
रणनीतिक दांव पेंच: जब दो माह के लिए ठीक दो दिन पहले ही टला सतना का चुनाव
भोपाल। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में सतना विधानसभा का 1993 का चुनाव हमेशा याद रहेगा। 24 नवंबर को प्रदेशभर में मतदान होना था। इसके दो दिन पहले तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का डंडा सतना के चुनाव में पड़ा। 22 नवंबर को प्रचार का दौर खत्म हुआ ही था कि रात में चुनाव स्थगित हो गया। इसके ठीक दो माह बाद 24 जनवरी 1994 को मतदान हुआ।
यह बैरिस्टर गुलशेर अहमद और कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह के बीच वर्षों से चले आ रहे शीतयुद्ध का परिणाम था। 1993 में गुलशेर अहमद हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल थे और अर्जुन सिंह केन्द्र में कैबिनेट मंत्री। गुलशेर का राज्यपाल बनना अर्जुन को नागवार गुजरा था। गुलशेर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की पसंद थे।
उसी समय मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए और सतना से कांग्रेस की टिकट गुलशेर ने अपने इकलौते पुत्र सईद अहमद को दिला दी। भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री बृजेन्द्रनाथ पाठक लगातार दूसरी बार मैदान में थे और लोग उनके हारने की आशंका व्यक्त कर रहे थे। अपने पुत्र को जिताने के लिए राज्यपाल गुलशेर अहमद शिमला से सतना आए।
10-12 दिनों नजीराबाद स्थित घर से चुनाव की कमान संभाल रखी। हालांकि, बाजार में कांग्रेस प्रत्याशी का चुनावी दफ्तर भी था, लेकिन भीड़ उनके घर पर ही जुटती थी। कांग्रेस का अर्जुन सिंह गुट अन्दर ही अन्दर इससे चिढ़ रहा था।
प्रचार खत्म होने से पहले 21 जनवरी की रात अर्जुन सिंह सतना आए, सुभाष पार्क में चुनावी सभा की तैयारी थी। पुत्र को चुनाव में फंसा देख गुलशेर ने झुकने की चाल चली। वे मैहर की ओर से आ रहे अर्जुन का स्वागत करने सतना नदी के मोड़ पर पहुंच गए।
उन्हें देखते ही अर्जुन गाड़ी से उतरे और गुलशेर की ओर बढ़ गए। हाथ जोड़े यह तस्वीर अगले दिन अखबार के पन्नों पर आ गई। यह तस्वीर आचार संहिता के उल्लंघन से जुड़ गई।
अगले दिन शाम को चुनाव आयोग ने सतना का चुनाव स्थगित कर दिया। संवैधानिक पद की मर्यादा पर सवाल उठे और गुलशेर का हिमाचल राज्यपाल पद से इस्तीफा हो गया।
सरकार बन चुकी थी फिर भी सईद हारे
1993 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। इसके दो माह बाद सतना के चुनाव कराए गए, इसमें भाजपा के ब्रजेन्द्र नाथ पाठक ने सईद अहमद को तीन हजार वोटों से हरा दिया।
सतना के वर्तमान सांसद गणेश सिंह तब जनता दल के टिकट पर पांचवें नंबर पर रहे। इसके बाद 1998 में हुए चुनाव में सईद अहमद जीतकर वित्त राज्यमंत्री बने। उनके पिता ब्राह्मण मतदाताओं में अच्छी पैठ रखते थे, इसलिए उन्हें करीबी लोग पंडित गुलशेर अहमद कहकर भी संबोधित करते थे।
Published on:
18 Sept 2018 08:19 am
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