
डॉ. देबोप्रिया डे,डॉ. देबोप्रिया डे,रिटा थॉमस
भोपाल। बचपन में शास्त्रीय नृत्य सीखने का सपना देखा, लेकिन परिवार ने यह कहकर मना कर दिया कि बेटियां डांस सीखकर क्या करेगी। परिवार की इस रोक ने भी इन्हें हताश नहीं किया। इन बेटियों ने इस सपने को दिल में जिंदा रखा। उम्र के दूसरे पड़ाव पर जब बच्चे भी बड़े होकर सैटल हो गए तो डांस सीखना शुरू किया। किसी ने 40 तो किसी ने 60 की उम्र में डांस प्रैक्टिस शुरू की। आज ये महिलाएं भरतनाट्यम, कथक जैसे विधाओं में पारंगत होकर देशभर के विभिन्न मंचों पर परफॉर्म कर रही हैं।
63 साल की उम्र में सीख रही हूं
बचपन में डांस सीखना चाहती थी, लेकिन परिवार में उस तरह का माहौल नहीं था। मैंने अपने सपने को हमेशा जिंदा रखा। जॉब लगने पर पैशन कहीं थम सा गया। मैं जवाहर लाल नेहरू स्कूल से इंग्लिश लेक्चरर के पद से रिटायर हुई। अभी 63 साल की हूं। मेरे साथ छोटे-छोटे बच्चे भी सीखते हैं। मैं उन्हें और वे मुझे देख मोटिवेट होते हैं। मैं आज भी दो घंटे प्रैक्टिस करती हूं।
रिटा थॉमस
पैशन को रखा जिंदा
प्रोफेशन के चक्कर में पैशन कहीं पीछे छूट गया। 34 साल की उम्र में लगा कि मुझे अपने सपने को पूरा करना है। मैंने भरतनाट्यम सीखना शुरू किया। करीब 4 साल पहले डीआईडी सुपरमॉम सीजन-1 में टॉप-50 में रही।
प्रिया आर्या
अपने सपने पूरे कीजिए
मैं सिंगरोली की रहने वाली हूं। गांव में ऐसा माहौल नहीं था कि घर की बेटी डांस सीखने जाए। पैरेन्ट्स को भी मेरा ये शौक पसंद नहीं था। शादी के बाद जब मैंने पति को अपनी इच्छा बताई तो वे तैयार हो गए। 36 साल की उम्र में मैं कथक सीख रही हूं। वीकेंड पर दो घंटे प्रैक्टिस करती हूं। मैं स्टेट लेवल कॉम्पीटिशन, उदयपुर में इंटरनेशनल कॉम्पीटिशन जीत चुकी हूं।
संध्या पांडे
सीखने की कोई उम्र नहीं होती
मुझे बचपन से ही डांस का बहुत शौक था, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण डांस सीख नहीं पाई। उसके बाद कॉलेज में जॉब करने लगी। शादी के बाद शौक कहीं पीछे छूट गया। मेरी बेटी अपूर्वा डांस सीखने लगी तो मुझे लगा कि बचपन का सपना अब पूरा करना चाहिए। मुझे लगा कि उम्र तो महज एक नम्बर है। मैंने 45 की उम्र में भरतनाट्यम सीखना शुरू किया। अभी तक मैं लोक रंग, भारत भवन जैसे मंचों पर प्रस्तुति दे चुकी हूं।
प्रतिभा व्यास
दादी और चाचा को पसंद नहीं था कि मैं डांस सीखूं
मैं जयपुर में ज्वाइंट फैमिली में पली-बढ़ी। वहां दादी और चाचा को पसंद नहीं था कि मैं डांस सीखूं। 1982 में एशियाड में घूमर पर परफॉर्म करने जाना था। परिवार डेढ़ माह तक छोडऩे को तैयार नहीं था। ये बात प्रिंसिपल मैम को पता चली तो परिवार को फटकार लगाते हुए कहा कि बेटी की टीसी ले जाओ। बेटी यशस्वी ने कहा कि मां अपने सपने को जी लो। 48 की उम्र में डांस सीखना शुरू किया।
सविता यादव
बचपन का सपना हुआ पूरा
मैं अभी इंस्टीट्यूट ऑफ एक्सीलेंस में प्रोफेसर हूं। बचपन में शास्त्रीय नृत्य सीखने की जो ललक थी वो आज भी जिंदा है। बेटी को क्लास ज्वॉइन कराई तो लगा कि मुझे भी भरतनाट्यम सिखना चाहिए। बचपन का सपना हर स्टेप के साथ पूरा होता जा रहा है। शुरुआत में मंच पर जाने मुझे डर लगता था। अब मैं और बेटी दोनों साथ परफॉर्मेंस देते हैं।
डॉ. देबोप्रिया डे
Published on:
08 Jan 2020 03:00 pm
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