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खौलते डामर में बछड़े को गिरा देख बच्चे ने किया कुछ ऐसा कि इंटरनेशनल लेवल पर नवाजा गया

locationभोपालPublished: Jan 26, 2018 01:59:23 am

Submitted by:

anil chaudhary

दूसरों की पीड़ा से विचलित हो जाना और तत्काल मदद करना के लिए आगे आना बड़ी बात है। एक छोटे से शहर से निकले युवा डॉक्टर अंकुर पारे ने ऐसा ही किया…

dr. ankur
भोपाल. बचपन की एक घटना से सबक लेना, उसे जीवन में उतार लेना आसान नहीं है। हरदा जिले के एक छोटे से गांव से निकले डॉ. अंकुर पारे ऐसा ही किया। उन्होंने बचपन की यादें ताजा करते हुए बताया कि उनके सामने एक गाय का बछड़ा खौलते डामर में गिर गया, जिससे उनकी चीख निकल गई। वे दौड़े और बछड़े को डामर के ड्रम से बाहर खींच लाए।
इसमें उनका एक हाथ बुरी तरह झुलस गया, लेकिन बछड़े को बचाने के सुख में यह दर्द दब गया। इसी दिन तय किया कि कोई ऐसा काम करूंगा, जो दूसरों के काम आए। उन्होंने सोशल वर्क का संकल्प लिया। डॉ. पारे आज लेखक और ख्यातनाम समाजशास्त्री भी हैं। वे डॉक्टरल फैलो, आईसीएसएसआर, मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय, भारत सरकार में कार्यरत हैं। इनका शोध कार्यक्षेत्र मध्यप्रदेश है।
19 राष्ट्रीय शोध हैं डॉ. पारे के नाम

डॉ. अंकुर पारे विस्थापितों के अधिकार और उत्थान के लिए मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, गुजरात, उत्तराखंड, झारखंड, महाराष्ट्र आदि राज्यों में कार्य कर रहे हैं। सामाजिक वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। वे अब तक 19 राष्ट्रीय शोध परियोजनाओं पर काम कर चुके हैं। उनकी हाल में ही विस्थापित परिवारों का समाजशास्त्रीय अध्ययन पुस्तक प्रकाशित हुई है। डॉ. पारे ग्रामीण विकास के लिए जागरुकता अभियान एवं शिविरों का आयोजन भी करते हैं।
उन्नत कृषि, जैविक खाद्य आदि के लिए निशुल्क शिविर लगाते हैं। जलसंरक्षण, सोख्ता पीठ आदि के लिए भी कार्य कर रहे हैं। महिला शक्तिकरण कार्यक्रम एवं युवाओं को स्वरोजगार प्रशिक्षण आदि के नि:शुल्क शिविरों का आयोजन करते हैं। डॉ. पारे ने सामाजिक कुरीतियों बाल-विवाह, दहेज प्रथा, कन्या भू्रणहत्या आदि के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी है। यही वजह है कि उन्हें इंटरनेशनल, नेशनल और स्टेट लेवल पर अवॉर्ड प्राप्त हुए हैं।
युवाओं के लिए प्रेरणा बने

डॉ. पारे युवा पीढ़ी के लिए आदर्श साबित हो रहे हैं। खासकर उन युवाओं के लिए, जो अपनी असफलता का दोष पारिवारिक परिस्थितियों पर मढ़ते हैं। डॉ. पारे एक गांव से निकले। उनका जीवन अत्यंत कठिन परिश्रम और खराब परिस्थितियों में गुजरा। वो मध्यमवर्गी किसान परिवार से हैं, उनका प्रारंभिक जीवन अभावग्रस्त रहा है। इसके बावजूद अपने दृढ़निश्चय के दम पर पढ़े और आगे बढ़े। वे कम उम्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले बने। उन्होंने पीएचडी (समाजशास्त्र), एमफिल (समाजशास्त्र), यूजीसी – नेट (समाजशास्त्र), एम.ए. (समाजशास्त्र), बीकॉम, एलएलबी, पीजीडीसीए, पीजी डिप्लोमा इन योग साइंस किया है।
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