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डी-लिस्टिंग की महारैली में वनवासियों ने लगाए नारे… जो भोलेनाथ का नहीं, वो मेरी जात का नहीं

- राजधानी में हुई जनजाति गर्जना डी-लिस्टिंग महारैली में जुटे हजारों लोग, आर-पार की लड़ाई का किया आह्वान - जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक राजकिशोर हंसदा ने किया आह्वान, डी-लिस्टिंग जनजाति समाज के जीवन-मरण का प्रश्न है, हम इसके लिए दिल्ली मार्च करेंगे- वनवासियों की एक ही चिंता.... जनजाति समाज की मूल पहचान रखने वालों के अधिकार छीन रहे हैं कन्वर्टेड लोग - जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर तले हुए आयोजन में दूर-दूर से पहुंचे थे आदिवासी संस्कृति के अगुवा बने भाई और बहन

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डी-लिस्टिंग की महारैली में वनवासियों ने लगाए नारे... जो भोलेनाथ का नहीं, वो मेरी जात का नहीं

डी-लिस्टिंग की महारैली में वनवासियों ने लगाए नारे... जो भोलेनाथ का नहीं, वो मेरी जात का नहीं

भोपाल. डी-लिस्टिंग सिर्फ नारा नहीं, आरक्षण अब तुम्हारा नहीं... जो भोलेनाथ का नहीं, वो मेरी जात का नहीं... जनजाति सुरक्षा मंच का एक ही नारा, डी-लिस्टिंग-डी-लिस्टिंग... धर्मांतरित जनजातियों का आरक्षण समाप्त हो-समाप्त हो... कार्तिक बाबू का एक ही सपना, डी-लिस्टिंग है कानून अपना... जैसे सैकड़ों नारे भोपाल में जुटे प्रदेशभर के जनजातीय समाज ने शुक्रवार को बुलंद किए। वे जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर तले भेल स्थित दशहरा मैदान में इक_े हुए थे। इस अवसर पर मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक राजकिशोर हंसदा ने Óजनजाति गर्जना डी-लिस्टिंग महारैलीÓ संबोधित करते हुए कहा जनजाति समाज के असंख्य वीरों ने देश की रक्षा करते हुए अपना जीवन अर्पित किया है। उन्होंने भावी पीढ़ी के सुखपूर्वक जीवन का सपना देखा था, ताकि वे विकसित समाज के समकक्ष आ सकें लेकिन अब कन्वर्ट हुए लोग आरक्षण प्राप्त कर रहे हैं। यह पाप हो रहा है। सरकार को डी-लिस्टिंग करना ही चाहिए ताकि जनजाति समाज की मूल पहचान रखने वालों के अधिकार कन्वर्टेड लोग नहीं छीन सकें। जिन्होंने अपनी संस्कृति, मूल पहचान छोड़ दी उन्हें जनजाति के अधिकारों से वंचित किया जाना चाहिए।

आदिवासी हिन्दू समाज का अभिन्न अंग हैं
राजकिशोर हंसदा ने इस अवसर पर कहा कि ईसाई प्रकृति की पूजा नहीं करते, इसलिए वे आदिवासी नहीं हो सकते। ईसाई धरती की पूजा नहीं करते इसलिए भी जनजाति समुदाय के नहीं हो सकते। भारत का संविधान, न्यायालयों के निर्णय और जनगणना बताती है कि ईसाई जनजाति समुदाय के नहीं हैं। आदिवासी हिन्दू समाज का अंग हैं। धर्मांतरितों को जनगणना में भी आदिवासी की संज्ञा नहीं दी गई है। इसके बाद भी नौकरी आदि में अधिकांश कन्वर्टेड लोग ही लाभ ले रहे हैं। यह बड़ा अन्याय है। डी-लिस्टिंग जनजाति समाज के जीवन-मरण का प्रश्न है। हम इसके लिए दिल्ली मार्च करेंगे।

वर्ष 1967 में विधेयक आया, आज तक संसद में लागू नहीं हुआ
जनजाति सुरक्षा मंच के आमंत्रित सदस्य सत्येंद्र सिंह ने कहा कि अपनी मूल पहचान छोड़ चुके अवैध लोग 70 साल से हम लोगों का अधिकार छीन रहे हैं। जनजाति समुदाय के लोग दशकों से डी-लिस्टिंग के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आज इसी क्रम में जनजाति सुरक्षा मंच ने Óजनजाति गर्जना डी-लिस्टिंग महारैलीÓ भोपाल में हो रही है। अब आगे हम दिल्ली से भी ललकारेंगे। भगवान हमारी सहायता करेगा। उन्होंने कहा कि डी-लिस्टिंग के लिए 1967 में तत्कालीन सांसद बाबू कार्तिक उरांव की अगुवाई में विधेयक लाया गया। इसके बाद भी अब तक संसद में लागू नहीं किया गया। जनजाति वर्ग के लोग इसके लिए दशकों से संघर्ष कर रहे हैं। वर्ष 2006 में जनजाति सुरक्षा मंच का गठन हुआ। वर्ष 2009 में समाज के देशभर के 28 लाख लोगों के हस्ताक्षर वाला मांग पत्र तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को सौंपा था। इसके लिए देशभर में जिला स्तर पर रैली की जा रही हैं।

हम अनुसूचित जनजाति के लिए बनाए अनुच्छेद 342 में चाहते हैं संशोधन
राज्यसभा की पूर्व सांसद संपतिया उइके ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. अंबेडकर ने संविधान के अनुच्छेद 341 में व्यवस्था दी थी कि यदि अनूसूचित जाति के लोग भारत के मूल के अलावा अन्य धर्मों में धर्मांतरित होते हैं तो उन्हें अनुसूचित जाति का लाभ नहीं मिलेगा। ऐसा ही संशोधन हम अनुसूचित जनजाति के लिए बनाए गए अनुच्छेद 342 में चाहते हैं। जो कन्वर्टेड लोग दोहरा लाभ ले रहे हैं उन्हें अनुसूची से हटाया जाना चाहिए। जनजाति के अधिकारों उपयोग 95 प्रतिशत कन्वर्टेड लोग ले रहे है, जबकि मूल पहचान रखने वाले जनजाति के 5 प्रतिशत लोगों को ही लाभ मिल पा रहा है।

यह लड़ाई अब सड़क पर उतर आई है
पूर्व आईएएस श्याम सिंह कुमरे ने कहा कि जब से देश आजाद हुआ है, हमारे साथ अन्याय हो रहा है। जनजाति समाज भारतीय सनातन परंपरा और संस्कृति का संवाहक रहा है। जनजाति समुदाय का व्यक्ति जैसे ही धर्म परिवर्तन करता है तो उसकी मूल विशेषताएं समाप्त हो जाती हैं। अत. उन्हें मूल जनजाति की सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए। यह लड़ाई अब सड़क पर उतर आई है। अब यदि हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम दिल्ली तक मार्च करने तैयार हैं।

हम अपनी आने वाली पीढिय़ों के लिए संघर्ष कर रहे हैं
जनजाति समुदाय के सदस्य प्रकाश उइके ने कहा पूरे पूर्वोत्तर से जितने भी आईएएस हैं, वे कौन हैं, वे मूल पहचान और संस्कृति छोड़ चुके कन्वर्टेड लोग हैं। हम अपनी आने वाली पीढिय़ों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जनजाति समुदाय के बच्चों का अधिकार कोई और हड़प रहा है। इस अवसर पर उन्होंने भारी संख्या में मौजूद समाज के लोगों से महारैली के बाद हस्ताक्षर और दिल्ली कूच के लिए आह्वान किया। उपस्थित जनजाति समुदाय ने हाथ उठाकर दिल्ली तक मार्च करने का संकल्प दोहराया।

पूर्वजों ने प्राणों की आहुति दे दी लेकिन अपना धर्म और संस्कृति नहीं छोड़ी
इस अवसर पर नरेंद्र सिंह मरावी ने कहा कि जनजाति समाज देश की सनातन संस्कृति का संवाहक है। हमारे जनजाति समाज के लोग मुगल आक्रांताओं और बाद में अंग्रेजों से लड़ते और संघर्ष करते रहे। अपने प्राणों की आहुति भी दी लेकिन अपना धर्म और संस्कृति नहीं छोड़ी। हमारे पुरखों टंटया भील, रानी दुर्गावती, तिलका माझी ने देश की सनातन संस्कृति के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। हम उनके वंशज हैं। जनजाति की पूजा पद्धति विशिष्ट है। विदेशी धर्म के लोगों ने हमारे पुरखों को मारा है। डी-लिस्टिंग ऐसे लोगों का जनजाति समाज से बाहर करने का तरीका है। कन्वर्टेड लोगों को जनजाति आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। यदि सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी तो आने वाले समय में हम दिल्ली कूच करेंगे।

पूर्वजों ने प्राणों की आहुति दे दी लेकिन अपना धर्म और संस्कृति नहीं छोड़ी
इस अवसर पर नरेंद्र सिंह मरावी ने कहा कि जनजाति समाज देश की सनातन संस्कृति का संवाहक है। हमारे जनजाति समाज के लोग मुगल आक्रांताओं और बाद में अंग्रेजों से लड़ते और संघर्ष करते रहे। अपने प्राणों की आहुति भी दी लेकिन अपना धर्म और संस्कृति नहीं छोड़ी। हमारे पुरखों टंटया भील, रानी दुर्गावती, तिलका माझी ने देश की सनातन संस्कृति के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। हम उनके वंशज हैं। जनजाति की पूजा पद्धति विशिष्ट है। विदेशी धर्म के लोगों ने हमारे पुरखों को मारा है। डी-लिस्टिंग ऐसे लोगों का जनजाति समाज से बाहर करने का तरीका है। कन्वर्टेड लोगों को जनजाति आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। यदि सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी तो आने वाले समय में हम दिल्ली कूच करेंगे।

सुबह से ही पहुंचने लगे थे वनवासी भाई-बहन, गीतों के माध्यम से गाई वेदना
भेल दशहरा मैदान पर शुक्रवार को कार्यक्रम भले ही 12 बजे होना था, लेकिन भोर से ही प्रदेश के विभिन्न जिलों से जनजातीय भाई-बहन अपनी संस्कृति के रंगों में रंगे हुए पहुंचने लगे थे। उन्होंने अपने-अपने क्षेत्र की वेश-भूषा और वाद्य यंत्र भी ले रखे थे। मंडला से आए जगत सिंह मरकाम ने गीत के माध्यम से समाज की वेदना को व्यक्त किया। सभा से पूर्व प्रदेशभर से आए जनजाति समाज के कलाकारों ने मंच से लोक नृत्य और लोक गीतों की प्रस्तुति दी। छिंदवाड़ा और झाबुआ के दल ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर लोक नृत्य की प्रस्तुति दी।

महारैली ने अन्ना नगर चौराहे पर भीमराव अंबडेकर की प्रतिमा पर चढ़ाए फूल
कार्यक्रम के बाद भेल दशहरा मैदान से हजारों की संख्या में जनजाति समाज के लोगों ने गर्जना रैली निकाली। रैली में अंचल से आए जनजाति समाज के युवक और मातृ शक्ति ढोल-नगाड़े समेत विविध तरह के पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर लोक नृत्य करते चल रहे थे। महारैली भेल क्षेत्र के अन्ना नगर चौराहे पहुंची जहां संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। इसके बाद पुन: महारैली भेल दशहरा मैदान पहुंची जहां विधिवत समापन हुआ।

मंच पर देश-प्रदेश के तमाम जनजातीय बड़े नाम रहे मौजूद
महारैली के मंच पर, पूर्व राज्यसभा सांसद संपतिया उइके, कालू सिंह मुजाल्दा, मणिकट्टम, प्रकाश उइके, श्याम सिंह कुमरे, नरेंद्र सिंह मरावी, भगत सिंह नेताम, छतर सिंह मंडलोई, अंजना पटेल, योगीराज परते, अर्जुन मरकाम, डॉ. महेंद्र सिंह चौहान भी मंचासीन थे। कार्यक्रम का संचालन सोहन ठाकुर ने किया। समापन अवसर पर सौभाग सिंह मुजाल्दा ने सभी का आभार व्यक्त किया।