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विश्व में अनूठा है भोजेश्वर मंदिर, इसका कद देख हैरान हो जाते हैं भक्त

locationभोपालPublished: Mar 04, 2019 06:26:00 pm

Submitted by:

Faiz

विश्व में अनूठा है भोजेश्वर मंदिर, इसका कद देख हैरान हो जाते हैं भक्त

mahashivratri 2019

विश्व में अनूठा है भोजेश्वर मंदिर, इसका कद देख हैरान हो जाते हैं भक्त

भोपाल/भोजपुरः देवाधिदेव महादेव और माता पार्वती के मिलन के पर्व पर महाशिवरात्रि मनाई जा रही है। सोमवार के स्वामी चंद्र, बाबा सोमनाथ का दुर्लभ संयोग शिव योग महापर्व को खास बनाएगा। देश-प्रदेश के सभी शिवालयों में भक्त किस तरह महादेव की आराधना में लीन हैं। महाशिवरात्री के अवसर पर भोपाल से सटे भोजेश्वर मंदिर में आज सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है। सुबह से ही भक्तों के लिए शिव दर्शन शुरु कर दिया गया है। भक्त काफी उत्साह में भोले बाबा की कामना कर रहे हैं। प्रशासन द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतेज़ाम किये गए हैं। हर आने जाने वाले की कड़ी निगरानी रखते हुए भक्तों के सहूलत की व्यवस्थाओं का ध्यान रखा जा रहा है। भोजेश्वर मंदिर से जुड़े कुछ रोचक किस्से हैं, जिनके बारे में हम आपको बताएंगे।

कई रहस्यों से भरा है ये शिव मंदिर

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर नामक एक स्थान स्थित शिव मंदिर मध्यकालीन से एक प्रसिद्ध व रहस्यों से भरा शिव मंदिर है, जो भोजपुर शिव मंदिर या भोजेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर को पूरब के सोमनाथ के नाम से भी जाना जाता है। शिवरात्रि के इस पावन मौके पर भोजपुर मंदिर से जुड़ी खास मांन्यताए और रहस्यों के बारे में बताएंगे।

विश्व में एक ही पत्थर से निर्मित सबसे बड़ा शिवलिंग

वैसे तो भोजपुर के बारे आज कम ही लोग जानते हैं, लेकिन मध्यकाल में इस नगर की ख्याती काफी दूर-दूर तक फैली हुई थी। इस नगर को धार के राजा भोज ने स्थापित करवाया था। जानकारों की माने तो इस मध्यकालीन नगर को प्रसिद्धि दिलाने मुख्य श्रेय भोजपुर के भोजेश्वर शिव मंदिर और यहां निर्मित एक विशाल झील को जाता है। राजा भोज द्वारा बनवाए गए इस मंदिर की प्रसिद्धि ‘पूरब के सोमनाथ मंदिर’ के रूप में भी है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई 7.5 फीट और परिधि 17.8 फीट है, जो स्थापत्य कला का एक बेमिसाल नमूना माना जाता है। ये विश्व में एक ही पत्थर से निर्मित सबसे बड़ा शिवलिंग है। यह शिवलिंग एक वर्गाकार और विस्तृत फलक वाले चबूतरे पर त्रिस्तरीय चूने-पत्थर की पाषाण-खंडों पर स्थापित है। जानकारों की माते तो, मंदिर का शिखर निर्माण कार्य कभी भी पूर्ण नहीं हो सका था। शिखर को पूरा करने के लिए जो भी प्रयास किए गए उसके अवशेष अब भी मंदिर के प्रांगण में बड़े-बड़े पत्थरों के रूप में पड़े हैं। हालांकि, इस मंदिर का शिखर क्यों नहीं बन सका, इसका स्पष्ट रहस्य कोई नहीं जानता। मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज 1010 ई से 1055 ई के बीच कराया था।

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