
भोपाल। सनातन धर्मावलंबियों के प्रमुख त्योहारों में से एक गणेश चतुर्थी (Ganesha Chaturthi) भी है। इस त्योहार को विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इस दिन को लेकर मान्यता है कि इसी दिन बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता प्रथम पूज्य श्री गणेश का जन्म हुआ था। वहीं यह पर्व देश भर में खास तौर से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में हर्षोल्लास, उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
10 दिनों तक मनाया जाने वाले इस त्योहार में श्री गणेश के जन्म का उत्सव गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी के दिन तक चलता है।
इस दौरान गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के दिन भक्त श्री गणेश (Ganpati Bappa) की मूर्ति को घर लाकर उनका सत्कार करते हैं। जिसके बाद फिर 10वें दिन यानी कि अनंत चतर्दशी (Ananta Chaturdashi) को विसर्जन के साथ मंगलमूर्ति भगवान गणेश को विदाई देते हुए, उनसे अगले बरस जल्दी आने का वादा भी लिया जाता है।
वहीं इस बार गणेश चतुर्थी का पर्व 2 सितंबर 2019 को मनाया जाएगा।
शुभ समय:
* मध्याह्न गणेश पूजा – 11:05 से 13:36
* चंद्र दर्शन से बचने का समय- 08:55 से 21:05 (2 सितंबर 2019)
* चतुर्थी तिथि आरंभ- 04:56 (2 सितंबर 2019)
* चतुर्थी तिथि समाप्त- 01:53 (3 सितंबर 2019)
गणेश उत्सव: ऐसे समझें
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश जी का उत्सव गणपति प्रतिमा की स्थापना कर उनकी पूजा से आरंभ होता है और लगातार दस दिनों तक घर में रखकर अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है। इस दिन ढोल नगाड़े बजाते हुए, नाचते गाते हुए गणेश प्रतिमा को विसर्जन के लिये ले जाया जाता है। विसर्जन के साथ ही गणेशोत्सव की समाप्ति होती है।
पंडित शर्मा के अनुसार इस साल यानि 2019 में गणेश चतुर्थी का त्योहार 2 सितंबर को मनाया जाएगा। वहीं भक्तों में इस त्योहार का उत्साह अभी से नजर आने लगा है।
आज हम आपको मध्य प्रदेश सहित देश में श्रीगणेश के उन प्रसिद्ध मंदिर के बारे में बताएंगे जहां के बारे में कहा जाता है, कि यहां आने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं...
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1. सीहोर का चिंतामन गणेश मंदिर: भोपाल से 2 किलोमीटर की दूरी पर सीहोर में स्थित चिंतामन गणेश मंदिर की दंतकथा बेहद रोचक है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना विक्रमादित्य ने की थी लेकिन इसकी मूर्ति उन्हें स्वयं गणपति ने दी थी।
प्रचलित कहानी के अनुसार एक बार राजा विक्रमादित्य के स्वप्न में गणपति आए और पार्वती नदी के तट पर पुष्प रूप में अपनी मूर्ति होने की बात बताते हुए उसे लाकर स्थापित करने का आदेश दिया। राजा विक्रमादित्य ने वैसा ही किया। पार्वती नदी के तट पर उन्हें वह पुष्प भी मिल गया और उसे रथ पर अपने साथ लेकर वह राज्य की ओर लौट पड़े।
रास्ते में रात हो गई और अचानक वह पुष्प गणपति की मूर्ति में परिवर्तित होकर वहीं जमीन में धंस गया। राजा के साथ आए अंगरक्षकों ने जंजीर से रथ को बांधकर मूर्ति को जमीन से निकालने की बहुत कोशिश की पर मूर्ति निकली नहीं। तब विक्रमादित्य ने गणमति की मूर्ति वहीं स्थापित कर इस मंदिर का निर्माण कराया।
2. उज्जैन का चिंतामण गणेश मंदिर : उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से करीब 6 किलोमीटर दूर ग्राम जवास्या में भगवान गणेश का प्राचीनतम मंदिर स्थित है। इसे चिंतामण गणेश के नाम से जाना जाता है।
गर्भगृह में प्रवेश करते ही हमें गौरीसुत गणेश की तीन प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। यहां पार्वतीनंदन तीन रूपों में विराजमान हैं। पहला चिंतामण, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक।
ऐसी मान्यता है कि चिंतामण गणेश चिंता से मुक्ति प्रदान करते हैं, जबकि इच्छामन अपने भक्तों की कामनाएं पूर्ण करते हैं। गणेश का सिद्धिविनायक स्वरूप सिद्धि प्रदान करता है। इस अद्भुत मंदिर की मूर्तियां स्वयंभू हैं।
3. इंदौर के खजराना गणेश मंदिर : मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित खजराना गणेश मंदिर के चमत्कार भक्तों में काफी लोकप्रिय हैं। यह देश का एक विश्व प्रसिद्ध गणेश मंदिर है। खजराना गणेश से जुड़़ी मान्यता है कि यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।
यहां मन्नत पूरी होने पर भक्त भगवान गणेश की प्रतिमा की पीठ पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और भगवान गणेशजी को मोदक का भोग लगाया जाता है।
खजराना गणेश मंदिर के भगवान गणेश ने मंदिर निर्माण के लिए स्थानीय पंडित मंगल भट्ट को स्वप्न दिया था। इस सपने के बारे में उन्होंने सभी को बताया था, जिसके बाद रानी अहिल्या बाई होलकर ने इस स्वप्न के बारे में सुना तो उन्होंने बेहद गंभीरता से लिया और स्वप्न के अनुसार उस जगह खुदाई करवाई गई तो ठीक वैसी ही भगवान गणेश की प्रतिमा प्राप्त हुई। जिसके बाद यहां मंदिर निर्माण करवाया गया। आज भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होने से इस मंदिर को विश्व स्तर की ख्याति प्राप्त हो चुकी है।
4. पोहरी शिवपुरी का गणेश मंदिर : शिवपुरी जिले की पोहरी तहसील के किले में वासा प्राचीन गणेश मंदिर जो लगभग 200 वर्ष प्राचीन है पोहरी दुर्ग सिंधिया स्टेट के अंतर्गत आता था जो उस समय के जागीरदारनी बाला बाई सीतोले हुआ करती थीं। उन्होंने 1737 में इस मंदिर का निर्माण कराया था।
गणेश मंदिर जी को पहले से ही इच्छा पूर्ति मंदिर माना जाता था इस मंदिर में जो भी भक्त लोग नारियल रखकर जो मनोकामना मांगते है वो पूरी हो जाती है इसलिए ग्रामीण क्षेत्र में बसा होने के बाद भी यहां भक्तों का तांता लगा रहता है इस कारण देश के तो भक्त आते ही है विदेश से भी भक्तों का यहां आना लगा रहता है।
मान्यता: नारियल रखने से लड़कियों की हो जाती है जल्दी शादी:
पोहरी इच्छा पूर्ति गणेश मंदिर जी में स्थानीय लोगो की मान्यता अधिक है और बाहर से भी लोग यहाँ दर्शन करने एवं मनोकामना मांगने आते हैं पोहरी गणेश मंदिर की विशेषता है कि यहाँ कुंवारी लड़की शादी के लिए नारियल रख देती है तो उनकी शादी जल्दी हो जाती है।
ये हैं देश के प्रमुख गणेश मंदिर : famous temple of shree Ganesh ji in INDIA / WORLD...
इनके अलावा ऐसे में आज हम आपको बप्पा यानि श्रीगणेशजी के विश्व प्रसिद्ध पांच मंदिर के बारे में बताएंगे जहां जाने से भगवान आपकी सारी परेशानियां दूर कर देते हैं।
1. श्री सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई
गणपति के प्रसिद्ध मंदिरों में इस मंदिर का नाम सबसे पहले आता है। यह मंदिर मुंबई में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर को एक निसंतान महिला ने बनवाया था। इस मंदिर में माथा टेकने बड़े-बड़े बॉलीवुड सेलिब्रिटी आते हैं।
अष्टविनायक : महाराष्ट्र के 8 स्थानों में गणपति स्वयं विराजमान हैं। गणेश की स्वयंभू (अपने आप प्रकट हुई) प्रतिमा के कारण इन्हें अष्टविनायक कहा जाता है।
पश्चिम महाराष्ट्र और कोंकण में बसे इन आठ तीर्थस्थानों का इतिहास पुराणों में भी वर्णित है। इन सभी तीर्थस्थानों को पेशवाओं के जमाने में पहचान मिली।
यह कहा जाता है कि गणपति के इस अष्ट स्वरुप के दर्शन मात्र से कई जन्मों का पुण्य मिलता है। धार्मिक महत्व के अनुसार यात्रा करने पर पुणे से करीब एक हजार किलोमीटर का सफर करना पड़ता है।
अष्टविनायक के आठ मंदिर...
: श्री मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर : सिद्धिविनायक मंदिर : श्री बल्लालेश्वर मंदिर : श्री वरदविनायक : चिंतामणि गणपति : श्री गिरजात्मज : विघ्नेश्वर गणपति : महागणपति मंदिर ।
2. श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई मंदिर, पुणे
गणपति बप्पा का यह मंदिर पुणे में बना हुआ है। श्री सिद्धिविनायक मंदिर के बाद भक्तों की आस्था इस मंदिर में बहुत है। इस मंदिर के ट्रस्ट को देश के सबसे अमीर ट्रस्ट का खिताब हासिल है। कहा जाता है कि कई साल पहले श्रीमंत दगडूशेठ और उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई ने अपना इकलौता बेटा प्लेग में खो दिया था। जिसके बाद दोनों ने इस गणेश मूर्ति की स्थापना यहां करवाई थी। जिसके बाद अब हर साल ना केवल श्री दगडूशेठ का परिवार बल्कि आसपास के सभी लोग बडे जोश के साथ यहां गणेशोत्सव मनाते हैं।
3. कनिपकम विनायक मंदिर, चित्तूर
विघ्नहर्ता गणपति का यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर में है। माना जाता है कि यहां मौजूद गणपति अपने भक्तों के सारे पाप हर लेते हैं।विनायक के इस मंदिर की खासियत यह है कि ये विशाल मंदिर नदी के बीचों बीच बना हुआ है। इस मंदिर की स्थापना 11वीं सदी में चोल राजा कुलोतुंग चोल प्रथम ने की थी।जिसका विस्तार बाद में 1336 में विजयनगर साम्राज्य में किया गया।
4. मनकुला विनायक मंदिर, पुडुचेरी
मंदिर का इतिहास पुडुचेरी में फ्रेंच लोगों के आने के साल 1666 से भी पहले का है। शास्त्रों में गणेश के कुल 16 रूपों की चर्चा की गई है। इनमें पुडुचेरी के गणपति जिनका मुख सागर की तरफ है उन्हें भुवनेश्वर गणपति कहा गया है।तमिल में मनल का मतलब बालू और कुलन का मतलब सरोवर से है। किसी जमाने में यहां गणेश मूर्ति के आसपास बालू ही बालू था। इसलिए लोग इन्हें मनकुला विनयागर पुकारने लगे।
5. मधुर महागणपति मंदिर, केरल
मधुर महागणपति मंदिर का मंदिर केरल में है। कहा जाता है कि शुरुआत में ये भगवान शिव का मंदिर था लेकिन पुजारी के छोटे से बेटे ने मंदिर की दीवार पर भगवान गणेश की प्रतिमा का निर्माण किया। कहते हैं मंदिर के गर्भगृह की दीवार पर बनाई हुई बच्चे की प्रतिमा धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाने लगी। वो हर दिन बड़ी और मोटी होती गई। उस समय से ये मंदिर भगवान गणेश का बेहद खास मंदिर हो गया।
भगवान गणेश का खास मंदिर जहां होती है 'मन की बात':-
भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में रणथम्भौर में इकलौता ऐसा गणेश मंदिर है जहां श्री गणेश की तीन नेत्रों वाली प्रतिमा विराजमान है।
साथ ही यहां गणपति बप्पा अपने पूरे परिवार,दो पत्नी-रिद्धि और सिद्धि एवं दो पुत्र-शुभ और लाभ के साथ विराज रहे हैं। इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान हैं, जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। गजवंदनम चितयम नामक ग्रन्थ में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णंन किया गया है।
मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी के रूप में गणपति को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की समस्त शक्तियां गजानन में निहित हो गईं और वे त्रिनेत्र बने। देश में चार स्वयंभू गणेश मंदिर हैं जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम हैं।
रणथम्भौर त्रिनेत्र गणेशजी का मंदिर प्रसिद्द रणथम्भौर टाइगर रिज़र्व एरिया में स्थित है,इसे रणतभँवर मंदिर भी कहा जाता है।यह मंदिर 1579 फ़ीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्यांचल की पहाड़ियों में स्थित है।मंदिर तक पहुँचने के लिए बहुत सीढियाँ चढ़नी पढ़ती हैं।
बड़ी विशेषता: आते हैं पत्र और निमंत्रण...
यहां की सबसे बड़ी विशेषता मंदिर में आने वाले पत्र हैं। ई-मेल, व्हाट्सएप और मैसेज के इस दौर में आज भी यहां के डाकिया को करीब हजारों पत्र और स्पीड पोस्ट एक ही पते पर लाने पड़ते हैं, ये पता है रणथंभौर किले में स्थित त्रिनेत्र गणेशजी टैंपल का।
घर में कोई भी शुभ कार्य हो या फिर शादी,सबसे पहले प्रथम पूज्य गणेश जी महाराज को भक्तों द्वारा निमंत्रण पत्र भेजा जाता है।इतना ही नहीं परेशानी होने पर उसे दूर करने की अरदास भक्त यहाँ पत्र भेजकर लगाते हैं।
नित्य प्रति हज़ारों की संख्या में निमंत्रण पत्र और चिट्ठियां यहाँ डाक से पहुंचती हैं,जिन्हें पुजारी बड़ी श्रृद्धा से गणेशजी की प्रतिमा के सामने पढ़कर सुनाते है।
मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना अवश्य पूरी होती है। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को यहाँ मेला आयोजित होता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपनी हाज़िरी लगाते हैं। इस दौरान पूरा वातावरण गजानन जी महाराज के जयकारों से गूंज उठता है।
भगवान त्रिनेत्र की परिक्रमा सात किलोमीटर की है जिसे भक्त नाचते-गाते हुए जयकारों के साथ पूरी करते है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता तो बस देखते ही बनती है ,बारिश के मौसम में यहां पहाड़ियों में कई जगह बरसाती झरने बहने लगते हैं,जिससे यहां का माहौल और भी रमणीय हो जाता है।
जिन दिनों गणेश जी का मेला आयोजित होता है तब हज़ारों की संख्या में भक्ति और आस्था में डूबे श्रद्धालु दर्शन कर पुण्य अर्जित करते हैं।
भारत के प्रथम गणेश
रामायण काल और द्वापर युग में भी त्रिनेत्र गणेश जी का प्रसंग मिलता है। मान्यता हैं कि भगवान राम ने अपनी सेना सहित लंका प्रस्थान से पहले गणेशजी के इसी रूप का अभिषेक किया था। एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में लीलाधारी श्री कृष्ण का विवाह रुक्मणी से हुआ था, विवाह में वे गणेशजी को बुलाना भूल गए।
गणेशजी के वाहन मूषकों ने कृष्ण के रथ के आगे-पीछे सब जगह खोद दिया। श्री कृष्ण को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने गणेशजी को मनाया। जहां पर कृष्ण जी ने गणेशजी को मनाया वह स्थान रणथंभौर था। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत के प्रथम गणेश कहते है। मान्यता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे।
Updated on:
31 Aug 2019 03:37 pm
Published on:
31 Aug 2019 03:34 pm
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