
divorce (Photo Source: AI Image)
MP News: भारतीय समाज में बेटियां हमेशा से दो घरों की धुरी मानी गई है, लेकिन फैमिली कोर्ट में आ रहे मामलों ने समाज को चिंतित कर दिया है। अब शादियां सिर्फ वैचारिक मतभेदों के कारण नहीं, बल्कि बेटियों के अपने मायके के प्रति अत्यधिक जुड़ाव और वहां की जिम्मेदारियों के बोझ के कारण भी टूट रही है।
मनोवैज्ञानिकों और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि एकल परिवारों के बढ़ते चलन के कारण बेटियों पर अपने बुजुर्ग माता पिता की देखभाल का दबाव बढ़ा है। कई मामलों में भाइयों की लापरवाही या आर्थिक अक्षमता के कारण बहने मायके की कमान संभाल लेती है। जबकि ससुराल पक्ष चाहता है कि बहू का पूरा ध्यान और समय उनके घर के लिए हो। जब इन दोनों अपेक्षाओं में टकराव होता है, तो बात अलगाव तक पहुंच जाती है।
विवाह के बाद माता-पिता और मायके की जिम्मेदारी के फेर में ससुराल में पति से विवाद होने लगा। मायके आने-जाने के कारण विवाद इतना बढ़ गया कि बात तलाक तक पहुंच गई। एक साल के बेटे को पति को देकर महिला माता-पिता की सेवा में मशगूल हो गई। तीन साल बाद मायके की जिम्मेदारियां खत्म होने के बाद परिवार की याद आई और बेटे को के लिए कोर्ट तक पहुंच गई।
पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं। पति सुबह अपने काम पर चले जाते हैं। वहीं पत्नी अपने काम के साथ ही पिता की सेवा के लिए मायके पहुंच जाती है। पति शाम को जब ऑफिस से घर पहुंचते हैं तो पता चलता है कि पत्नी मायके में है। ऐसे में पति-पत्नी के बीच कई बार कहासुनी तक हो जाती है। पत्नी को जब यह बात समझ में आई तो वे ससुराल के कर्तव्यों के निर्वहन के बाद मायके का रुख करती हैं।
बेटियों का अपने माता-पिता के प्रति प्रेम और कर्तव्य सराहनीय है लकिन संतुलन जरूरी है। संवाद की कमी और एक दूसरे के परिवार के प्रति सम्मान न होना ही इन विवादों की जड़ है। नूरुन्निशा खान, प्रधान काउंसलर, जिला कोर्ट
Published on:
29 Dec 2025 05:58 pm
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