
मप्र राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग
consumer protection: उपभोक्ता हितों की रक्षा करने के लिए बने उपभोक्ता आयोगों से उपभोक्ताओं का भरोसा उठता जा रहा है। क्योंकि नए उपभोक्ता कानून के अनुसार भले ही प्रकरणों के निराकरण की समय सीमा 90 दिन तय कर दी गई हो लेकिन अभी भी इनके निराकरण में सालों लग रहे हैं। वहीं अभी राज्य और जिला उपभोक्ता आयोगों में 50 हजार से ज्यादा प्रकरण लंबित हैं। क्योंकि सुनवाई करने के लिए बेंच में न पर्याप्त सदस्य हैं और न अध्यक्ष हैं। इनकी भर्ती के लिए भी प्रक्रिया नवंबर में शुरू हुई थी। उस पर भी सवाल खड़े हुए हैं। इसमें वकीलों के लिए जहां परीक्षा अनिवार्य कर दी गई वहीं रिटायर्ड आइएएस और जज आदि के लिए कोई परीक्षा नहीं रखी गई। परीक्षा भी इतनी कठिन कर दी कि 70 पदों के लिए 500 लोग शामिल हुए जिसमें से केवल 17 ही पास हो पाए। इस प्रकार अब बिना परीक्षा देने वालों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो जाएगा। फिलहाल चार महीने में प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है और पद खाली ही हैं।
अभी मप्र राज्य उपभोक्ता आयोग में सदस्य के तीन पद खाली हैं। जबकि जिला उपभोक्ता आयोगों में अध्यक्ष के 13 और सदस्य के 70 पद खाली हैं। ऐसे में कई जिलों में तो सुनवाई ही नहीं हो पा रही है। उपभोक्ताओं की शिकायतें लगातार आ रही हैं। उपभोक्ताओं के इससे भरोसा उठने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य उपभोक्ता आयोग में पहले जहां हर साल दो से तीन हजार के बीच प्रकरण आते थे वे पिछले दो साल से एक हजार के नीचे पहुंच गए हैं। जबकि जिला उपभोक्ता आयोग में प्रकरण लगभग दोगुने हो गए हैं। इससे साफ है कि लोग जिला उपभोक्ता आयोग में तो केस लगाते हैं लेकिन सालों बाद चक्कर लगाने के बाद आदेश मिलता है तो वे आगे राज्य स्तर पर केस ले जाना पसंद नहीं कर रहे हैं।
भर्ती प्रक्रिया पर यह उठ रहे सवाल
उपभोक्ता आयोगों के पदों की पूर्ति के लिए नवंबर 2021 में विज्ञापन जारी किया गया था। इसमें बनाए गए नियमों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। पहली बार इसके लिए रिटायर्ड आइएएस, रिटायर्ड जज और वकीलों ने आवेदन किया है। जिला आयोगों के सदस्यों के लिए केवल वकीलों की परीक्षा ली गई है। जिला आयोग के सदस्य के लिए परीक्षा है जबकि राज्य आयोग के लिए नहीं है। वकीलों के लिए अधिकतम आयु सीमा 45 साल है वहीं रिटायर्ड अधिकारियों और जजों के लिए 65 साल तय की गई है। सदस्य पर नियुक्ति के लिए 15 साल की प्रेक्टिस अनिवार्य की गई है जबकि अध्यक्ष के लिए 7 साल की प्रेक्टिस मान्य की गई है।
सालों बाद भी निराकरण नहीं
केस- 1
अमित राठौर ने वर्ष 2013 में एक बैंक के खिलाफ राज्य आयोग में मामला लगाया था। लेकिन तब से अभी तक सिर्फ तारीखें ही मिल रही हैं आदेश नहीं हो पाया। अब उन्होंने जाना ही छोड़ दिया है।
केस-2
राजेन्द्र बाई ने वर्ष 2016 में एमपीईबी के खिलाफ मामला लगाया था। लेकिन अभी राज्य आयोग से कोई आदेश नहीं मिल पाया। वे हर बार तारीख पर आती हैं और अगली तारीख लेकर लौट जाती हैं।
पांच साल में दर्ज प्रकरण और निराकरण की स्थिति
राज्य उपभोक्ता आयोग
वर्ष - दर्ज प्रकरण- निराकरण- पेंडिंग
2021- 657- 1295- 10812
2020- 910- 773- 11535
2019- 2829- 2274- 11418
2018- 827- 1161- 10038
2017- 2517- 692- 10372
जिला उपभोक्ता आयोग
वर्ष - दर्ज प्रकरण- निराकरण- पेंडिंग
2021- 16991- 8077- 39163
2020- 9848- 4339- 28490
2019- 13822- 12991- 23020
2018- 9429- 5309- 22189
2017- 11793- 10390- 18069
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अभी हमारे पास पर्याप्त सदस्य और अध्यक्ष नहीं होने से थोड़ी समस्या आ रही है, इसी के चलते पेंडेंसी भी बढ़ी है। उपभोक्ता आयोगों में नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। इसमें किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं है। नियुक्तियां हो जाने पर जल्दी पेंडेंसी निपटाने में तेजी आएगी।
- राजीव आपटे, रजिस्ट्रार मप्र उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग
Published on:
15 Mar 2022 01:11 pm
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