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41 साल बाद भी औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है भोपाल गैस त्रासदी, जाने कितनी भयावह थी वो रात

Bhopal Gas Tragedy : इस साल औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना के दिन को 41 साल पूरे हो रहे हैं। लेकिन, गैस पीड़ितों से पूछे तो मानों उनका दर्द आज भी बिल्कुल ताजा है। आइये जानें कितनी भयावय थी 3 दिसंबर 1984 की वो सर्द काली रात।

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Bhopal Gas Tragedy

भोपाल गैस त्रासदी के 41 साल (Photo Source- Patrika)

Bhopal Gas Tragedy : 2 और 3 दिसंबर 1984 की वो दरमियानी रात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रह रहे, जिस शख्स पर गुजरी मानों उसपर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। उस रात में इतना गम था कि, मानो जैसे उस रात की सुबह ही न थी। आधी रात से सुबह तक शहर के बीचों बीच बनी कीटनाशक बनाने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली जहरीली गैस (मिथाइल आइसो साइनाइट) ने जहां एक तरफ हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। वहीं, दूसरी तरफ जिन लोगों की जान बच गई, वो या उनकी नस्लें आज भी किसी न किसी बीमारी से जूझकर तिल-तिल मर रहे हैं।

कहने को तो साल 2025 में गैस कांड को 41 साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो उस घातक कैमिकल का असर गैस पीड़ित की तीसरी पीढ़ी पर भी किसी न किसी रूप में रहेगा।

पीड़ित को कोई भी जानलेवा बीमारी होना हैरानी की बात नहीं

औद्योगिक इतिहास की अब तक की इस सबसे बड़ी दुर्घटना में मारे जाने वालों की गणना में तो मतभेद हो सकता है, लेकिन ये त्रासदी कितनी गंभीर थी, इसपर सभी एकमत हैं। इसलिए, ये कहना पर्याप्त होगा कि, घटना में मरने वालों की संख्या हजारों में थी। साथ ही, इससे प्रभावित होकर अब तक जान गंवाने वालों की संख्या लाखों में है। गैस कांड के प्रभाव से जुड़ी ई-रिसर्चों में सामने आया है कि, प्रभावित लोगों को उनके गैसकांड से बचने के बावजूद जीवन में कोई भी जानलेवा बीमारी होना संभव है। किडनी फेलियर, कैंसर या टीबी इनमें प्रमुख हैं। स्वास्थ विभाग ने शहर के गैस पीड़ितों के लिए विशेषरूप से कैंसर और टीबी अस्पताल में अलग से व्यवस्था कर रखी है।

उस रात की सुबह कभी न थी

यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे। लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर एकाएक क्या हो रहा है। जहरीली गैस से प्रभावित लोगों ने बताया कि, उस रात उनकी आंखों में भयंकर जलन थी और सांस भी नहीं ली जा रही थी। जिन लोगों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा उनकी जान तभी चली गई थी और जिनपर इसका थोड़ा कम प्रभाव पड़ा वो अब तिल-तिल कर जान गवा रहे हैं।

मौतों पर सबका अलग-अलग दावा

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर 3 हजार लोग मारे गए थे। हालांकि, गैर सरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब 3 गुना ज्यादा थी। इतना ही नहीं, कुछ लोगों का तो ये भी दावा है कि, गैस के कारण तुरंत मरने वालों की संख्या 15 हजार से भी अधिक थी। पर मौतों का सिलसिला सिर्फ उस रात से शुरु होकर उसी रात को खत्म नहीं हुआ, ये तब से लेकर अब तक जारी है। रिसर्च में सामने आया है कि, जो लोग इस जहरीली गैस का शिकार होने के बावजूद भी बच गए हैं। ये गैस इतनी घातक है कि, पीड़ित की 3 पीड़ियों तक इसका असर रहेगा।

कुछ ही घंटों में हवा में मिल गया था 40 टन जहर

जानकारों की मानें तो 3 दिसंबर की रात 12 बजें से यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से रिसना शुरु हुई जहरीली गैस से सुबह वॉल बंद किए जाने तक करीब 40 टन गैस का रिसाव हो चुका था और इसका कारण ये था कि, फैक्टरी के टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस से पानी मिल गया था। इस घटना के बाद रासायनिक प्रक्रिया हुई और इसके परिणाम स्वरूप टैंक में दबाव बना। अंतत: टैंक खुल गया, जिसके चलते वो जहरीली गैस वायु मंडल में फैल गई।