
भोपाल. भारत में हरित क्रांति की नीव रसायनिक खाद के चलते रखी गई थी। लेकिन समय के साथ अधिक उत्पादन लेने के लिए रसानियक खाद का अंधाधुध प्रयोग किया गया जिससे जमीन खराब होने लगी। इस परेशानी का हल निकाला दुनिया की सबसे बड़ी किसान सहकारी संस्था इफको ने, इफको ने विश्व में पहली बार नेनो तकनीकी का उपयोग कर यूरिका बनाकर दुनिया को चौंका दिया है। इसे ईको फ्रेडली नेनो यूरिया भी नाम दिया गया है।
देशभर में प्रयोग के बाद मिला पेटेंट
विश्व में पहली बार उर्वरक का आकार कम करने, क्षमता और प्रभाव बढ़ाने के लिए नेनो तकनीकी प्रयोग किया गया है। नेनो यूरिया का देशभर में 11 हजार किसानों, कृषि विश्व विद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्रो और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के रिसर्च केंद्रो परीक्षण के बाद अब यह सिद्ध हो गया है कि नेनो यूरिया का प्रयोग करने से 15 फीसदी तक फसल उत्पादन बढ़ जाता है। इसके साथ ही भूमि भी प्रदूषित होने से बच जाती है।
बचत के साथ ज्यादा उत्पादन
इफको के मध्य प्रदेश विपणन प्रबंधक डॉ ओम शरण तिवारी के अनुसार 500 एमएल यानी आधा लीटर नेनो यूरिया की बोतल एक एकड़ में दो बार स्प्रे के लिए पर्याप्त है जबकि किसान यूरिया की 50 किलों की बोरी एक बीगा यानि लगभग आधा एकड़ में एक बार में प्रयोग करते हैं। नेनो यूरिया का प्रभाव पारंपरिक यूरिया से तीन गुना ज्यादा है। इसे उपयोग करने से किसानों को यूरिया के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा, उसकी बचत भी होगी और उत्पादन भी बढ़ जाएगा। जल्द ही मध्य प्रदेश की सहकारी संस्थाओं, इफको के ई बाजार में नेनो यूरिया मिलना शुरु हो जाएगा।
भारतीय वैज्ञानिक की दुनिया को सौगात
नैनो यूरिया लिक्विड की खोज जोधपुरवासी वैज्ञानिक डॉ रमेश रलिया ने की है। वह इफको में महाप्रबंधक व अनुसन्धान प्रमुख हैं। डॉ रमेश रालिया वर्षों तक अमेरिका की सेंट लुइस यूनिवर्सिटी में नेनो तकनीकी का काम कर रहे थे। बाद में देश में लौटे और इंडियन फामर्स फ र्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड इफको में पेटेंटेड तकनीक के माध्यम से कलोल स्थित नैनो जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र (NBRC) में तैयार किया है। इफको अर्जेंटीना और ब्राजील के साथ साथ दुनियाभर में नैनो यूरिया फर्टिलाइजर प्लांट लगाने जा रहा है।
Published on:
28 Jun 2021 07:46 am
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