दरअसल, सोशल मीडिया पर आईडी पासवर्ड हैक कर या फेक आईडी से आपत्तिजनक पोस्ट वायरल करने के साथ ही लोगों को विभिन्न तरीकों से आर्थिक नुकसान पहुंचाया जाता है, साइबर फ्रॉड से होने वाले नुकसान की भरपाई अब बीमा कंपनियां करेंगी, इसके लिए विभिन्न कंपनियां साइबर पॉलिसी लेकर आई हैं।
जानकारी के अनुसार वर्ष 2020 में भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) ने पूर्व में जारी साइबर बीमा पॉलिसी में व्यक्तिगत बीमा कवर का दायरा बढ़ाने की अनुशंसा की थी, इन अपराधों में बीमा राशि पाने के लिए पीडि़त को एफआइआर सहित तकनीकि जानकारी मुहैया कराना जरूरी है। भोपाल में इस प्रकार की बीमा पॉलिसी का लाभ बड़े उद्योगों के साथ ही आईटी प्रोफेशनल्स ले रहे हैं। बीमा कंपनियां एक लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक का बीमा कवर मुहैया करा रही है, हालांकि बीमा क्लेम के लिए जरूरी है कि साइबर अपराध संबंधित व्यक्ति की लापरवाही से नहीं हुआ हो। जनरल इंश्योरेंस कंपनी के मैनेजर रूपेश नंदा ने बताया कि साइबर इंश्योरेंस पॉलिसी में काउंसलिंग व आइट कंसल्टेंसी चार्ज के भुगतान की सुविधा दी जा रही है।
ऐसे समझें बीमा कवर को एक नजर में….
-आइडेंडिटी थेफ्ट कवर- आईडी पासवर्ड चोरी होने के बाद सॉफ्टवेयर को नुकसान पहुंचाना, नेटबैंकिंग के जरिए होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई।
-सोशल मीडिया कवर- आईडी पासवर्ड हैक करने के बाद सोशल मीडिया साइट्स पर किए गए पोस्ट से होने वाली मानहानि आदि केसों से नुकसान में भरपाई।
-साइबर स्टॉकिंग कवर- साइबर अटैक के जरिए जरूरी फाइलों या डाटा को किसी अन्य फार्मेट में बदलकर उसे दुरूस्त करने के एवज में फिरौती मांगने या मध्यस्थता के जरिए दी गई राशि की क्षतिपूर्ति करना।
-आइटी थेफ्ट कवर-हैकिंग से कंप्यूटर में घुसपैठ कर सॉफ्टवेयर्स को हुए नुकसान की भरपाई।
-मेलवेयर कवर- ई-मेल पॉपअप के कारण कंप्यूटर या सॉफ्टवेयर के हैक होने से हुए नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति।
-फिशिंग कवर- बैंकों की फर्जी वेबसाइट में आईडी पासवर्ड लिखने के बाद उनके गलत हाथों में जाने से हुए नुकसान की भरपाई।
कॉर्पोरेट व व्यक्तिगत बीमा की सुविधा
मौजूदा समय में साइबर क्राइम का दायरा कई गुना बढ़ गया है, ऐसे में साइबर बीमा न केवल आर्थिक नुकसान से बचाता है बल्कि कोर्ट में केस लडऩे के लिए लगने वाले खर्च भी मुहैया कराता है, फिलहाल बीमा कंपनियां कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत बीमा की सुविधा दे रही है, यह लोगों और बड़े संस्थानों के लिए अच्छा विकल्प है।
-यशदीप चतुर्वेदी, साइबर लॉ विशेषज्ञ