क्यूसीआई का निरीक्षण ही सवालों के घेरे मेंजिन स्थानों का निरीक्षण करके टीम ने शहर को ओडीएफ का दर्जा दिया है, वहां भी अनेक गड़बडिय़ां नजर आई थीं। मानसरोवर कॉम्प्लेक्स के पास रखे गए मॉड्यूलर टॉयलेट्स के पास पानी की टंकी तक नहीं थी। मल निकासी के नाम पर महज डेढ़-दो फीट का गड्ढा खोदा गया था। मोती नगर क्षेत्र में सोखते गड्ढा बनाने के बजाय सीधे जमीन पर तीन ईंट की दीवार बनाकर उस पर पटिये रख दिए। टॉयेलट्स का मल इन गड्ढों में और इसका पानी आस-पास जमा हो रहा था। दूसरा ईरानी डेरा को झुग्गीबस्ती क्षेत्र में शामिल कर निरीक्षण कराया गया, जबकि वहां झुग्गियों के बजाय आलीशान मकान बने हैं। क्यूसीआई की टीम ने निरीक्षण किया तो निश्चित ही ये हालात देखे होंगे, बावजूद इसके राजधानी को ओडीएफ का तमगा मिलने से क्यूसीआई का निरीक्षण ही सवालों के घेरे में है।
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इन स्थानों का किया था निरीक्षणझुग्गी बस्ती : ईरानी डेरा, आजाद नगर, विश्वकर्मा नगर, मोती नगर
रहवासी कॉलोनी : खुशीपुरा, पुराना अशोका गार्डन, कमला नगर, सरदार मोहल्ला
व्यावसायिक क्षेत्र : अयोध्यानगर सब्जीमंडी, चौक बाजार, हमीदिया रोड, मानसरोवर कॉम्प्लेक्स
स्कूल : केम्पियन हायर सेकंडरी स्कूल, सुमन सौरभ स्कूल, शासकीय स्कूल भानपुर, शासकीय स्कूल गोविंदपुरा
विशेष स्थान : बोट क्लब
इनका कहना है...दुर्दशा को देखने के बाद भी शहर को ओडीएफ घोषित हो गया, इससे संपूर्ण प्रक्रिया ही संदेहास्पद है। इस तरह से दिया गया ओडीएफ का तमगा आने वाले दिनों शहर के स्वास्थ्य के साथ खुला खिलवाड़ करने वाला साबित होगा। इस पूरे मामले की असलियत उजागर करने के लिए मैं आरटीआई दाखिल करूंगा।
- सुभाष सी पांडे, पर्यावरणविद
पठारी क्षेत्र में छूट रहे पसीने भोपाल जिले में रह गए 361 गांवों को ओडीएफ करने के लिए जिला पंचायत अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं। कालापानी, अचारपुरा, अगरिया व आदमपुर छावनी गांवों में चट्टान व पठारी एरिया ज्यादा है। यहां छह फीट का गड्ढा खोदना मुश्किल हो रहा है। ड्राइंग बदली गई है। इन क्षेत्रों में शौचालय बनवाने का टारगेट 10 प्रतिशत भी पूरा नहीं हुआ। इन गांवों में करीब 300 शौचालय बनने हैं। प्रशासन इन गांवों में अब शौचालयों की ड्राइंग बदलकर काम करने में जुट गया है। यह पहला मौका है, जब छह फीट की जगह तीन फीट का सोखता गड्ढा खोदकर ही शौचालय का निर्माण करने की प्रक्रिया चालू कर दी है। कलेक्टर निशांत वरवड़े ने भी इस पर अपनी सहमति दे दी है।
हड़ताल का भी पड़ा असर सरपंच-सचिवों की 17 दिन चली हड़ताल का असर भी शौचालय निर्माण पर पड़ा है। शुक्रवार को कलेक्टर कार्यालय में हुई बैठक में जिला पंचायत के अधिकारियों ने माना कि हड़ताल से पंचायतों में शौचालय निर्माण की गति धीमी हो गई है।
पठारी क्षेत्रों के आधा दर्जन गांवों में शौचालय बनाने में थोड़ी दिक्कत आ रही है। बदले हुए ड्रांईग की मदद ली जा रही है। तीन फीट का सोखता गड्ढा बनवाए जा रहे हैं।
देवेश मिश्रा, डिप्टी सीईओ, जिला पंचायत
पत्रिका व्यू भोपाल नजीर बनना चाहिए भोपाल का शौच मुक्त होना निगम के साथ ही हर शहरवासी की ख्वाहिश है। शहर में जो भी कुछ होगा, वह पूरे प्रदेश के लिए उदाहरण बनेगा। भोपाल की जिम्मेदारी है हर पैमाने पर खरा उतरना। यहां जो कुछ भी होगा, उसका प्रतिबिंब पूरे प्रदेश में नजर आएगा। पूरी तैयारी के बिना ओडीएफ का दर्जा और बड़ी जवाबदारी बन जाएगा। इसलिए जिम्मेदार अधिकारियों को वस्तुस्थिति का जायजा लेना चाहिए और ऐसे प्रयत्न करना चाहिए, जिससे पूरा शहर संतुष्ट नजर आए, सिर्फ कुछ नेता और अधिकारी नहीं।