
Lok sabha chunav 2019
- भाजपा का ऐसे बिगड़ा वोटों का गणित
चुनाव वर्ष भाजपा कांग्रेस
2013 विधानसभा 586895(4 सीट) 577824(4 सीट)
2014 लोकसभा 649354 391475
2018 विधानसभा 574887 (1 सीट) 586422(6 सीट)
खरगोन. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव वाली खरगोन लोकसभा सीट के बिगड़े समीकरण विधानसभा चुनाव 2018 में उजागर हो गए हैं। बीते तीन लोकसभा चुनाव से भाजपा इस सीट पर एकतरफा जीत दर्ज करती रही है। इस बार किसानों की नाराजगी और एंटी इंकम्बेंसी भाजपा को इतनी भारी पड़ी कि आठ विधानसभा सीटों में से छह कांग्रेस और एक निर्दलीय ने जीती है। विधानसभा चुनाव 2013 में दोनों ने चार-चार सीटें जीती थीं। लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा के सुभाष पटेल ने ढाई लाख से अधिक मतों से जीत हासिल की थी, जहां कांग्रेस ने अब 10 हजार की बढ़त बनाई है। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बड़ा दावं खेलते हुए यहां से तीन कैबिनेट मंत्री बना दिए हैं।
सांसद सुभाष पटेल के खाते में कई उपलब्धियां दर्ज होने के बाद भी वे विधानसभा चुनाव के लिए मतदाताओं को नहीं साध पाए। जनता से कमजोर संवाद और समस्याओं के निराकरण में प्रभावी नहीं होने का भी बड़ा असर है, लोगों में इस बात को लेकर नाराजगी भी है। सांसद निधि से यात्री प्रतीक्षालय और स्कूल निर्माण जैसे काम ही हुए हैं। लोग उन पर जनहित के मुद्दों पर निष्क्रियता के आरोप लगाते हैं।
- सदन में नहीं बन सके क्षेत्र की आवाज
सांसद पटेल सदन में भी क्षेत्र की आवाज नहीं बन सके। साढ़े चार साल में संसद में महज 96 प्रश्न पूछे। संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर दो पूरक प्रश्न ही लगाए। खरगोन के किसानों ने सिंचाई सुविधा बढ़ाने और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए आवाज उठाई, लेकिन केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर भाजपा की सरकार होने के बाद भी इसे मुखर नहीं कर पाए। क्षेत्र औद्योगिकीकरण के पिछड़ापन से नहीं उबर सका।
- पलायन बड़ा मुद्दा
क्षेत्र में पलायन बड़ा मुद्दा है। काम की तलाश में खरगोन और बड़वानी से बड़ी संख्या में लोग गुजरात और महाराष्ट्र जाते हैं। इसे रोकने के लिए सांसद या राज्य सरकार द्वारा कोई प्रयास नहीं किए गए। कांग्रेस लगातार इस मुद्दे को उठाती रही है।
- भाजपा का सफर हुआ मुश्किल
विधानसभा चुनाव में एकतरफा हार के बाद भाजपा के लिए आगे का सफर मुश्किल हो गया। लोकसभा चुनाव में पार्टी को जनाधार हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। एंटी इंकम्बेंसी और भाजपा नेताओं जनविरोधी छवि से पार्टी को खरगोन और बड़वानी जिले में भारी नुकसान हुआ। इसके कारण भाजपा ने दोनों जिलों की चार सीटें गंवा दी। बड़वानी की एकमात्र सीट पर पार्टी जीती, जबकि शेष सात सीटों पर उसे कांग्रेस के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी पदाधिकारी इसकी समीक्षा में जुटे हैं। दूसरी ओर विधानसभा में ऐतिहासिक जीत हासिल कर कांग्रेस का उत्साह नजर आ रहा है।
- भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने को तैयार कांग्रेस
विधानसभा चुनाव में बड़ी बढ़त के बाद कांग्रेस लोकसभा चुनाव और बेहतर प्रदर्शन करने की तैयारी में जुट गई है। तीन मंत्री बनाकर इसके संकेत भी दिए हैं। कांग्रेस ने 2004 के लोकसभा चुनाव से ही इस सीट पर अपनी जमीन खो दी थी। आदिवासियों की दूरी से हर बार हार का अंतर बढ़ता रहा है, लेकिन अब किसानों के साथ आदिवासियों को भी साधने में कामयाब रही है। विधानसभा चुनाव में भी सांसद की निष्क्रियता को उसने मुद्दा बनाया था। ऐसे में सुभाष पटेल कड़ी चुनौती से घिर गए हैं।
- नेशनल हाइवे व रेल परियोजना का दावा
पटेल का दावा है कि उन्होंने दोनों जिलों में सड़क, पुल-पुलिया, यात्री प्रतिक्षालय, सीसी रोड निर्माण सहित अन्य सौंगातें दी हैं। इनमें इंदौर-मनमाड़ रेलवे प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार की स्वीकृति मिलने के साथ ही बजट में शामिल किया गया हैं। खंडवा-बड़ौदा स्टेट हाइवे को नेशनल हाइवे बनाने का मुद्दा संसद में उठाकर सरकार और केंद्रीय परिवहन मंत्री का ध्यानाकर्षित कराया। दोनों जिलों में 300 टीनशेड यात्री प्रतिक्षालय, कुंदा सहित खरगोन-जुलवानिया के बीच पांच पुल और सेंधवा से धनोरा, चाचरिया वाया धुलकोट बिस्टान रोड पर सीसी सड़क निर्माण किया जा रहा है।
* ये है प्रमुख मुद्दे
- शिक्षा व स्वास्थ्य
- रोजगार के अभाव में पलायन
- फसल बीमा योजना में गड़बड़ी
- फसलों का उचित दाम नहीं मिलने से किसानों की नाराजगी।
Published on:
05 Jan 2019 05:05 am
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