
Chanderi: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) का एक छोटा सा कस्बा जहां घर-घर में लगा है हैंडलूम करघा…इन करघों पर बुनकर परिवार पीढ़ियों से ताना-बाना बुनते आ रहे हैं. करीब 700 साल पुरानी इस कला के कद्रदान साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं. दुनिया का ऐसा कोई देश नहीं जहां चंदेरी (Chanderi) की साड़ियां पसंद नहीं की जातीं.
फिर भी चंद साल पहले तक मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले के चंदेरी कस्बे के मेहनतकश बुनकर ऐसे माली दौर से गुजरे हैं जब कुछ बुनकरों ने काम ही नहीं छोड़ा, बल्कि वे शहर छोड़ कर ही चले गए. लेकिन टेक्नोलॉजी से हाईटेक होती दुनिया के साथ चंदेरी का साड़ी उद्योग फिर से उठ खड़ा हुआ और हथकरघा मशीनों की खट-खट..खटर-पटर की आवाजों से चंदेरी का घर-घर फिर से आबाद हो गया। नई टेक्नोलॉजी और स्मार्ट फोन के इस्तेमाल से स्मार्ट हुए बुनकर… और बदलते फैशन के साथ अपडेट हुए घर-घर में लगे हथकरघों से तरक्की और खुशियों की कहानी बुनती इंट्रेस्टिंग स्टोरी जरूर पढ़ें...
300-400 साल से इस पेशे से जुड़े परिवार के मुशीर अहमद मोटामल कहते हैं कि टेक्नोलॉजी ने चंदेरी उद्योग को बहुत सहारा दिया है. अब कंप्यूटर से डिजाइनिंग होने लगी है. इसका सबसे बड़ा फायदा यही हुआ कि अब तुरंत डिजाइन तैयार कर लिया जाता है और वह डिजाइन हमेशा के लिए आपके पास रहता है.
आप जब चाहे उसमें एडिशन कर सकते हैं, उसे छोटा या बड़ा करके परफेक्ट और नया लुक दे सकते हैं. जबकि पहले डिजाइन तैयार करने वाले गिनती के 2-4 ही लोग थे. इनके पास नंबर लगाना पड़ता था तब डिजाइन बन पाता था. वो भी कभी-कभी परफेक्ट नहीं होता था. ऐसे में लंबा समय निकल जाता था. लेकिन अब परफेक्ट डिजाइन तैयार होते हैं, कहीं कोई कमी नहीं रहती.
मुशीर अहमद बताते हैं कि अब साड़ियों की डिजाइनिंग में ट्रेडिशन के साथ फैशन का तड़का लगने लगा है. दुनिया भर में पसंद की जाने वाली चंदेरी की ये साड़ियां ग्राहक की पसंद और फैशन इन ट्रैंड डिजाइन भी मुहैया करा रही है.
मुशीर अहमद मोटामल ने बताया कि एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा ने अपनी शादी के एक कार्यक्रम में चंदेरी की खूबसूरत साड़ी पहनी थी. उनकी साड़ी हैवी वर्क थी। फुलेकनलिया जाल की ये साड़ी पूरी तरह से हाथ से तैयार की जाती है. इस साड़ी को बनाने में 1 महीना 10 दिन यानी 40 दिन का समय लगा था. वहीं इसकी कीमत 40 हजार रुपए थी.
बुनकर अशोक लालमणि (Weaver) कहते हैं कि पहले जहां हाथ से चंदेरी की साड़ियां तैयार होती थीं, तब उनके डिजाइन बदलने के लिए बार-बार पट्टे बदलने पड़ते थे. एक-एक धागे को हाथ से उठाना पड़ता था. लेकिन अब बिना पट्टे बदले, बिना धागे उठाए ही साड़ियों के डिजाइन बदले जा सकते हैं.
इलेक्ट्रॉनिक जैक्वार्ड मशीनों (electronic jacquard machines) से ये काम आसान हो गया है. इससे 10 दिन में बनने वाली साड़ी अब 7 दिन में बनकर तैयार हो जाती है. वर्तमान में 10 व्यापारियों के यहां ये जैक्वार्ड मशीनें लगी हैं. इसकी मदद से बुनकर नई डिजाइनर साड़ी बनाने लगे हैं. हालांकि पूरी साड़ी आज भी बुनकर हाथ से ही तैयार करते है.
बता दें कि इंदौर के बुनकर सेवा केंद्र ने आउटसाइड ब्लॉक लेवल क्लस्टर योजना के तहत ये इलेक्ट्रॉनिक जैक्वार्ड मशीनें 10 हितग्राहियों के लिए स्वीकृत की गई हैं. इनमें से 3 हैंडलूम पार्क में, 1 प्राणपुर (Pranpur) में काम में ली जा रही है. इस एक मशीन की कीमत 2 लाख रुपए है. जबकि बुनकरों से पूरी कीमत के 10% रुपए ही लिए गए हैं. बाकी 90% की सब्सिडी सरकार की ओर से दी गई है.
अशोक लालमणि कहते हैं कि जैक्वार्ड मशीन में एक पैन ड्राइव लगानी पड़ती है. इसमें साड़ियों के कई अलग-अलग डिजाइन सेव होते हैं. जिन्हें या तो ग्राहक स्वयं शॉप्स वालों को भेजता है या फिर ये फिर बुनकरों द्वारा तैयार किए गए सिलेक्टेड डिजाइन होते हैं. जो बटन दबाते ही डिजाइनिंग करने लगती है.
मध्य प्रदेश शासन ने बुनकरों को एक ही छत के नीचे तमाम तरह की सुविधाएं देने के उद्देश्य से चंदेरी में हैंडलूम पार्क (Handloom Park) का निर्माण करवाया. 2017 में 42.80 करोड़ रुपए की लागत से तैयार ये हैंडलूम पार्क 419 हैक्टेयर एरिया में बना है. इसमें 24 हॉल या ब्लॉक हैं जिनमें, 240 करघे लगवाए गए हैं.
यानी यहां हर ब्लॉक में 10 हथकरघे लगे हैं. इनका उद्देश्य बेरोजगार बुनकरों को रोजगार मुहैया कराना है. वर्तमान में यहां एक ब्लॉक में 10 बुनकर काम कर रहे हैं. हैंडलूम पार्क में बुनकरों के साथ ही साड़ियां या कपडे़ तैयार करने से लेकर हर छोटा बड़ा काम बुनकर समितियां/उद्यमी, एनजीओ संभाल रहे हैं.
यहां चंदेरी का प्राणपुर गांव (Pranpur Village) देश के पहले क्राफ्ट हैंडलूम टूरिज्म विलेज (First craft handloom tourism village of India) के रूप में विकसित किया जा रहा है. इसके अंतर्गत 2023-2024 में यहां बुनकरों के मोहल्लों की सड़कें, वर्क स्टेशन, थिएटर आदि का निर्माण किया गया है. बता दें कि प्राणपुर में 600 बुनकर कार्यरत हैं. ऐसे में बुनकरों की आय बढ़ाने और चंदेरी उद्योग को समृद्धि की राह पर आगे बढ़ाने सरकार का ये प्रयास मील का पत्थर साबित हो सकता है.
चंदेरी हथकरघा विभाग के अधिकारी एस.के. तिवारी बताते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से बुनकरों कि आय बढ़ाने और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए एमपी के साथ ही देशभर में कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं, जिनका लाभ मध्य प्रदेश के बुनकरों को मिलता है. इसके साथ ही बुनकरों का उत्साह बढ़ाने के लिए हर साल 7 अगस्त को नेशनल हथकरघा दिवस पर इन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया जाता है.
मध्य प्रदेश सरकार इन बुनकरों को कबीर पुरस्कार से नवाजती है. इसके तहत उत्कृष्ट काम करने वाले बुनकरों को प्रथम पुरस्कार के रूप में 1 लाख रुपए, द्वितीय पुरस्कार के रूप में 50 हजार और तृतीय पुरस्कार के रूप में 25 हजार रुपए और प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जाता है. अब तक 18 बुनकर इस पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं.
आज चंदेरी में केवल साड़ियां ही नहीं, बल्कि ड्रेस मटेरियल, तैयार ड्रेसेज, स्टाल, चुन्नी भी मिलती हैं। इसके साथ ही कुशन, सोफा कवर, पर्दे जैसे कई आइटम घरों की खूबसूरती बढ़ा रहे हैं।
एस.के तिवारी बताते हैं कि चंदेरी के बुनकर ई-कॉमर्स का हिस्सा भी बन रहे हैं। वे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से जुड़े हुए हैं। सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं के साथ जैसे फैब इंडिया, टाटा, लेमन ब्लू, ऐमेज़ॉन आदि बुनकरों से उत्पादन भी करवाती हैं और उन्हें बेचती भी हैं।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि आज बुनकर खुश हैं और इनकी खुशी से चंदेरी भी गुलजार है… आपके घर तक चंदेरी की साड़ियों को पहुंचाने के लिए ऑनलाइन स्मार्ट फोन से ऑर्डर लेकर उन्हें आपके घर डिलीवर भी कर रहे हैं। आप चाहें तो ऑफलाइन भी अपने शहर के बाजार में आसानी से इसे ढूंढ़ सकते हैं। इस तरह चंदेरी की ये साड़ियां बदलते भारत की एक बानगी प्रस्तुत करती हैं।
Updated on:
29 Jan 2025 03:38 pm
Published on:
12 Aug 2024 04:11 pm
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