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काजीकेम्प के अतिक्रमण मैं लुप्त हो गयी गणगौर वाली बावड़ी

भोपाल.शहर में नवाबी शासन काल से चले आ रहे कई प्रमुख त्यौहार और मेलों का कहीं स्वरूप बदल गया तो कहीं परंपराएं पूरी तरह लुप्त हो गयी। महिलाओं के द्वारा अपने पति की लंबी आयु और कुंवारी कन्याओं को इच्छित वर प्राप्ति के लिए शहर में गणगौर का मेला बड़े धूमधाम के साथ काजीकेम्प स्थित बाबड़ी पर भराता था।

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काजीकेम्प के अतिक्रमण मैं लुप्त हो गयी गणगौर वाली बावड़ी

काजीकेम्प के अतिक्रमण मैं लुप्त हो गयी गणगौर वाली बावड़ी

नवाबी शासन काल में प्रारंभ हुआ मेला तो बंद हुआ। चल समारोह भी पांच की जगह एक ही स्थान तक सीमित हो गया।
गणगौर का विसर्जन यहां होता था। उसके साथ ही पूरे परिसर में मेला लगता था। श्रावण मास की तीज को प्रारंभ होने वाला यह त्योहार चेत्र मास की तीज को गणगौर विसर्जन के साथ चार महीने में विराम होता है। इसके साथ ही शहर में स्वर्णकार समाज, माहेश्वरी समाज, मालवीय समाज, मोढ़ समाज आदि की ओर से सिर पर गणगौर रखकर चल समारोह अलग-अलग निकाले जाते थे। आज इस बाबड़ी पर अतिक्रमण हो होने व देखरेख के अभाव जल भराव वाला हिस्सा मलवे और कचरे से खत्म हो चुका है,लेकिन चार मंजिला ऊंची बाबड़ी की इमारत आज भी इसकी भव्यता की कहानी बयां करती है। इसे संरक्षित किया जाएं, इसका पानी शहर के धरोहर के साथ ही क्षेत्र में जलापूर्ति का माध्यम बन सकता है।
-बाबड़ी राधा रानी अग्रवाल के नाम से जानी जाती
समाजसेवी प्रमोद नेमा ने बताया कि नवाबी शासन काल में नवाब साहब की मजलिस के मेंबर रहे स्वर्गीय नारायण दास अग्रवाल के नाम से काजी कैंप स्थित बावड़ी में मोड़ समाज,स्वर्णकार समाज,माहेश्वरी समाज आदि की महिलाएँ सोलह श्रृंगार कर बैंड बाजों के साथ भव्य जुलूस के रूप में निकल कर गणगौर की बावड़ी पहुंचती थी। जहां एक भव्य मेले का स्वरूप हो जाता था। अब भी यह बावड़ी राधा रानी अग्रवाल के नाम से है, लेकिन देख-रेख के अभाव में यह कचरे से भर गयी है तथा आसपास अवैध कब्जे हो गए।
-बड़े बाग की बाबड़ी में भी कुछ साल मेला लगा
स्वर्णकार समाज चंद्रमोहन सोनी बताते है कि इसके बाद भोपाल टॉकीज चौराहेसे लगे बड़े बाग की बाबड़ी में 1990 के बाद ये मेला लगा। दो साल मेला धूमधाम से लगा, 1992 के बाद धीरे धीरे यह बंद हो गया। पुराने शहर में माहेश्वरी समाज मारवाड़ी रोड से और स्वर्णकार समाज बांके बिहारी मंदिर से गणगौर का जुलूस निकालता था।
-अब स्वर्णकार समाज ही निकालेगा 11 अप्रैल को जुलूस
स्वर्णकार समाज के वरिष्ठ चंद्रशेखर सोनी बताते है कि पुराने शहर में पांच जुलूस अलग-अलग समाजों द्वारा निकाले जाते थे। अब सिर्फ स्वर्णकार समाज ही निकाल रहा है। इस बार 11 अप्रैल को लखेरापुरा स्थित नथमल धर्मशाला से स्वर्णकार समाज का गणगौर का जुलूस निकाला जाएगा। जो चौक के बाजारों, जुमेराती होते हुए धर्मशाला में समाप्त होगा। उन्होंने बताया कि बाबडिय़ां जर्जर व बंद हो जाने के बाद अब इसका आयोजन समाजों द्वारा घरों के अंदर ही किया जाने लगा है।

-गोंद के पापड़ भी हो गए बंद
समाजसेवी प्रमोद नेमा ने बताया कि गणगौर के दो दिन पहले से गोंद के पापड़ बाजार और मेले में बिकने आते थे, जो वर्ष में सिर्फ एक बार ही बनते थे लेकिन पिछले दस पंद्रह वर्षों से इनका बनना भी बंद हो गया अत्यंत स्वस्थ वर्धक उक्त पापड़ को वर्ष में एक बार ही खाया जाता है गणगौर की बावड़ी और मेले के साथ यह पापड़ भी राजधानी भोपाल से पूरी तरह लुप्त हो गया।