बता दें कि उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने बरकतउल्ला विवि को जनार्दन सिंह की डिग्रियों की जांच के लिए निर्देश जारी किया था। पांच जनवरी 2018 को विवि ने आदेश जारी कर चौहान द्वारा अर्जित की गई डिग्रियों की जांच के लिए उच्च स्तरीय कमेटी गठित की थी। एक मार्च को कमेटी ने प्रथम जांच रिपोर्ट सौंप दी। इसमें लिखा है कि प्रथम दृष्टया डॉ. चौहान ने समानान्तर रूप से डिग्रियां नियम विरुद्ध अर्जित की हैं।
छह साल में तीन डिग्रियां, एक डिप्लोमा और पीएचडी बता दें कि डॉ. चौहान ने एमए (1993-97) के साथ एमटेक (1993-96) और पीएचडी (1996-99) में किया। इसमें एमटेक और पीएचडी के साथ एमबीए (1995-97) भी कर लिया। इसी बीच चौहान ने मैनेजमेंट का डिप्लोमा (1997-1998) भी कर लिया। एमबीए एवं मैनेजमेंट डिप्लोमा देवी अहिल्या बाई विवि इंदौर से किया, जबकि अन्य डिग्रियां बरकतउल्ला विवि भोपाल से की गईं। जांच समिति ने डॉ. चौहान को तीन से चार सप्ताह के अंदर पक्ष रखने के लिए मौका देने की बात कही। चार माह बीत जाने के बाद भी चौहान ने न तो अपना पक्ष रखा न ही विवि ने समिति की अनुशंसा को आगे बढ़ाया।
इस बात का खुलासा हाल ही में बीयू द्वारा सूचना के अधिकार के तहत दी गई जानकारी में हुआ है। हालांकि, विवि(बीयू ) प्रबंधन ने जांच मार्च महीने में करा ली थी, लेकिन इसकी जानकारी अभी तक उच्च न्यायालय को नहीं दी है।