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ज्ञान के लिए हमें सिर्फ सात्विक अन्न खाना होगा- डॉ. गुलाब कोठारी

पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने कहा कि आज की शिक्षा की सबसे बड़ी कमजोरी है कि यह सिर्फ बुद्धिमान का निर्माण कर रही है। मां और आत्मा से व्यक्ति को दूर करते जा रही है। बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी में पर्सनेल्टी डेव्हलपमेंट— व्यक्तित्व विकास पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने मन की ताकत की विस्तार से व्याख्या की।

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पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी

पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने कहा कि आज की शिक्षा की सबसे बड़ी कमजोरी है कि यह सिर्फ बुद्धिमान का निर्माण कर रही है। मां और आत्मा से व्यक्ति को दूर करते जा रही है। बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी में
पर्सनेल्टी डेव्हलपमेंट— व्यक्तित्व विकास पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने मन की ताकत की विस्तार से व्याख्या की। उन्होंने कहा- जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन... ज्ञान के लिए हमें सिर्फ सात्विक अन्न खाना होगा

डॉ. कोठारी ने कहा कि व्यक्ति को कोई भी काम करते समय अपनी सभी इंद्रियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे ही वह अपने काम का 100 फीसदी लाभ ले सकेगा। उदाहरण के लिए खाना खाते वक्त सबसे पहले भोजन को हमारी आंखें खाती है, फिर हम नाक से कहते हैं, फिर हम छूकर कहते हैं और अंत में उसका स्वाद लेते हैं। इसी प्रकार हर काम की विधि होती है। जीवन में सफलता के लिए सबसे पहले अपना उद्देश्य तय करना जरूरी है।

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डॉ. गुलाब कोठारी ने व्यक्तित्व विकास पर संवाद करते हुए छात्रों को कई उपयोगी टिप्स दीं। इससे पहले मां सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। व्याख्यान के पूर्व डॉ. गुलाब कोठारी का परिचय प्रस्तुत किया गया। डॉ. कोठारी से प्रोफेसर्स, छात्रों ने संवाद भी किया।

डॉ. कोठारी के व्याख्यान के अहम बिंदु
— शास्त्रों ने शक्तियां दी पर हम उनका हम तिरस्कार करते हैं
— युवाओं को सोचना होगा कि हमें समाज को बल देना है, समाज के लिए जीना है
— यह सोचें कि जब तक ज्ञान मेरे काम नहीं आएगा तब तक निर्वाण नहीं मिलेगा
— बुद्धि में संवेदना नहीं है, मिठास नहीं है लेकिन हर कोई बुद्धिमान बनना चाहता है
— मां को शक्ति कहते हैं, पिता को नहीं कहते
— शास्त्रों ने जो शक्तियां दी उनका हम तिरस्कार करते हैं
— मन की ताकत को कोई नहीं रोक सकता
— मन को नियंत्रण में रखें, यह पटरी से नहीं उतरे
— हमारे यहां कहावत है— जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन, अन्न को हम परब्रह्म कहते हैं
— ज्ञान के लिए हमें सात्विक अन्न खाना होगा
— जैसा अन्न होगा वैसा हमारा व्यक्तित्व निर्माण होगा
— पिज्जा,पास्ता में कुछ नहीं
— आज हम अन्न कहां खा रहे, पेस्टिसाइड का जहर मिल रहा है
— हम पैकेज के पीछे भाग रहे हैं, पर हमें अपने लक्ष्य के साथ जीना चाहिए