ऊंचा है। इसकी लंबाई करीब तीन किलोमीटर है। पूर्व से पश्चिम की ओर यह किला छह सौ से तीन हजार फीट चौड़ा है। 1399 से 1516 ई. तक यह किला तोमर नरेशों के अधीन था, जिनके प्रमुख राजा मानसिंह थे। इनकी रानी ‘गूजरी’ या ‘मृगनयनी’ के विषय में आज भी कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। किले के भीतर ही ‘गूजरी महल’ मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है। यहां के स्मारकों में ग्वालियर का लंबा इतिहास नजर आता है।

 

यह भी पढ़ेंः इस किले में छुपा है करोड़ों का खजाना, वहां आज भी सलामत है 1605 में बनी ये चीज

 

इतिहास में मिला यह उल्लेख

इतिहासकारों के आंकड़े इस बात के संकेत देते हैं कि इस किले का निर्माण 727 ई. में हुआ था, जो सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने बनवाया था। वो व्यक्ति इस किले से करीब 12 किमी दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था। इतिहास के पन्नों में यह भी उल्लेख मिलता है कि इस किले का जो वर्तमान स्वरूप नजर आ रहा है वो 15वीं शताब्दी में राजा मानसिंह तोमर ने दिया था।

 

इसी किले में 525 का एक शिलालेख भी कुछ तथ्य प्रस्तुत करता है। जो हूण महाराधिराज तोरमाण के बेटे मिहिरकुल के शासनकाल के 15वें साल मिला था। इसके तहत मातृचेत नामक व्यक्ति की ओर से गोपाद्रि या गोप नाम की पहाड़ी पर एक सूर्य मंदिर बनवाए जाने का उल्लेख मिलता है। इतिहासकारों के मुताबिक इससे स्पष्ट होता है कि इस पहाड़ी का प्राचीन नाम गोपाद्रि यानी रूपांतर गोपाचल, गोपगिरी है, इसी पहाड़ी पर कभी बस्ती गुप्त काल में भी रही होगी। इतिहास के जानकार बताते हैं कि इसी पहाड़ी के नाम पर ही इस शहर का प्राचीन नाम था, जो बाद में बदलते-बदलते ग्वालियर हो गया।

 

यह भी पढ़ेंः किले में दफन है बेशकीमती खजाना, राजा के पास नहीं है कोडवर्ड

 

एक नजर

इस पहाड़ी पर जैन तीर्थंकरों की सुंदर नक्काशियां भी देखी जा सकती है।
किले को हिन्द के किलों का मोती कहा जाता है। यह किला कई शासकों के अधीन रहा, पर कोई इसे पूरी तरह नहीं जीत पाया।
यह भी पढ़ेंः 250 करोड़ से संवर रहा शहर का हेरिटेज, टूरिस्ट को करेगा अट्रैक्ट

भारत-चीन संबंधों के प्रमाण

इस किले में भारत-चीन संबंधों के भी प्रमाण मिलते हैं। यहां चीन की वास्तुकला का प्रभाव देखा जा सकता है। किले के स्तंभों पर ड्रैगन की नक्काशियां मौजूद हैं।

कोरोनाकाल में बंद

फिलहाल कोरोनाकाल में कई धरोहरों में जाने में प्रतिबंध लगा दिया गया है। लेकिन, जब जब कभी जाने का अवसर मिले तो यह शहर पहुंचने के लिए हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जा सकते हैं।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो