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UGC के इस एक आदेश ने उड़ा दिए सबके होश, हिंदी के साथ किया ऐसा अन्याय

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के  आदेश ने हजारों रिसर्च स्कॉलर्स और पीएचडी डिग्री होल्डर्स की नींद उड़ा दी है। इनको समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें।

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shahid samar

Jan 16, 2017

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भोपाल.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के आदेश ने हजारों रिसर्च स्कॉलर्स और पीएचडी डिग्री होल्डर्स की नींद उड़ा दी है। इनको समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें। क्योंकि यूजीसी ने रिसर्च जर्नल्स की लिस्ट जारी की है। इससे कई भारतीय रिसर्च जर्नल्स बाहर हो गई हैं। इसके कारण हिंदी माध्यम में रिसर्च पेपर प्रकाशन करने वालों को भी झटका लगा है। यानी अंग्रेजी में ही रिसर्च पेपर प्रकाशित हो सकेंगे।




यूजीसी ने करीब 38,653 रिसर्च स्कॉलर की सूची जारी किए हैं। साथ निर्देश दिए हैं कि उन्हीं रिसर्च स्कॉलर्स की डिग्री वैध मानी जाएगी, जिनके रिसर्च पेपर इन जर्नल्स में पब्लिश हुए हैं। यूजीसी ने शिक्षकों की भर्ती और कॅरियर एडवांसमेंट स्कीम के लिए मिनिमम क्वालिफिकेशन तय करने के लिए नया नोटिफिकेशन जारी किया गया है। विवि इसे पीएचडी रिसर्च स्कॉलर पर भी लागू करने की तैयारी में है। यानी अंग्रेजी में रिसर्च पेपर प्रकाशित करने वाले ही असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकेंगे या फिर पहले से भर्ती शिक्षकों का कॅरियर एडवांसमेंट स्कीम का लाभ मिल सकेगा। शिक्षकों के आरोप हैं कि कुछ विदेशी रिसर्च जर्नल्स को बढ़ावा देने के लिए यूजीसी ने यह कदम उठाया है। इसके विरोध में प्रांतीय शासकीय महाविद्यालयीन प्राध्यापक संघ ने यूजीसी को ज्ञापन दिया है।


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रिसर्च जर्नल्स की नई सूची पर विवाद, इसलिए भी मुसीबत
अभी तक यूजीसी ने रेफरीड जर्नल्स में पेपर प्रकाशन के लिए 15 और नॉन-रेफरीड जर्नल्स में प्रकाशन के लिए 10 नंबर तय किए थे। लेकिन जुलाई 2016 में जारी एक अधिसूचना के अनुसार रेफरीड जर्नल्स में पेपर प्रकाशन के लिए 25 अंक कर दिए लेकिन नॉन-रेफरीड जर्नल्स में प्रकाशन के लिए 10 नंबर ही रखे। अब रिसर्च जर्नल्स की नई सूची आने से मुसिबत बढ़ेगी।


इनका कहना है...
यह तुगलकी फरमान हैं। एक ओर सरकार हिंदी को बढ़ावा देने की बात कर रही है तो दूसरी ओर यूजीसी ने हिंदी के भारतीय रिसर्च जर्नल्स को अपनी सूची से गायब कर दिया है।
- डॉ प्रभात पांडेय, सचिव प्रांतीय शासकीय महाविद्यालयीन प्राध्यापक संघ

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