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को-ऑपरेटिव सेंट्रल बैंक के अफसरों ने 13 स्माल स्केल बैंकों में भी किए 505 करोड़ रुपए का निवेश

ब्याज के लालच में डिफॉल्टर कंपनी में 111 करोड़ रुपए निवेश संबंधी धांधली की जांच के दौरान हुआ खुलासा

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राधेश्याम दांगी,भोपाल। भोपाल को-ऑपरेटिव सेंट्रल बैंक के जिन अफसरों ने डिफॉल्टर कंपनी में 111.29 करोड़ रुपए निवेश किए उनके कार्यकाल में 505 करोड़ रुपए और निवेश करने का मामला सामने आया है। अफसरों ने गुपचुप तरीके से बैंक के ग्राहकों और किसानों की निधि ऐसे 13 स्माल स्केल बैंकों में निवेश कर दिए जिनमें से 5 स्माल स्केल बैंकों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने निवेश की तिथि के एक साल पहले ही बैंक के रूप में मान्यता दी थी।

अफसरों ने इस निवेश पर भी तर्क दिया है कि इन बैंकों से अधिक ब्याज मिलेगा। जबकि बैंक की विनियोजन समिति यह पैसा निवेश करने के पक्ष में नहीं थी। इस बात का खुलासा ईओडब्ल्यू की जांच में हुआ है। ईओडब्ल्यू ने 15 नवंबर को डिफॉल्टर कंपनी आईएल एंड एफएस में 111.29 करोड़ रुपए निवेश करने के मामले में केस दर्ज कर जांच शुरु की थी।

जांच में पाया गया कि अफसरों ने डिफॉल्टर कंपनी की सहयोगी कंपनियां आईएलएंडएफएस ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क लि., आईएलएंडएफएस एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी सर्विसेस लि कंपनी आदि में भी निवेश किया गया है। वहीं, विनियोजन समिति के निर्णय के खिलाफ जाकर 505 करोड़ रुपए स्माल स्केल बैंकों में पैसा जमा कर दिया। इससे बैंक के ग्राहकों व किसानों का यह पैसा भी जोखिम में पड़ गया।

एक ही बैंक में निवेश, लेकिन ब्याज दर अलग-अलग

फिनकेयर स्मॉल फाइनेंस बैंक, बंगलुरु में 18 दिसंबर, 2018 को 50 करोड़ और 2 जनवरी 2018 को 50 करोड़ रुपए निवेश किए गए, जबकि आरबीआई ने इसे 21 जुलाई 2017 को बैंक के रुप में मान्यता दी। सूर्योदय स्मॉल फाइनेंस बैंक इंदौर में 2 जनवरी, 2018 को 30 करोड़ रुपए निवेश किए गए, जबकि आरबीआई ने इसे 23 जनवरी, 2017 को मान्यता दी। इक्वीटस स्मॉल फाइनेंस बैंक में 28 जनवरी 2018 को 50 करोड़ रुपए जमा किए, जबकि आरबीआई ने 4 फरवरी, 2017 को मान्यता दी।

वहीं, एयू स्माल फाइनेंस बैंक में 5 फरवरी 2018 को 75 करोड़ रुपए निवेश किया। जबकि आरबीआई ने इसे 19 अप्रेल 2017 को बैंक के रुप में मान्यता दी। जांच में पाया गया है कि सबसे अधिक पैसा उत्कर्श स्मॉल स्केल फाइनेंस बैंक में निवेश किया गया। अलग-अलग तारीखों में इस बैंक में 200 करोड़ रुपए निवेश किया। समान अवधि के लिए फरवरी, मार्च, अप्रेल और नवंबर में निवेश किया, लेकिन ब्याज दरें अलग-अलग है।

पांच बैठकें हुई, लेकिन चर्चा तक नहीं की

ईओडब्ल्यू की जांच में पाया गया है कि जिस दौरान यह पैसा जमा किया गया है, उस अवधि में करीब 5 बार संचालक मंडल की बैठकें हुई, लेकिन किसी भी बैठक में स्माल स्केल बैंकों में पैसा निवेश करने चर्चा नहीं की। ईओडब्ल्यू की जांच में पाया गया है कि संचालक मंडल को सही जानकारी नहीं दी गई और जिम्मेदार अफसर आरएस विश्वकर्मा, उपायुक्त एवं एमडी, अनिल भार्गव शाखा प्रबंधक, सुभाष शर्मा, शाखा प्रबंधक ने संचालक मंडल द्वारा अनुमोदित विनियोजन नीति, आरबीआई व नाबार्ड के निर्देशों को ताक पर रख कर बैंक की पूंजी को जोखिम में डाल दिया। जब डिफॉल्टर कंपनी आईएलएंडएफएस और स्मॉल स्केल बैंकों में निवेश की गई रकम जोखिम में पड़ गई तब जिम्मेदारों ने संचालक मंडल से भी इस निधि से संबंधित तथ्य छिपाए और बैठकों में सच नहीं बताया।