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मन की ताकत और आत्मा की अवेयरनेस को खत्म न होने दें

हमारे यहां अर्धनारीश्वर का सिद्धांत है। शास्त्र कहता है कि मैं अगर पुरुष हूं तो भीतर नारी भी हूं। मैं अगर नारी हूं तो भीतर पुरुष भी हूं। ये बातें पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने सेज यूनिवर्सिटी में आयोजित दिशा बोध कार्यक्रम में छात्राओं से संवाद करते हुए कहीं।

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Editor in Chief of Patrika group Gulab Kothari

Editor in Chief of Patrika group Gulab Kothari

Editor in Chief of Patrika group Gulab Kothari : हमारे यहां अर्धनारीश्वर का सिद्धांत है। शास्त्र कहता है कि मैं अगर पुरुष हूं तो भीतर नारी भी हूं। मैं अगर नारी हूं तो भीतर पुरुष भी हूं। ये बातें पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी(Gulab Kothari) ने सेज यूनिवर्सिटी में आयोजित दिशा बोध कार्यक्रम में छात्राओं से संवाद करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि समाज का निर्माण नारियों के हाथ में है। पुरुषों के हाथ में ये है कि हम उद्योग, रोजगार दे सकते हैं, विकास के रास्ते खोज सकते हैं, लेकिन अच्छे संस्कार देना तो सिर्फ नारियों के हाथ में हैं, इसलिए संकल्प लें कि मेरे घर से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं निकलेगा जो समाज में किसी दूसरे व्यक्ति को कष्ट देना चाहेगा। तभी हम एक नया समाज तैयार कर पाएंगे।

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मन मजबूत तो संकल्प भी मजबूत होंगे

आज शिक्षा में दो चीजें सिखाई जा रही हैं, पहली इंटलेक्चुअल बनना, बुद्धि को तेज कर अच्छे पैसे कमाना और दूसरा फिट रहना। अन्य चीजें गायब हैं। मन को कहीं नहीं पढ़ाया जा रहा। पढ़ाई में आत्मा की चर्चा नहीं है। यह शिक्षा शुद्ध भौतिकवादी है. इसमें जिंदगी का सार नहीं है। हायर एजुकेशन में ऊपर उठने पर इंटलेक्चुअल लेवल बढ़ेगा हर कोई यह सोचता है। लेकिन मन की ताकत और आत्मा की अवेयरनेस इससे खत्म हो रही है। सारे सुख-दुख, भविष्य के सपने, सब मन में हैं और इस मन के बारे में तो कोई शिक्षा ही नहीं है। मन यदि कमजोर हो गया तो सारे संकल्प अधूरे रह जाएंगे। सशक्तिकरण भी मन की शक्ति से जुड़ी है, मन के संकल्प से जुड़ी है। मन को आप जानते ही नहीं हैं।

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गर्भ में ही दें संस्कार

नारी देवी हैं, क्योंकि वो गर्भ में ना पल रही आत्मा से संपर्क कर सकती है। मां को पता होता है कि बच्चे का स्वभाव कैसा है, इसलिए मां को गर्भ से ही अच्छे संस्कार देने होंगे ताकि बाहर आने पर संस्कारित व्यवहार करे। मां बताए कि रीति-रिवाज, संस्कार, परंपरा क्या है। ये सब नहीं सिखाया तो पुरुष के रूप में वो हिंसक पशु समाज में पहुंचेगा।

जहां नारी की पूजा वहां देवताओं का वास

जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास होता है। आज लेकिन नारी खोती जा रही है। बलात्कार, छेड़छाड़, जैसी खबरें आती हैं। वे लड़के, जो इन घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, वे भी किसी मां के भीतर तैयार हुए हैं। इसलिए मां सुसंस्कारी बच्चा तैयार करना होगा। आज स्त्री अपना प्रकृति प्रदत्त स्वभाव परिवर्तित कर रही है। उसे समझना होगा, वे भी पुरुष जैसा व्यवहार करने लगीं तो समाज का क्या होगा?

ये मिली सीख

आधुनिक युग में सनातन धर्म से लोगों को कैसे जोड़ें? इस सवाल का जवाब मिल्रा। कर्म ही धर्म है। सभी को प्रकृति से खुद को जोड़ना चाहिए। 5 मिनट निकाल कर खुद से बात करनी चाहिए। गीता को पढ़ना चाहिए। - मेधावी भार्गव, सेज फैकल्टी

दिशा बोध में मां की महत्ता पर अच्छी चर्चा हुई। एक मां कैसे समाज में बदलाव ला सकती है। उनकी शिक्षा समाज को सुधार सकती है। बच्चे को अच्छा इंसान बनाएं। - डॉ. शिखा तिवारी, फैकल्टी

कार्यक्रम में महिलाओं और लड़कियों को बहुत कुछ सीखने को मिला। महिला को अपने काम के साथ संस्कार को भी समझना चाहिए। - आस्था साहू, छात्रा

एक मां के बारे में इतनी गहराई से जानने का पहली बार मौका मिला। अब एक बात मेरे मन में घर कर गई कि ये न सोचें कि हम ये नहीं कर सकते। - अंशी गुप्ता, छात्रा