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कार्बन का खजाना: जंगल जुटा रहे, रईस लुटा रहे

ये खजाना है, कोई इसे भर रहा है और कोई लुटाने में लगा है। भरने वाला इंसान नहीं है तो उसे लुटाने में तो इंसान को कोई फर्क पड़ता ही नहीं है। हो भी ऐसा ही रहा है। बात कार्बन के खजाने की है। हमारे पुराने, घनघोर जंगल इसे बटौर रहे हैं और अमीर लोग जमकर खर्च कर रहे हैं।

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Forest of MadhyaPradesh

Dense Forest of MadhyaPradesh is the treasure of Carbon

बीते कुछ वर्षों से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफएंडसीसी) कार्बन के खजाने को बढ़ाने के लिए वनों की गुणवत्ता और जंगलों के विस्तार पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है। संभवत: इसी का नतीजा रहा कि हाल ही में जारी हुई वन सर्वेक्षण रिपोर्ट—2021 में बताया गया,'देश के जंगल में कुल कार्बन स्टॉक 7,204 मिलियन टन होने का अनुमान है और 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक में 79.4 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। कार्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 39.7 मिलियन टन है।' रिपोर्ट में बीते दो वर्षों में देश के कुल वन और वृक्षों से भरे क्षेत्र में 2,261 वर्ग किमी की बढ़ोतरी भी दर्ज हुई है।

मगर एक रिपोर्ट यह भी है कि हवा में कार्बन फैलाने वाले उपकरणों और वस्तुओं के बढ़ते उपयोग के कारण यह खजाना लूट रहा है। भारत में राष्ट्रीय औसत प्रति व्यक्ति उत्सर्जन करीब 2.2 टन कार्बन डाइऑक्साइड दर्ज किया गया। वर्ष 2019 में भारत की मध्यम आय वाली 40 प्रतिशत आबादी ने करीब 2 टन प्रति व्यक्ति, आमदनी के हिसाब से कमजोर 50 फीसदी आबादी ने करीब एक टन प्रति व्यक्ति और शीर्ष की सबसे दौलतमंद 10 प्रतिशत लोगों ने करीब 8.8 टन प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जित किया।

औसत से अधिक लुटा रहे भारत के अमीर
अमीरी के हिसाब से भारत की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के कार्बन उत्सर्जन का स्तर विश्व के औसत उत्सर्जन स्तर से अधिक है। पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत को अपने उत्सर्जन स्तर में कटौती करना है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि कटौतियों का ज्यादातर बोझ इसी 10 प्रतिशत दौलतमंद आबादी पर डाला जाना चाहिए।


स्टॉक और उत्सर्जन का समीकरण
कार्बन की असमानता से निपटने के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने वैश्विक कार्बन प्रोत्साहन (जीसीआइ) का सुझाव दिया है। इसमें कहा गया है कि औसत वैश्विक कार्बन उत्सर्जन (करीब 5 टन प्रति व्यक्ति) से अधिक कार्बन हवा में फेंकने वाले हर देश को हर वर्ष निश्चित रकम देना होगा। इस सुझाव से भारत को हर साल भारी—भरकम राशि मिल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि जंगल और बढ़ेगे तो देश का कार्बन स्टॉक बढ़ेगा। इसके बाद देश वैश्विक स्तर पर तोल—मोल के आधार पर दुनिया के लिए मॉडल बन सकता है।

पुराने पेड़ों में गूढ़ खजाना
सैकड़ों या हजारों वर्ष पुराने पेड़ जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि ये पेड़ कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को सदियों से सोख कर अपने अंदर जमा कर रहे होते हैं। प्रकाश संश्लेषण के दौरान पेड़ वायुमंडल से जितनी कार्बन डाई ऑक्साइड सोखते हैं, उसका एक हिस्सा वो सांस लेने की प्रक्रिया के दौरान वायुमंडल में वापस छोड़ देते हैं। बाक़ी की कार्बन डाई ऑक्साइड को पेड़ कार्बन में बदल देते हैं और फिर इसका इस्तेमाल वो कार्बोहाइड्रेट का उत्पादन करने के लिए करते हैं, जिससे उनकी जैविक गतिविधि चलती रहती है। जितना ही पुराना और बड़ा पेड़ होता है, उसके अंदर उतना ही अधिक कार्बन इकट्ठा होता है। तथ्य है कि करीब तीन मीटर चौड़े तने वाला पेड़ अपने में तीन से चार टन कार्बन सोख कर रखता है। ये दस से बारह टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर है। लगभग इतनी ही कार्बन डाई ऑक्साइड कोई पारिवारिक कार चार वर्षों में उत्सर्जित करती है।

IMAGE CREDIT: Patrika

कार्बन स्टॉक में मध्यप्रदेश चौथा राज्य
1. अरुणाचल प्रदेश 418.99
2. उत्तराखंड 401.01
3. छत्तीसगढ़ 389.64
4. मध्यप्रदेश 374.44
(आंकड़े मिलियन क्यूबिक मीटर में)