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जंगल, पहाड़ों के बीच शास्त्रों को आधार बनाकर पूरी की अयोध्या से श्रीलंका तक की पैदल यात्रा

- महज 28 साल की उम्र में की एक साल में पूरी की रामवनगमन पथ की 8200 किमी यात्रा - कई बार दो-दो दिन तक नहीं मिला खाना, लोगों की मदद से ही पूरी हो पाई यात्रा

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महज 28 साल की उम्र में की एक साल में पूरी की रामवनगमन पथ की 8200 किमी यात्रा

भोपाल. मैं बचपन से ही भगवान राम के चरित्र से काफी प्रभावित था। शास्त्राें, कहानियों के साथ-साथ लोगों से भी भगवान राम के वनवास के किस्से अक्सर सुनता था। उस समय मेरे मन में ख्याल आया क्यो न अयोध्या से लेकर श्रीलंका तक यात्रा की जाए और वीजा बनाकर मैं पैदल निकल पड़ा। बहुत ज्यादा पैसे मेरे पास नहीं थे, लेकिन यात्रा के दौरान लोगों ने मेरी भरपूर मदद की और एक साल में मैने यह यात्रा पूरी की।
यह कहना है राम वन पथगमन के पदयात्री रोहित सिंह की। जिन्होंने अयोध्या से श्रीलंका तक पदयात्रा पिछले वर्ष ही पूर्ण की। इस दौरान उन्होंने पत्रिका से बातचीत में अपनी यात्रा को लेकर चर्चा की। उन्होंने बताया कि उन्होंने यह यात्रा 15 नवंबर 2022 को शुरू की थी और 15 नवम्बर 2023 को पूरी की। इस दौरान लगभग 8 हजार 200 किमी की यात्रा की। रोहित सिंह उम्र महज 28 साल है। उन्होंने बताया कि इस यात्रा से उन्होंने प्रकृति को उन्होंने बहुत करीब से जाना।

आठ राज्यों से होते हुए गुजरे, वीजा खत्म होने के कारण श्रीलंका में बस से सफर
रोहित सिंह ने बताया कि उन्होंने यात्रा की शुरुआत अयोध्या से की थी। इस दौरान वे आठ राज्यों से होते हुए श्रीलंका पहुंचे। जिसमें उत्तरप्रदेश, मप्र, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटका का छोटा सा हिस्सा, केरल आदि शामिल है। इस दौरान तमिलनाडु होते हुए पम्पानदी पहुंचे, वहां से ऋष्यमूक पर्वत; प्रवर्षण पर्वत से राजा पालपथ जो वास्तविक किष्किंधा है वहां भी गए। इसके बाद 160 किमी दूर रामेश्वरम में धनुष कोटि तक गए।इसके बाद रामेश्वरम से कोलंबो तक वे हवाई जहाज से पहुंचे। श्रीलंका में रास्ते में हर राज्य की संस्कृति, बोलचाल और लोगों से मिलने का मौका मिला। श्रीलंका में वीजा खत्म होने वाला था, इसलिए 250 किमी तक ही पैदल सफर किया। श्रीलंका में कुछ सफर बस से तय किया।
कई पड़ाव पड़े, कभी टेंट तो कभी लोगों के साथ रूका
यात्रा के दौरान कई पड़ाव रहे। इसके लिए मेरे पास एक छोटा था तंबू था। कई बार जंगल-पहाड़ों में भी रात गुजारनी पड़ती थी, अथवा किसी गांव, शहर में रूकना पड़ता था। इस दौरान जब लोगों को बताता था कि मैं रामवनपथ गमन की यात्रा कर रहा हूं तो लोग भी मदद करते थे। इस यात्रा के दौरान मेरी लोगाें ने खूब मदद की। मैं अपने साथ मुश्किल से 15 हजार रुपए लेकर निकला था, लेकिन लोगों के सहयोग से ही मेरी यह यात्रा पूरी हुई।